गुरुवार, 6 अगस्त 2020

अयोध्या राम-मंदिर 'विचार'

 इस मौके पर पहले यह बताना ज़रूरी है कि अब तक इस मामले में पहले क्या कुछ महत्वपूर्ण हुआ जिसके परिणाम स्वरूप अब राम मंदिर बन रहा है। राम मंदिर निर्माण की पहली नींव सन् 1949 में रखी गई जब पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे और पंडित गोविंद वल्लभ पंत उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब 22-23 दिसंबर 1949 में प्रतिमा को गर्भ गृह में पंहुचाया गया था। इसके बाद सन् 1986 आता है जब डिस्ट्रिक्ट कोर्ट फैजाबाद ने मंदिर का ताला खोलने की अनुमति दी, तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और वीरबहादुर सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे….. उसी दिन कोर्ट के आदेश के बाद महज 40 मिनिट में यह ताला खुला था। फिर 1989 आता है , तब भी राजीव गांधी ही प्रधानमंत्री थे। उस समय पहली बार यहां शिलान्यास हुआ था …… तब राज्य के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी हुआ करते थे ….. जो लोग तब की राजनीति के बारें में जानते हैं उन्हे यह अच्छे से मालूम है कि मंदिर का ताला खुलवाने से लेकर शिलान्यास करवाने तक राजीव गांधी ने व्यक्तिगत् दिलचस्पी लेकर काम करवाया था। ….. और तो और राजीव गांधी ने 1989 में अपने चुनावी कार्यक्रम की शुरूआत ही अयोध्या (तब फैजाबाद जिला) से की थी , और यहीं उन्होंने राम राज्य का नारा दिया था। हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी इस कार्यक्रम के पक्ष में नहीं थे। तब राजीव गांधी ने तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को उत्तरप्रदेश भेजा ताकि वह इस पर आम राय बना सकें। फिर सबने संतो के साथ मिलकर 9 नवम्बर का महूर्त निकाला ….. जिसमें भूमि पूजन स्वंय स्वामि बामदेव ने किया था , वास्तुपूजा पंडित महादेव भट्ट और अयोध्या प्रसाद ने करवाई थी और खुदाई की शुरूआत स्वंय महंत अवैध्यनाथ ने की थी और पहली शिला एक दलित युवा कामेश्वर चौपाल के हाथों से रखवाई गई थी ताकि समाज में समरस्ता का संदेश प्रसारित हो। बाद में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति ने इसका विरोध किया , मार्च निकाला और गिरफ्तारियां दी। गांधी परिवार के कट्टर आलोचक रहे बीजेपी नेता सुब्रमण्यम् स्वामि भी कहतें हैं कि राजीव गांधी यदि दोबारा प्रधानमंत्री बनते तो राम मंदिर बन चुका होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं कांग्रेस चुनाव हार गई फिर 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई और राम मंदिर निर्माण अधूरा रह गया।
          अयोध्या में शिलान्यास कार्यक्रम के पश्चात् विश्व हिंदु परिषद् और बीजेपी, इस मामले पर ज़बरदस्त तरीके से सक्रिय हुई और मामले को राजनैतिक रंग दे दिया, राम के नाम पर वोट मांगे गए और उत्तरप्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई गई। फिर 1996, 1998, 1999 में बीजेपी नीत NDA की सरकारें बनीं। इस दौरान लालकृष्ण आडवाणी , मुरलीमनोहर जोशी , उमा भारती , विनय कटियार आदि राममंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता हुआ करते थे। लेकिन मामला कोर्ट में जाने के कारण किसी निष्कर्ष पर नहीं पंहुचा। साल दर साल बीतते गए और अंतः अब कहीं जाकर सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया है।
          इस ऐतिहासिक घटनाक्रम को बताने का उद्देश्य केवल इतना ही था कि आप जान सकें कि मंदिर निर्माण के लिए यदि किन्ही राजनेताओं का नाम लिया जाए तो वह कौन कौन थे और 1949 से लेकर 2020 तक मोदी जी का इस पूरे घटनाक्रम में कोई रोल नहीं था …… इतिहास बताता है कि मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाले पहले नायक जवाहरलाल नेहरू थे जिन्होंने मूर्ति रखवाई , दूसरे राजीव गांधी जिन्होंने ताले खुलवाए और शिलान्यास करवाया और तीसरे लालकृष्ण आडवाणी और राम मंदिर आंदोलन से जुड़े वह नेता जिन्होंने इस मामले को जिंदा रखा।
           हर घटना और हर परिस्थिति की अपनी गति अपना Momentum होता है , और वह स्वंय में परिवर्तनशील होती है , घटना की गतिशीलता और परिवर्तनशीलता का सिद्धांत कृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भाग्वत् गीता में विस्तार से समझाया है और व्यक्ति को निमित्त मात्र परिभाषित किया है। यह पूरा मामला भी अपनी गति से चला और परिवर्तनशीलता से सिद्धांत पर कोर्ट के द्वारा निष्कर्ष पर पंहुचा है। इस मामले में नरेंद्र मोदी तो केवल और केवल उद्धाटनकर्ता हैं। क्योंकि पूरे घटनाक्रम में तो उनका कोई योगदान था नहीं इसलिए केवल और केवल हल्ला मचाकर इस पूरे काम का श्रेय वह अपने सर लेना चाहते हैं और उनका पालतू मीडिया इस मामले में उनका सहयोग कर रहा है। हालत यह है कि देश का नेशनल नेटवर्क 4 और 5 अगस्त को अयोध्या में होने वाले पूरे कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण करेगा। सवाल यह है कि यदि कोर्ट का फैंसला मस्जिद के पक्ष में आता तो भी क्या आज इतना ही बड़ा आयोजन हो रहा होता और प्रधानमंत्री उस कार्यक्रम में हिस्सा लेते तथा देश का नेशनल टेलीवीजन नेटवर्क उसका सीधा प्रसारण कर रहा होता ? जवाब हम सभी जानतें हैं।
         इस पूरे आयोजन को देखकर यह साफ कहा जा सकता है कि मोदी जी प्रभु श्री राम का उपयोग अपना व्यक्तिगत् कद बढ़ाने के लिए कर रहें हैं। आयोजन का प्रचार पूरी तरह मोदी केंद्रित हैं टीवी पर प्रभु श्रीराम का जिक्र नहीं हैं लेकिन मोदी जी का नाम धर्म एवं राष्ट्र रक्षक के रूप में प्रचारित हो रहा है, मानों लंका जाकर रावण वध उन्होंने ही किया हो। नरेंद्र मोदी के पोस्टर प्रभु श्रीराम से बड़े लग रहें हैं और प्रभु श्रीराम तो कहीं नेपथ्य में जा चुके हैं। प्रचार को देखकर तो ऐसा लगता है कि मानो राम मंदिर नहीं “मोदी” मंदिर बन रहा है। मोदी जी के व्यक्तिवादी रवैये की पराकाष्ठा यह है कि मंदिर निर्माण के वास्तविक नायकों को श्रेय देना तो दूर  आज उनकी कोई पूछपरख भी नहीं की जा रही है, नेहरू जी और राजीव जी तो जीवित नहीं हैं लेकिन आडवाणी जी और राम मंदिर आंदोलन के बाकी सदस्य तो जीवित है आज उन्हें क्यों नहीं पूछा जा रहा है। क्या वह लोग केवल विवादित ढांचा गिराए जाने के मामले में कोर्ट केस भुगतने के लिए हैं और इस सागर मंथन से निकले अमृत को पीने का अधिकार केवल मोदी जी का है।    हरिओम उपाध्याय       


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