बुधवार, 29 जुलाई 2020

दिल्ली दंगाः वकीलों का पैनल किया रद्द

रवि चौहान


नई दिल्ली। दिल्ली के उपराज्यपाल ने 15 मई को दिल्ली सरकार के पैनल को खारिज करते हुए दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूर कर लिया था। इस पर 17 मई को दिल्ली के गृह मंत्री ने रिपोर्ट बनाई थी। इसमें उन्होंने कहा था कि सरकारी वकील नियुक्ति का अधिकार दिल्ली पुलिस के पास नहीं है।
उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए कहा था कि यह काम दिल्ली सरकार का है। करीब 8 पेज के नोट में गृह मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का जिक्र करते हुए कहा था कि संविधान को बचाने के लिए ही एलजी चुनी हुई सरकार के जनहित से जुड़े निर्णय को अवलोकन के लिए राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। अगर जनहित के मसले को खारिज करेंगे तो उसका कारण बताएंगे। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का 2016 और 2018 का आदेश है कि सरकारी वकील को सरकार नियुक्त करेगी। ताजा मामला नॉर्थ ईस्ट दंगों को लेकर मंगलवार को दिल्ली हिंसा से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए बनाए गए वकीलों के पैनल पर चर्चा हुई. इस बैठक में कैबिनेट ने कहा कि दिल्ली हिंसा को लेकर कोर्ट पहले ही दिल्ली पुलिस की जांच को लेकर सवाल खड़े कर चुका है। इसीलिए दिल्ली पुलिस की तरफ से चुने गए वकीलों के पैनल से इस मामले की जांच कराना ठीक नहीं होगा। दिल्ली कैबिनेट ने इसे क्रिमिनल जस्टिस के सिद्धांतों के खिलाफ बताया।
दिल्ली कैबिनेट ने अपनी इस बैठक में उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस के प्रपोजल को स्टडी करते हुए कहा कि,
इस हिंसा को लेकर जो भी जिम्मेदार हैं उन्हें इसकी सजा जरूर मिलनी चाहिए। लेकिन इसी तरह इस मामले में किसी भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। इसीलिए दिल्ली कैबिनेट ने उपराज्यपाल के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली पुलिस ने जो वकीलों का पैनल तैयार किया है उसे मंजूरी दी जाए।
इस कैबिनेट बैठक में दिल्ली पुलिस पर हिंसा की जांच को लेकर उठ रहे सवालों का भी जिक्र किया गया। जिसमें सबसे पहले दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश कुमार का नाम लेते हुए कहा गया है कि उन्होंने कहा था, दिल्ली हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस पूरी न्यायिक व्यवस्था को ताक पर रख रही है। कैबिनेट ने कई सेशन कोर्ट और मीडिया रिपोर्ट्स का भी हवाला दिया, जिनमें दिल्ली पुलिस की जांच पर कई सवाल उठाए गए थे। कहा गया कि, दिल्ली पुलिस हिंसा मामलों की जांच में किसी को भी उचित न्याय नहीं दिला सकती है. जांच करने वाली एजेंसी को कभी भी वकील तय करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। क्योंकि ये सभी केस काफी सेंसिटिव हैं, इसीलिए अब दिल्ली सरकार के वकीलों का पैनल इन्हें देखेगा।
दिल्ली कैबिनेट की तरफ से जारी किए गए बयान में उपराज्यपाल पर भी तीखा हमला बोला गया है। जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को सिर्फ अत्यंत जरूरी मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जिक्र किया गया है। जिसमें कहा गया था कि चुनी हुई सरकार के फैसलों के खिलाफ उपराज्यपाल किसी बहुत जरूरी मामले में ही अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं। नहीं तो ये लोकतंत्र की भावना के खिलाफ होगा। कहा गया है कि वकीलों की नियुक्ति का मामला कोई बहुत बड़ा हस्तक्षेप करने वाला मामला नहीं है, इसीलिए दिल्ली सरकार को अधिकार है कि वो अपने वकील नियुक्त कर सकती है।गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में अतिरिक्त सेशंस जज धर्मेंद्र राणा ने कहा था। की ऐसा लगता है कि “जांच में सिर्फ एक पक्ष को निशाना बनाया जा रहा है।”मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, दंगों से जुड़े एक मामले पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में जज राणा ने कहा, “केस डायरी को पढ़ने से एक परेशान करने वाला तथ्य निकल कर आता है। ऐसा लगता है कि जांच में सिर्फ एक पक्ष को निशाना बनाया जा रहा है। जांच अधिकारी भी अभी तक ये नहीं बता पाए हैं कि दूसरे पक्ष की संलग्नता में क्या जांच की गई है।” जज ने मामले से संबंधित डीसीपी को केस पर “निगरानी” रखने को और “निष्पक्ष जांच सुनिश्चित” करने को कहा था।


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