शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

इनके साथ क्या रवैया अपनाएगी सरकार

अनिल मिश्रा


लखनऊ। राजनीति और अपराध जगत का आत्मीय संबंध भी सुर्खियों में आ जाता है। उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर कई ऐसे नेता उपजे हैं। जिन्होंने इस सूबे की राजनीति को प्रभावित किया है। ऐसे ही यूपी का पूर्वांचल ऐसे ही प्रभावी नेताओं का गढ़ माना जाता है । अपराधियों को नेताओं का समर्थन हो या नेताओं की अपराधियों को कानून के शिकंजे से बचाने की कोशिश, आखिर दलों पर अपराधियों का ये कैसा असर है। छह दशक के भारतीय लोकतंत्र में अपराधी इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि कोई भी राजनीतिक दल उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रहा। पार्टियां उन्हें नहीं चुनती बल्कि वे चुनते हैं कि उन्हें किस पार्टी से लड़ना है। उनके इसी बल को देखकर उन्हें बाहुबली का नाम मिला है


अतीक अहमद देश की सियासत में कई ऐसे नेता हैं जिन्होंने जुर्म की दुनिया से निकलकर राजनीति की गलियों में कदम रखा और वे राजनीति में आकर भी अपनी माफिया वाली छवि से बाहर नहीं निकल पाए। उनके कारनामों ने हमेशा उन लोगों को सुर्खियों में बनाए रखा। यूपी की सियासत का एक ऐसा ही नाम है अतीक अहमद। इलाहाबाद के रहने वाले अतीक अहमद को एक खतरनाक बाहुबली नेता के तौर पर जाने जाते हैं। अतीक अहमद फूलपुर से सांसद रह चुके हैं। इस लोकसभा सीट से कभी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सांसद चुने गए थे। अतीक के 2014 के चुनाव में अपने हलफनामे के अनुसार उनके खिलाफ 42 मामले लंबित हैं। जिसमें हत्या की कोशिश, 6 अपहरण, 4 हत्या का आरोप हैं। इसमें सबसे सनसनीखेज मामला बसपा विधायक राजू पाल का है।


राजनीति में पहला कदम अपराध की दुनिया में नाम कमा चुके अतीक अहमद को समझ आ चुका था कि सत्ता की ताकत कितनी अहम होती है। इसके बाद अतीक ने राजनीति का रुख कर लिया। वर्ष 1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और विधायक भी बने। 1996 में इसी सीट पर अतीक को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और वह फिर से विधायक चुने गए।


बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप 2004 के आम चुनाव में फूलपुर से सपा के टिकट पर अतीक अहमद सांसद बन गए थे। इसके बाद इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट खाली हो गई थी। इस सीट पर उपचुनाव हुआ। सपा ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया था। मगर बसपा ने उसके सामने राजू पाल को खड़ा किया और राजू ने अशरफ को हरा दिया। उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद 25 जनवरी, 2005 को दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया था।


मुख्तार अंसारी पूर्वांचल से यू तो कई नेता आए लेकिन एक ऐसा भी नेता इस क्षेत्र से आया जो अपराध की दुनिया से राजनीति में आकर पूर्वांचल का रॉबिनहुड बन गया। उस बाहुबली नेता का नाम है मुख्तार अंसारी। प्रदेश के माफिया नेताओं में मुख्तार अंसारी का नाम पहले पायदान पर माना जाता है। मुख्तार अंसारी भी पूर्वांचल में बाहुबली नेता के तौर पर जाने जाते हैं। मऊ विधानसभा क्षेत्र में एक रिकॉर्ड चार बार से विधानसभा के एक सदस्य के रूप में निर्वाचित हो रहे हैं। उनके ऊपर बीजेपी के बाहुबली नेता कृष्णानंद राय की हत्या करवाने का आरोप है। हालांकि इस मामले में दोष सिद्ध नहीं हो सका है। कभी माफिया बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच शुरू हुई दुश्मनी से पूर्वांचल की धरती लाल हो गई थी। हालांकि दोनों गुटों के बीच हुए एक मुठभेड़ में बृजेश सिंह की मौत की खबर आई। लेकिन कई सालों के बाद बृजेश सिंह को नाटकीय अंदाज में जिंदा पकड़ लिया गया। अंसारी का कब्जा अब ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में है। जिसके दम उसने बहुत बड़ा व्यवसाय खड़ा कर लिया है। अब वह पूरी तरह राजनीति में सक्रिय है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसकी हर चाल ने प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी और और पूरी टीम को परेशान करके रख दिया था।


अपराध की दुनिया में कदम1988 में पहली बार हत्या के एक मामले में उनका नाम आया था। हालांकि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत पुलिस नहीं जुटा पाई थी। लेकिन इस बात को लेकर वह चर्चाओं में आ गए थे। 1990 का दशक मुख्तार अंसारी के लिए बड़ा अहम था। छात्र राजनीति के बाद जमीनी कारोबार और ठेकों की वजह से वह अपराध की दुनिया में कदम रख चुके थे। पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में उनके नाम का सिक्का चलने लगा था।


राजनीति में पहला कदम और गैंगवार1995 में मुख्तार अंसारी ने राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा। 1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए। उसके बाद से ही उन्होंने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया। 2002 आते आते इन दोनों के गैंग ही पूर्वांचल के सबसे बड़े गिरोह बन गए। इसी दौरान एक दिन ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया। दोनों तरफ से गोलीबारी हुई इस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए। ब्रजेश सिंह इस हमले में घायल हो गया था. उसके मारे जाने की अफवाह थी। इसके बाद बाहुबली मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेले गैंग लीडर बनकर उभरे. मुख्तार चौथी बार विधायक हैं।


उत्तरप्रदेश की योगी सरकार क्या अब इन अपराधियो के साथ भी विकास दुबे जैसा व्यवहार करेगी।क्या इन बड़े माफियाओं की संपत्ति को भी जप्त या नष्ट करने का कार्य होगा।आम जनता को योगी सरकार से काफी अपेक्षा है।अपराध जगत से संलिप्त माफियाओं का सफाया होना ही चाहिए।ये अपराधी राजनीति में आकर अपने आपको सुरक्षित करना चाहते है।ऐसे अपराधियो का राजनीति में आना पूरी तरह से बंद होना चाहिए। इस विषय पर देश के सभी राजनितिक दलो को मनन करना चाहिए।जब तक अतीक अहमद और अंसारी जैसे अपराधियो को राजनीति में आना बंद नही होगा तब तक हम स्वस्थ समाज के साथ स्वस्थ राजनीती की अपेक्षा नही रख सकते है। अब इनके जैसे सभी अपराधियो के साथ विकास दुबे जैसा ही रवैया अपनाने का समय है।तब ही ये गंदगी दूर होगी।           


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