रविवार, 14 जून 2020

देश और समाज में ऐसो हैं...

देश व समाज मे ऐसो है, कछु जन

काम बिगाडन उनकी ही आदत है,

बोलते मीठास है, ठगते असीमजन 

किसीम-किसीम ऐसे प्यारे जन है।

देखत सुन्दर लगे काम, अधम-जन

पीठ पीछे घात करने मे माहिर है।

काम बिगाडन मे आनंद मिलत ही

स्वयं को उस अधम मे फसावत है।

जिस डाली बैठे उसे काटत दिखत

कलियुगी कालीदास बन लखत है।

लम्बा-चौडा तन ही मन अधम रहत 

पल-पल मीठास संग क्षति देते है।

काया पलट मे ही मन लगत रहत

माया की महिमा संग क्रीडा करत है।

भोर उठ देख लेते मन बिचार ही

लोरिका की बानी मे स्वय रहत है।

इह समाज की कीरत बखानत ही

कुटिल कुटज बाना तन ही दिखत है।

ओम उस अधम की दम्भ मरी दास्तान सुन

मन ही मन सुघर सोच को गोहरावत है।

ओमप्रकाश द्विवेदी

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