बुधवार, 30 सितंबर 2020

प्रसव पीड़ा में महिलाओं को कंधों पर उठाया

आखिर महिला को प्रसव पीड़ा में मरवाही के जंगलों के बीच काँधे पर उठाकर क्यों ले जाना पड़ रहा।


नई दिल्ली। आजादी के बाद इन 73 वर्षों में इस देश ने बहोत बड़े बड़े बदलाव देखे। कहीं झुग्गियां बड़ी इमारतों में तब्दील हो गयी,बैल गाड़ियों की जगह आज बड़ी गाड़ियों ने ले ली,कच्ची सड़कें आज हवाई सड़कों में बदल गयी। गौरव करने वाली बात है की आज देश के पास लगभग हजारों किमी प्रति घण्टे की रफ्तार वाले कुछ आधुनिक विमान है। वहीं धीमी रफ्तार और भटकते रास्तों के बीच पैदल पगडंडियों में चलना किसे नागवार नही गुजरेगा।
हम आज बात कर रहें मरवाही तहसील के छोटे से गांव भुकभुका की,जो छत्तीसगढ़ में नए जिले गौरेला पेंड्रा मरवाही के मगुरदा ग्राम पंचायत का हिस्सा है। इस गांव में बीस से पच्चीस छत्तीसगढ़ के विशेष आदिवासी समुदाय (धनवार,बैगा व गोंड़) के लोग रहते हैं। मूलभूत सुविधाओं से दूर घने जंगलों के बीच इन परिवारों का जीवन इस जंगल पर ही आश्रित है,न ही इनके पास कोई सड़क है,और न ही नजदीकी स्वास्थ्य व्यवस्था। जरूरत में मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए इन्हें खुद के बनाये पगडंडियों से लगभग दस किमी बाहर आना होता हैं,ऐसे में अचानक ही किसी को स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरत हो तो,स्थिति कितनी गंभीर व दयनीय होती होगी,इस वाक्ये से जानते हैं।
बीती 28 सितंबर को गाँव के भानमती पति बुद्धू सिंह उम्र तकरीबन 20 वर्ष को अचानक प्रसव पीड़ा होती है,मामले की गंभीरता को देखते हुए,वहां की स्वास्थ्य मितानिन 102 में कॉल कर स्वास्थ्य विभाग के महतारी एक्सप्रेस को सूचना देती है।कुछ ही समय में महतारी एक्सप्रेस को लेकर स्टाफ रामकुमार व उनके सहकर्मी जंगलों के बीच एक रास्ते से वहां तक पहुंचने की कोशिश करते हैं,लेकिन रास्ता न होने के कारण मरीज से कुछ किमी पहले ही उन्हें रुकना पड़ता है।इससे आगे की तस्वीर इनकी मजबूरी और पिछड़ेपन को बयां करती है,खटिये का झूला बनाकर उस पर महिला को लिटाकर परिवार 2 किमी पगडंडियों से होते हुए एम्बुलेंस तक काँधे में उठाकर ले आता है। महिला सही समय से अस्पताल पहुंचती है और प्रसव में जच्चा बच्चा स्वस्थ रहते हैं।मरवाही एमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन गणेश्वर प्रसाद बताते हैं,की क्षेत्र में ऐसे बहोत से गांव है,जहां की स्थिति ऐसी है।टिपकापानी,चाकाडाँड़,गंवरखोज,धौराठी कुछ ऐसे जगहों में से है जहां तक हमें पहुंचने के लिए बहोत मुसीबतें आती है,कभी कभी जान पर बन आती है।कभी घर पर ही प्रसव कराना पड़ता है,तो कभी स्ट्रेचर पर कई किमी तक मरीज को लाना पड़ जाता है।  लोकतंत्र में समान हिस्सेदारी लेकिन मूलभूत सुविधाओं में इतने पिछड़े क्यों? गांव जरूरी सामान,राशन लेने इसी रास्ते से सायकल या पैदल जाता है। पूरा गांव चुनाव में वोट भी डालता है पर सुविधाओं के नाम पर हमेशा खुद को ठगा महसूस करता है।             


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