बुधवार, 16 सितंबर 2020

महामारी, मौतें और मुआवजा 'संपादकीय'

महामारी, मौतें और मुआवजा संपादकीय 
विश्व में कोरोना वायरस कोविड-19 का संक्रमण अन्य देशों की अपेक्षा भारत में कुछ ज्यादा रफ्तार के साथ आगे बढ़ रहा है। कुछ ही कम एक लाख लोग प्रतिदिन संक्रमित हो रहे हैं। 24 घंटे में 90,123 संक्रमितो के साथ देश में संक्रमितो की संख्या 50,20,360 हो गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अभी तक 80,000 लोगों की मौत हो चुकी है। यह सिलसिला लगातार जारी रहेगा और वैक्सीन की उपलब्धता के पूर्व कई लोगों की जान भी चली जाएगी। महामारी का दंश झेलने वाला हमारा देश चीन की सीमा पर तनाव से भी कम आहत नहीं है। भले ही चीन भयभीत हो गया है और थरथर कांपने लगा है। किंतु किसी भी परिस्थिति में युद्ध दोनों देशों के लिए जटिलता उत्पन्न करने का काम करेगा। हालांकि यह भी कोई मोनोपॉली हो सकती है। फिलहाल इस विषय पर हम कोई बात नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं कोरोना महामारी की, जो लोग महामारी से ग्रस्त हैं। जिनके परिजनों की मृत्यु हो चुकी है। क्या सरकार को उनके परिवारों की सहायता नहीं करनी चाहिए ? परिस्थितिवश प्रतिकूल उपजे वातावरण और लाचारी में सरकार अपने दायित्व से नहीं भाग रही है।


यदि सच में कोई महामारी है तो अभी तक राज्य अथवा केंद्र सरकार ने मृतक के परिजनों को कोई मुआवजा क्यों नहीं दिया ? बाढ़, भूकंप, तूफान, सुनामी और महामारी आदि आपातकाल की स्थिति में सरकार के द्वारा मुआवजा देकर पीड़ितों की सहायता की जाती है। इसी कारण देश का प्रत्येक नागरिक इस प्रश्न का उत्तर खोज रहा है। महामारी के काल का ग्रास बनने वाले नागरिकों के परिजनों की सरकार किस प्रकार सहायता कर रही है ? यदि सरकार इस कठिन परिस्थिति में भी नागरिकों की सहायता नहीं कर रही है। तब नागरिकों के लिए यह और भी जटिल हो जाता है। यदि मृतक परिवार का मुखिया अथवा पालन करता है। परिजन आर्थिक रूप से कमजोर और निम्न आय वाले हैं। तब, सरकार उन लोगों की भी सहायता करने में कैसा संकोच कर रही है ? सरकार की उन्मुक्त क्षमताएं और निर्णय क्षमताओं में एक बड़ी असमानता है। जो देश की जनता को गहरे जख्म देने के अलावा कुछ नहीं कर सकेगी।


 राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'                  


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