बुधवार, 18 नवंबर 2020

नर्मदा नदी पार कर, महिला व बाल पोषण कार्य

पौष्टिकता के लिए निस्वार्थ सेवा


नंदुरबार। नर्मदा नदी पर सफर करना हर किसी के बस की बात नहीं। नदी की विशालता देखकर इसके ऊपर से गुजरने वालों का दिल दहल जाता है। एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व से 18 किलोमीटर का सफर करती हैं। रेलू महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के सुदूरवर्ती आदिवासी गांव चिमलखाड़ी में आंगनबाड़ी में कार्यकत्री हैं। उनका काम छह साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके विकास पर नजर रखना है। वह उनके वजन की जांच करती हैं और उन्हें सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली पोषण संबंधी खुराक देती है। मार्च में लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद, नर्मदा के दूसरे छोर के दोनों हिस्सों के आदिवासियों ने आंगनवाड़ी में आना बंद कर दिया। रेलू ने बताया, ‘आमतौर पर, बच्चे और गर्भवती महिलाएं भोजन एकत्र करने के लिए अपने परिवारों के साथ नाव से हमारे केंद्र पर जाती हैं। लेकिन उन्होंने वायरस के डर से आना जाना बंद कर दिया है।’ अपने पति रमेश के विपरीत, रेलू बचपन से तैराकी और रोइंग में माहिर हैं। दो छोटे बच्चों की मां रेलू छह महीने से लगातार नर्मदा नदी पार करके इन आदिवासी गांव तक पहुंच रही हैं। यहां तक की जुलाई में भी उन्होंने यहां जाना बंद नहीं किया जब नर्मदा में बाढ़ आई थी। रेलू सुबह 7.30 बजे आंगनवाड़ी पहुंचती है और दोपहर तक वहां काम करती है। दोपहर के भोजन के एक घंटे बाद, वह अपनी नाव से बस्तियों में जाती है और देर शाम को ही लौटती हैं। ज्यादातर बार वह भोजन की खुराक और बच्चे के वजन वाले उपकरणों के साथ अकेली जाती है। कभी-कभी उसकी रिश्तेदार संगीता, जो एक आंगनबाड़ी में काम करती है, उनके साथ जाती है। नाव से नदी पार करने के बाद रेलू को पहाड़ी इलाके पर चढ़ना पढ़ता है और फिर वह आदिवासियों तक पहुंचती हैं। रेलू ने कहा, ‘हर दिन नाव चलाना आसान नहीं होता है। जब शाम को मैं घर वापस आती हूं तो मेरे हाथों में दर्द होता है। लेकिन इसकी मुझे कोई चिंता नहीं है। यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे और गर्भवती महिलाओं तक पौष्टिक भोजन पहुंच सके। जब तक कोविड को लेकर स्थितियां सुधर नहीं जाती, तब तक मैं इन इलाकों तक ऐसे ही पहुंचती रहूंगी।’ आदिवासी रेलू की निस्वार्थ सेवा से अभिभूत हैं। अलीगाट के रहने वाले शिवराम वासेव ने कहा कि रेलू उनके यहां तीन वर्षीय भतीजे गोमता की जांच करने के लिए आती हैं। उन्होंने कहा, ‘रेलू हमें बच्चे की देखभाल करने के लिए मार्गदर्शन करती है और हर बार जब वह यहां आती हैं तो हम लोगों के स्वास्थ्य के बारे में हमसे सवाल करती हैं। हम बच्चे की स्वास्थ्य को लेकर उनके ऊपर निर्भर हैं।’                                       


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