सोमवार, 27 अप्रैल 2020

सांस्कृतिक धरोहर 'भगवा ध्वज'

भारत की सनातन संस्कृति की धरोहर का सांस्कृतिक दूत है परम पवित्र भगवा ध्वज


कल झारखंड में कुछ हिन्दू व्यवसायी द्वारा अपने दुकान प्रतिष्ठान पे पर परम पवित्र भगवा ध्वज फहराने पे उन्हें रोका गया और उसी संदर्भ में उनके खिलाफ तहरीर भी लिखी गयी। जिसको लेकर हमने एक पोस्ट  डाली थी ,पोस्ट पर कुछ अतिविशिष्ट ज्ञानियों द्वारा ये मत दिया गया कि परम पवित्र भगवा ध्वज केवल देवालयों आवासों पर ही फहराया जा सकता है।


संस्कृति की समग्रता, राष्ट्रीय एकता जिसमें समाहित है,,आदि काल से वैदिक संस्कृति, सनातन संस्कृति, हिंदू संस्कृति, आर्य संस्कृति, भारतीय संस्कृति एक दूसरे के पर्याय हैं जिसमें समस्त मांगलिक कार्यों के प्रारंभ करते समय उत्सवों में, पर्वों में, घरों- मंदिरों- देवालयों- वृक्षों, रथों- वाहनों ,व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर भगवा ध्वज या केसरिया पताकाएं फहराई जाती रही हैं। यह ध्वजा परम पुरुषार्थ को प्राप्त कराती है एवं सभी प्रकार से रक्षा करती है।
हमारे धर्म हमारे कर्म क्षेत्र से जुड़े है ,फिर ऐसा मत क्यो??
कोई बताएगा कि क्या परम पवित्र भगवा ध्वज क्या देवालयों पर ही फहराया जा सकता है ??
किस वैदिक परिपाटी के अंतर्गत ये ,परिभाषित होता है ??


भारत में वैदिक काल से आज तक यज्ञ एवं ध्वज का महत्व है| भारत में, जिसे जम्बूद्वीप भी कहा जाता है, यज्ञमय यज्ञ पुरुष भगवान विष्णु का सदा यज्ञों द्वारा वंदन किया जाता है| यज्ञ भगवान विष्णु का ही स्वरूप है, यज्ञों यग्योमयी विष्णु यज्ञ की अग्नि शिखाएं उसी की आभानुसार भगवा रुप भगवा ध्वज बन,,अग्नि स्वर्ण को तपा कर शुद्ध सोना बना देती है,, शुद्धता त्याग, समर्पण, बलिदान, शक्ति और भक्ति का संदेश देती है| उसकी स्वर्णमयी हिरण्यमयी चमकती सी आमा का रंग ही तो भगवा ध्वज में दिखता है,,


हिंदू संस्कृति में सूर्य की उपासना प्रभात वेला में की जाती है| सूर्योदय के समय उपस्थित सूर्य की लालिमा भगवा ध्वज में समाहित है,,उसकी सर्वमयी रश्मियां अंधःकार को नष्ट करती हुई जग में प्रकाश फैलाती है,,अज्ञानता का, अविद्या का नाश करती है और प्रकृति में ऊर्जा का संचार करती है। प्रत्येक प्राणी अपने कार्य में जुट जाता है,, बड़े- बड़े संत महात्मा, ऋषिमुनि, त्यागी तपस्वी इससे ऊर्जा प्राप्त करते हैं| सैनिक लड़ाई के मैदान में जाते हैं तो केसरिया पगड़ी धारण करते हैं,, केसरिया बाना उन्हें जोश और उत्सर्ग करने की प्रेरणा देता है, उनके रथों में, हाथों में भगवा पताकाएं फहराती हैं। भगवे ध्वज में सूर्य का तेज समाया हुआ है। यह भगवा रंग त्याग, शौर्य, आध्यात्मिकता का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा सारथ्य किये गये अर्जुन के रथ पर भगवा ध्वज ही विराजमान था। भगवा रंग भारतीय संस्कृति का प्रतीक है| उसके बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती है| वेद, उपनिषद, पुराण श्रुति इसका यशोगान करते हैं| संतगण इसकी ओंकार, निराकार या साकार की तरह पूजा अर्चना करते हैं। चाहे गृह प्रवेश हो, पाणिग्रहण संस्कार हो या अन्य कोई हिंदू रीति-रिवाज, पूजा पर्व, उत्सव हो ,व्यावसायिक प्रतिष्ठान हो ,घर के शिखर पर प्रतिष्ठान के शिखर पर  ध्वजा फहराई जाती है और भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि प्रभु हम सब का मंगल करें।


भगवान गरुड़ द्वारा रक्षित एवं सेवित ध्वजा हमारा मंगल करें,, हमारे ऊपर आने वाली विघ्न-बाधाएं दूर करें,,हमारे मंदिर, मकान,  व्यावसायिक प्रतिष्ठान महल, भवन, आवासीय परिसर से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त करें, नष्ट करें,,शिखर पर फहराने से समस्त विघ्न-बाधाएं, अनिष्टकारी शक्तियां, अलाय-बलाय व पाप नष्ट हो जाता है| गरुड़ ध्वजा हमारे लिए सुख समृद्धि, शक्ति और दैवीय कृपा सहित कल्याणकारी हो।
संदीप गुप्ता


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