बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

पाक संसद में प्रस्ताव पास, ईरान ने दी प्रतिक्रिया

फ्रांस के खिलाफ बांग्लादेश में सड़कों पर उतरे हज़ारों लोग पाकिस्तान संसद में प्रस्ताव पास ईरान ने भी दी कड़ी प्रतिक्रिया


पेरिस/ ढाका/ इस्लामाबाद। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ इस्लामिक दुनिया में लगातार रोष बढ़ता जा रहा है।फ्रांसीसी पत्रिका शार्ली हेब्दो में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून फिर से छपने के बाद से बढ़ा विवाद अब राजनयिक संकट का रूप ले चुका है। तुर्की, पाकिस्तान, बांग्लादेश, कतर, ईरान जॉर्डन समेत मुस्लिम देशों स कड़ी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। इसी को लेकर मंगलवार को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में फ़्रांसीसी सामानों के बहिष्कार की मांग के समर्थन में हज़ारों लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया। फ़्रांस के इस्लामिक अतिवाद के ख़िलाफ़ कड़े रुख़ के कारण विवाद बढ़ता जा रहा है। इसे लेकर इस्लामिक देशों से कड़ी प्रतिक्रिया आई है। ढाका में प्रदर्शनकारियों ने फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का पुतला जलाया। प्रदर्शनकारी ढाका स्थित फ़्रांसीसी दूतावास की तरफ़ बढ़ रहे थे। लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। इमैनुएल मैक्रों ने फ़्रांसीसी सेक्युलरिज़्म का बचाव किया था। और उसके बाद से वो कई मुस्लिम बहुल देशों के निशाने पर हैं।
पुलिस के अनुमान के मुताबिक़ फ़्रांस के ख़िलाफ़ मार्च में क़रीब 40 हज़ार लोग शामिल हुए. इस मार्च का आयोजन इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश ने किया था। यह बांग्लादेश की बड़ी इस्लामिक पार्टियों में से एक है। प्रदर्शनकारी फ़्रांसीसी सामानों के बहिष्कार का नारा लगा रहे थे। और राष्ट्रपति मैक्रों को सज़ा देने की मांग कर रहे थे। इस्लामी आंदोलन के नेता अताउर रहमान ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि मैक्रों उन चुनिंदे नेताओं में से एक हैं। जो शैतान की इबादत करते हैं। रहमान ने बांग्लादेश की सरकार से फ़्रांस के राजदूत को वापस भेजने की भी मांग की। बता दें कि फ्रांसीसी पत्रिका शार्ली हेब्दो में पैगंबर मोहम्मद साहब के कार्टून फिर से छपने के बाद से बढ़ा विवाद अब राजनयिक संकट का रूप ले चुका है। इस्लामिक दुनिया से कार्टून को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया आई तो इसी बीच फ्रांस के एक स्कूल में कार्टून पर चर्चा करने वाले एक शिक्षक का सिर कलम कर दिया गया। राष्ट्रपति मैक्रों ने इसे इस्लामिक आतंकवाद करार दिया और कार्टून छापे जाने के फैसले का बचाव किया. मैक्रों ने कुछ दिनों पहले ये भी कहा था। कि पूरी दुनिया में इस्लाम संकट में है। इसके साथ ही उन्होंने फ्रांस मौजूद इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात कही थी। इसके बाद से कई इस्लामिक देशों ने मैक्रों के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई और फ्रांसीसी सामान के बहिष्कार की अपील की।
इस मामले में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दवान सबसे आगे रहे। टर्की के बाद कतर, पाकिस्तान और ईरान भी खुलकर सामने आए। पाकिस्तानी संसद में फ्रांस के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया और ईरान की संसद में भी फ्रांस की मैक्रों सरकार की कड़ी आलोचना की गई। ईरान के सांसदों ने कहा कि मैक्रों फ्रांस में इस्लाम के प्रति लोगों के बढ़ते झुकाव से परेशान हैं। इसीलिए वो मुसलमानों को निशाने पर ले रहे हैं।
संसद में बहस के दौरान ईरान के सांसदों ने कहा मुसलमानों के खिलाफ मैक्रों का रुख उनकी उस बड़ी योजना का हिस्सा है। जिसके तहत वो इस्लाम के प्रति लोगों के बढ़ते आकर्षण को रोकना चाहते हैं। फ्रांस में इस्लाम के प्रति लोगों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। दुनिया भर के मुसलमानों को इस्लाम और पैगंबर को अपमानित करने के खिलाफ एकता दिखानी चाहिए। ईरान की सरकार ने पूरे मामले में तेहरान स्थित फ्रांसीसी दूतावास के राजदूत को समन भेजा और विरोध जताया है। ईरान ने फ्रांस के राजनयिकों से कहा कि पूरे मामले में फ्रांस का रुख अतार्किक रहा है। ईरान ने आरोप लगाया कि फ्रांस अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इस्लाम के प्रति नफरत को बढ़ावा दे रहा है। और यह दुर्भाग्यपूर्ण है। 25 अक्टूबर को इमैनुएल मैक्रों ने एक ट्वीट कर कहा था। हम झुकेंगे नहीं शांतिप्रिय मतभेदों का हम आदर करते हैं। हम नफरत फैलाने वाले भाषण स्वीकार नहीं करेंगे और विवेकपूर्ण बहस का आदर करते हैं। हम हमेशा मानवता के साथ खड़े रहेंगे। वहीं ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने आज यानी 27 अक्टूबर को अपने ट्वीट में लिखा है। औपनिवेशिक ताकतों और उनके समर्थकों ने के नफरत भरे अभियान के सबसे ज्यादा शिकार मुसलमान हुए हैं। कुछ चरमपंथियों के संगीन अपराधों की वजह से 1.9 अरब मुसलमानों और उनके धार्मिक स्थलों का अपमान करना मौकापरस्ती और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग है। ये चरमपंथी विचारधारा के लिए आग में घी का काम करेगा।
पाकिस्तान की संसद में सोमवार को मैक्रों के बयान को इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देने वाला करार दिया गया है। और फ्रांस से राजनयिक रिश्ते खत्म करने की मांग की गई है।
पाकिस्तान की संसद में पारित हुए प्रस्ताव में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) से 15 मार्च को इस्लामोफोबिया से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित करने की अपील की गई।


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