सोमवार, 16 नवंबर 2020

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर आयोजित हुई गोष्ठी

राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर आयोजित हुई गोष्ठी


पत्रकारों ने कहा कि आज के बदलते परिवेश में पत्रकारिता जोखिम भरा व चुनौती पूर्ण कार्य


कौशाम्बी। राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर जनपद मुख्यालय मंझनपुर में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में राष्ट्रीय प्रेस दिवस के महत्व पर पत्रकारों ने अपने अपने विचार रक्खा गोष्ठी में पत्रकारों द्वारा बताया गया कि आज ही के दिन 1966 में प्रेस काउंसिल आफ इंडिया ने विधिवत कार्य करना शुरू किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व में लगभग 50 देश है। जहां प्रेस परिषद अथवा मीडिया परिषद है राष्ट्रीय प्रेस दिवस प्रेस की स्वतंत्रता व जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। सोमवार को हुई विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए जनसंदेश टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार ब्यूरो चीफ सुशील केसरवानी ने कहा कि पत्रकारिता ने समाज में सजग प्रहरी की भूमिका निभाई है। हालांकि वर्तमान समय में पत्रकारिता में बेहद जोखिम व खतरे उत्पन्न हो गए लेकिन पत्रिका पत्रकार जगत ही इन खतरों से निपटने में सक्षम है।
प्रेस की आजादी को लेकर कई सवाल उठ रहे है !पत्रकारों के बिषय में पब्लिक की क्या राय है !क्या भारत मे पत्रकारिता एक नया मोड़ ले रहा !क्या मौजूदा सरकार प्रेस की स्वतंत्रता पर पहरा लगाने का प्रयास कर रही है। बेखौफ होकर सच की आवाज को बुलंद करने लोकतंत्र में ''आ बैल मुझे मार"" अर्थात खुद की मौत के सामने से आमंत्रित करना है ये सवाल हर किसी के मन मे कौंध रहा है। भारत में प्रेस को वॉच डॉग एवं परिषद मीडिया को मोरल वॉच डॉग कहा गया है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस प्रेस की स्वतंत्रता एवं जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। आज पत्रकारिता क्षेत्र व्यापक हो गया है सुशील केशरवानी ने कहा आज पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन जन तक सूचनात्मक शिक्षाप्रद एवं मनोरंजनात्मक संदेश पहुंचाने की कला एवं विधा है। आजकल सोशल मीडिया का जमाना है। जिसके मुख्य स्रोत व्हाट्सएप फेसबुक टि्वटर मीडिया इंस्टाग्राम महत्वपूर्ण हो गए है एक मुख्य समाचार पत्र ऐसी उत्तर पुस्तिका के समान है। जिसके लाखों परीक्षक एवं एवं समीक्षक उनके लक्षित जन समूह ही होते है। तथ्यपरक तथा यथार्थवादी का संतुलन एवं वस्तुनिष्ठता इस के आधारभूत तत्व हैं। परंतु इनकी कमियां आज पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत बड़ी त्रासदी साबित होने लगी है।  पत्रकार चाहे प्रशिक्षित हो या गैर प्रशिक्षित यह सबको पता है की पत्रकारिता में तथ्यपरकता होनी चाहिए परंतु तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर बढ़ा चढ़ाकर या घटाकर सनसनी बनाने की प्रवृत्ति आज पत्रकारिता में बढ़ने लगी है।खबरों में पक्ष धरता एवं असंतुलन भी प्रायः देखने को मिलता है। इस प्रकार खबरों में निहित स्वार्थ साफ झलक ने लग जाता है। आज समाचारों में विचार को मिश्रित किया जा रहा है। विचारों पर आधारित समाचारों की संख्या बढ़ने लगी है। इससे पत्रकारिता में एक अस्वास्थ्य कर प्रबत्ति विकसित होने लगी है। समाचार विचारों की जननी होती है। इसलिए समाचारों पर आधारित विचार तो स्वागत योग्य हो सकते हैं परंतु विचारों पर आधारित समाचार अभिशाप की तरह है। मीडिया को समाज का दर्पण दीपक दोनों माना जाता है। इनमें जो समाचार मीडिया चाहे वह समाचार पत्रों या चैनल उन्हें मूल समाज का दर्पण माना जाता है दर्पण का काम है। दर्पण की तरह काम करना ताकि वह समाज की तस्वीर समाज के सामने पेश कर सकें परंतु कभी-कभी निजी स्वार्थों के कारण यह समाचार मीडिया समतल दर्पण की जगह उत्तल अवतल दर्पण की तरह काम करने लग जाते हैं। इससे समाज की उल्टी,अवास्तविक काल्पनिक एवं विकृति तस्वीर भी सामने आ जाती है तात्पर्य है कि खोजी पत्रकारिता के नाम पर आज पीली व नीली पत्रकारिता हमारे कुछ पत्रकारों के गुलाबी जीवन का अभिन्न अंग बनती जा रही।


भारतीय प्रेस परिषद ने अपनी रिपोर्ट में कहा भी है भारत में प्रेस ने ज्यादा गलतियां की है एवं अधिकारियों की तुलना में प्रेस के खिलाफ अधिक शिकायतें दर्ज है पत्रकारिता आजादी से पहले एक मिशन थी आजादी के बाद यह प्रोडक्शन बन गई हां बीच में आपातकाल के दौरान जब प्रेस पर सेंसर लगा था तब पत्रकारिता पर एक बार फिर थोड़े समय के लिए भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान को लेकर मिशन बन गई धीरे-धीरे पत्रकारिता प्रोडक्शन से सेंसेशन एवं सेंसेशन से कमीशन बन गई परंतु इन तमाम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराना उचित नहीं जैसे यदि किसी गाड़ी का एक पुर्जा टूट जाता तो धीरे धीरे दूसरा फिर तीसरा फिर पूरी गाड़ी बेकार हो जाती है समाज मे कुछ ऐसी ही स्थिति लागू हो रही है समाज मे हमेशा बदलाव आता रहता है विकल्प उत्त्पन्न होते रहते हैं ऐसी अवस्था मे समाज मे असमंजस की स्थिति आ जाती है।इस स्थिति में मीडिया समाज को नई दिशा देता हमीदिया समाज को प्रभावित करता है लेकिन कभी कभी ये केन प्रकारेण मीडिया समाज से प्रभावित होने लगता है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर देश की बदलती पत्रकारिता का स्वागत है बशर्ते वह अपने मूल्यों और आदर्शों की सीमा रेखा कायम रखे।। राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर कार्यक्रम को सम्बोधित करने वालो में वरिष्ठ पत्रकार रामबदन भार्गव, वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ उर्फ कल्लू केशरवानी वरिष्ठ पत्रकार सुशील केशरवानी अनुराग शुक्ला,राजू सक्सेना, सुबोध केशरवानी,राम प्रसाद गुप्ता नरेंद्र यादव, विनय मिश्रा, एनड़ी तिवारी,अंकित गुप्ता, प्रदीप पांडेय,संजय मिश्रा पवन मिश्रा  सन्तलाल मौर्य,जैगम अब्बास,अरविंद केशरवानी अमित कुमार त्रिपाठी उर्फ सोनू , धर्मेन्द्र सोनकर,ज्ञानू सोनी, मदन केशरवानी, राजकुमार, बृजेन्द्र केशरवानी, मोनू पाण्डेय,अमन केशरवानी रामबाबू, अजीत कुशवाहा, अंकित केशरवानी विष्णु सोनी,सुशील दिवाकर,सियाराम, मंजीत सिंह, गणेश साहू, नथन पटेल जितेंद्र मौर्या,सुनील चौधरी,सैयद अली, विजय मोदनवाल,राहुल यादव,मदन जायसवाल, आर्यवीर अश्वनी शशिभूषण सिंह, नवीद अहमद,अंकित करारी समीर अहमद अनुराग द्विवेदी अनुराग कुशवाहा राम कुमार गुप्ता सुनील कुमार कुशवाहा अनूप कुमार,फैज बाबा कौशलेंद्र प्रताप ,लक्ष्मण समीर अहमद आदि तमाम पत्रकार मौजूद। 


संतलाल मौर्या


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