बुधवार, 30 सितंबर 2020

वास्तुशास्त्र के नियम और महत्व को समझें


नई दिल्ली। ईशान दिशा वास्तु शास्त्र के अनुसार सबसे पवित्र मानी गई है। इस दिशा का विस्तार 22.5 डिग्री से 67.5 डिग्री तक होता है। यह दिशा उत्तर और पूर्व का कोना होता है। इस दिशा के स्वामी भगवान शिव हैं। इस दिशा का आधिपत्य बृहस्पति देव के पास है। यह एक आध्यात्मिक दिशा है। ईशान दिशा में मंदिर का स्थान, स्नान गृह, बच्चों का कमरा,स्टडी रूम और बैठक शुभ रहती है। इस दिशा को सबसे स्वच्छ, खाली और नीचा रखना चाहिए।
घर के द्वार खिड़कियां इस और शुभ मानी गई है। यह दिशा घर में पुत्र संतान एवं धन समृद्धि की है। यदि यह दिशा दूषित है तो घर में धनधान्य की कमी आएगी। पुत्र-संतान से असंतोष मिलेगा। इस दिशा में कभी भी शौचालय, रसोईघर,जीना, गृह स्वामी कक्ष भूलकर भी ना बनाएं, नहीं तो घर का वातावरण खराब हो जाएगा। आपस में कलह, झगड़े एवं मनमुटाव होंगे। संतान को शारीरिक कष्ट, बीमारी हो सकती है। इसलिए वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान को हमेशा खाली रखने का आदेश दिया गया है। इस दिशा में  घर का ढलान बहुत शुभ होता है। 
जिन व्यक्तियों का मूलांक या भाग्यांक तीन होता है, उसके लिए यह दिशा बहुत शुभ होती है। अर्थात जिनका जन्म किसी भी मास की 3, 12,21,30 तारीख को हुआ है, उनका मूलांक 3 होता है। ऐसे व्यक्तियों को यह दिशा बहुत अनुकूल होती है। इस दिशा में कूड़ा, स्टोर, शौचालय आदि न बनवाएं, अन्यथा आपकी प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है और संतान सुख का अभाव हो सकता है। यदि इस दिशा में दरवाजा नहीं हो सकता तो कम से कम 1-2 खिड़की अवश्य छोड़ें। वास्तु शास्त्र में ईशान दिशा का बढ़ना बहुत शुभ माना गया है जबकि अन्य दिशाओं का बढ़ना अशुभ होता है। यदि यह दिशा कटी हुई है, छोटी है तो यह सारे मकान का वास्तु खराब कर देती है। इसलिए इस दिशा को समकोण रखें। इससे लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं। धन का आवागमन लगातार बढ़ता है। यदि इस दिशा में कुछ दोष है तो इस दिशा में एक शीशा लगा सकते है ताकि दिशा वृद्धि का भ्रम हो। इस दिशा में भारी समान तो भूलकर भी ना रखें क्योंकि यह दिशा वास्तु पुरुष का मस्तिष्क होता है। मस्तिष्क से ही सारे शरीर का संचालन होता है। 




                 

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