गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

बरकरार रह पाएगी उद्धव की कुर्सी ?

मुंबई। महाराष्ट्र विधान परिषद में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सदस्यता को लेकर पेंच फंसा हुआ है। महाराष्ट्र सरकार के गठन के बाद पांच महीने का समय बीत गया है, लेकिन उद्धव ठाकरे अभी तक विधानसभा या विधान परिषद में नहीं पहुंच सके हैं। महा विकास आघाडी सरकार का उद्धव को विधान परिषद भेजने का प्रयास काफी तेजी से चल रहा है। वरिष्ठ मंत्रियों का प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलने और उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य मनोनीत करने का प्रस्ताव लेकर राजभवन पहुंचा, लेकिन राज्यपाल ने अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। ऐसे में उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर खतरा मंडराने लगा है।


अगर राज्यपाल उद्धव ठाकरे को मनोनीत नहीं करते हैं, तो उन्हें इस्तीफा देकर अपना सीएम पद छोड़ना पड़ सकता है। ऐसे में हमने संविधान विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी और सुब्रमण्यम स्वामी से बातचीत की। आइए, जानते हैं कि संविधान के जानकारों का इस विषय पर क्या कहना है-


1. महाराष्ट्र के गवर्नर, कैबिनेट की सिफारिश मानने के लिए बाध्य हैं।


2. गवर्नर विशेष परिस्थिति में कुछ और डिटेल्स मांग सकते हैं, लेकिन कैबिनेट से दोबारा सिफारिश किए जाने पर गवर्नर को मानना ही होगा।


3. छह महीने के भीतर किसी सदन का सदस्य नहीं बन पाने की वजह से जयललिता को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर कोर्ट ने साफ किया था कि छह महीने की मोहलत एक बार इस्तेमाल करने के लिए है।


4. क्या नॉमिनेटेड मेंबर के तौर पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकते हैं? तो इसके जवाब में सबका मानना है कि कानूनी तौर पर इसकी मनाही नही है, नैतिकता की बात अलग है।


5. संविधान के अनुच्छेद 171 (3) (E) के तहत राज्यपाल, विधान परिषद में कुछ सदस्यों को मनोनीत करते हैं। अनुच्छेद 171 (5) के मुताबिक उन लोगों को राज्यपाल मनोनीत करता है, जिन्होंने लिट्रेचर, साइंस, आर्ट, को-ऑपरेटिव मूवमेंट और सोशल सर्विस के क्षेत्र में कोई विशेष कार्य किया हो।


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