सोमवार, 8 जून 2020

देश की तरक्की का आधार बना 'मनरेगा'

अकाशुं उपाध्याय


नई दिल्ली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून, 2005 यानी मनरेगा एक क्रांतिकारी और तर्कसंगत परिवर्तन का जीता जागता उदाहरण है। यह क्रांतिकारी बदलाव का सूचक इसलिए है, क्योंकि इस कानून ने गरीब से गरीब व्यक्ति के हाथों को काम और आर्थिक ताकत दी है। मनरेगा का पैसा सीधे उन लोगों के हाथों में पहुंचता है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। विरोधी विचारधारा वाली केंद्र सरकार के छह साल में और उससे पहले भी मनरेगा की उपयोगिता साबित हुई है।


अंतत: मोदी सरकार को मनरेगा के लाभ और सार्थकता को स्वीकारना पड़ा


मोदी सरकार ने इसकी आलोचना की, इसे कमजोर करने की कोशिश की, लेकिन अंत में उसे मनरेगा के लाभ और सार्थकता को स्वीकारना पड़ा। कांग्र्रेस सरकार द्वारा स्थापित की गई सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ-साथ मनरेगा सबसे गरीब और कमजोर नागरिकों को भूख एवं गरीबी से बचाने के लिए अत्यंत कारगर है। खासतौर से कोरोना महामारी के संकट के दौर में यह और ज्यादा प्रासंगिक है।


मनरेगा कानून एक लंबे जन आंदोलन द्वारा उठाई जा रही मांगों का परिणाम है


मनरेगा कानून एक लंबे जन आंदोलन तथा सिविल सोसायटी द्वारा उठाई जा रही मांगों का परिणाम है। कांग्रेस ने जनता की इस आवाज को सुना और अमली जामा पहनाया। यह हमारे 2004 के चुनावी घोषणापत्र का संकल्प बना। इस योजना के क्रियान्वयन के लिए अधिक से अधिक दबाव डालने वाले हर व्यक्ति को गर्व है कि यूपीए सरकार ने इसे लागू कर दिखाया।


मनरेगा का उद्देश्य गरीबी मिटाना है


इसका सार यही है कि गांवों में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को अब काम मांगने का कानूनी अधिकार है। सरकार द्वारा उसे न्यूनतम मजदूरी के साथ कम से कम सौ दिनों तक काम दिए जाने की गारंटी होगी। इसकी उपयोगिता बहुत जल्द साबित भी हुई। यह जमीनी स्तर पर काम का अधिकार देने वाला कार्यक्रम है, जो अपने में अभूतपूर्व है। इसका उद्देश्य गरीबी मिटाना है। मनरेगा की शुरुआत के बाद 15 वर्षों में इस योजना ने लाखों लोगों को भूख और गरीबी के कुचक्र से बाहर निकाला है।


मनरेगा को बंद करना व्यावहारिक नहीं


महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘जब आलोचना किसी आंदोलन को दबाने में विफल हो जाती है तो उस आंदोलन को स्वीकृति और सम्मान मिलना शुरू हो जाता है।’’ उनकी इस बात को साबित करने का मनरेगा से ज्यादा अच्छा उदाहरण और कोई नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी समझ आया कि मनरेगा को बंद करना व्यावहारिक नहीं। हालांकि उन्होंने आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग कर कांग्रेस पर हमला बोला और इस योजना को ‘कांग्रेस की विफलता का एक जीवित स्मारक’ तक कह डाला।


मोदी सरकार ने मनरेगा को खोखला करने की पूरी कोशिश की


पिछले सालों में मोदी सरकार ने मनरेगा को खत्म एवं खोखला करने की पूरी कोशिश की, लेकिन मनरेगा के सजग प्रहरियों, अदालत और विपक्षी दलों के भारी दबाव के चलते उसे पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा। इसके बाद केंद्र ने मनरेगा को स्वच्छ भारत तथा पीएम आवास योजना जैसे कार्यक्रमों से जोड़कर इसका स्वरूप बदलने की कोशिश की, जिसे सुधार कहा गया, लेकिन यह कांग्रेस की योजनाओं का नाम बदलने का प्रयास मात्र था। मनरेगा श्रमिकों को भुगतान में देरी की गई और उन्हें काम तक देने से इन्कार किया गया।


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