अफवाहें कैसी-कैसी ? 'संपादकीय'
कोविड-19 कोरोना वायरस के कारण ब्रह्मांड में अफरा-तफरी मची हुई है। ठंडे क्षेत्र अथवा राष्ट्र के लिए यह बहुत कष्ट कारक सिद्ध होगा। कोरोना वायरस को लेकर अलग-अलग तरह की अफवाहें फैल रही है। जिसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि अब मच्छरों से भी संक्रमण फैल रहा है।
यह एक मोनोपोली है जिसके तहत देश की अधिकांश जनता को पीड़ा और समस्याओं में जीवन यापन करना पड़ रहा है। किंतु उसके बावजूद भी देश का प्रत्येक नागरिक शासन और प्रशासन में विश्वास रखते हुए आगे बढ़ रहा है। लॉकडाउन जैसी व्यवस्था प्रतिस्थापित करने के बाद देश में अपराध इस हद तक बढ़ गया है। जिसका शायद देश के किसी नागरिक को भी अनुमान नहीं था। देश में सामूहिक दुष्कर्म, उसके बाद सामूहिक दुष्कर्म, उसके बाद नाबालिगों से सामूहिक दुष्कर्म और प्रशासनिक व्यवस्था का वास्तविक चेहरा देखकर प्रत्येक व्यक्ति का हृदय विचलित और विभोर होना स्वभाविक है। देश की आर्थिक व्यवस्था किस अवस्था से गुजर रही है, यह बात शायद किसी से छिपी नहीं है ? देश का प्रत्येक नागरिक इस बात के प्रति चिंतित है। देश के राष्ट्रपति को जन्मदिन की शुभकामना दी गई है। लेकिन राष्ट्रीय समस्याओं को लेकर किसी प्रकार का कोई मनन नहीं किया जाता है। केवल नीतियों को जनता पर लादने का कार्य किया जा रहा है। क्या भारत की जनता नरेंद्र मोदी की गुलाम है ? शायद इस गलतफहमी को पालने की गलती देश के प्रधानमंत्री ने कर ली हैं। देश की जनता लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्मित संविधान के अनुसार सहयोग कर रही है। देश में जनता का शासन है, जनता को पीड़ित करने के लिए किसी को शासक नहीं बनाया जाता है, यही लोकतांत्रिक व्यवस्था का सिद्धांत होता है। इसके बावजूद देश में अपराधिक गतिविधियां किस प्रकार से और किस दर से बढ़ रही है ? इसके अनुपात को देखकर मन भयभीत हो जाता है। इस प्रकार की सरकार जो महिलाएं, युवती और नारी समाज के प्रति समर्पित भाव के अनुसार कार्य नहीं कर रही है। ऐसी सरकार से क्या उम्मीद, क्या अपेक्षा की जा सकती है ? देश की जनता न सोई हुई है और न मुर्दा है। इसके बावजूद भी समर्पण की भावना के साथ देश के शासकों के साथ खड़ी हुई है। आखिर किस प्रकार के दंड का दंश जनता झेल रही है। सरकार की उदारवादी नीतियां राष्ट्र के कष्ट का कारण बनेगी।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020
अफवाहें कैसी-कैसी ? 'संपादकीय'
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