रायपुर। बीती रात सुकमा के एलमागुड़ा इलाके में नक्सलियों से पुलिस की मुठभेड़ हुई। मुठभेड़ अचानक नहीं हुई थी। पुलिस पार्टी ने ऑपरेशन चलाया था। पुलिस का ये दांव उल्टा पड़ता दिख रहा है। 14 जवान घायल हुए हैं जिनका रायपुर में इलाज चल रहा है। उनमें दो की हालत बेहद गम्भीर बताई जा रही है। करीब इतने ही जवान लापता बताए जा रहे हैं जिनकी तलाश आज की जाएगी। और उपलब्धि के नाम पर 7 बड़े इनामी नक्सलियों के मारे जाने की खबर दी जा रही है। लेकिन शव एक भी बरामद नहीं हुआ है। अब सवाल यह उठता है जब सारा देश कोरोना से जूझ रहा है अघोषित इमरजेंसी जैसे हालात हैं आज जनता कर्फ्यू है अस्पतालों में डॉक्टर कोरोना से लड़ने में व्यस्त हैं ऐसे में इतना बड़ा ऑपरेशन चलाना बड़ा अजीब सा लगता है। और फिर जब इतनी बड़ी पार्टी ऑपरेशन के लिए गई तो क्या वजह थी के पुलिस को इतना बड़ा नुकसान उठाना पड़ गया? क्या योजना फुल प्रूफ नहीं थी? और अगर नहीं थी तो हड़बड़ी में ऐसे ऑपरेशन चलाने की जरूरत क्या थी? सबसे हैरानी की बात तो यह है के जब आपको पता है अस्पतालों में सारी ताकत कोरोना से लड़ने के लिए लगी हुई है तब आप ऐसे ऑपरेशन चलाकर क्या साबित करना चाह रहे थे? आज 14 घायलों को रायपुर के अस्पताल लाया गया यहां डॉक्टर उनके इलाज में व्यस्त हो गए हैं। और कोरोना से लड़ाई के लिए लगी ताकत आधी हो गई। फिर पुलिस के कितने जवान मारे गए हैं ये भी पता भी नहीं चला है और 7 नक्सली मारे गए तो उनके शव तक नही मिले है।शव नही मिलने से इस बात को कैसे मान लिया जाए के 7 नक्सली मारे गए है? और सिर्फ 7 नक्सलियों को मारने के लिए आप इतनी बड़ी संख्या में पुलिस के जवानों को क्यो झोंक रहे है? और उसके बदले में 5 गुना जवानों का नुकसान क्यो उठा रहे हैं? यह कौन सी अकलमंदी है? ऐसा लगता है कि पुलिस फोर्स अभी नेतृत्व विहीन है या फिर पब्लिसिटी के लिए कुछ भी करने पर उतारू है। कल के ऑपरेशन का फेल होना ना केवल नक्सलियों के हौसले बढ़ाएगा बल्कि कहीं न कहीं वह पुलिस के मनोबल को भी तोड़ने वाला साबित होगा। पुलिस को चाहिए ऐसे बड़े ऑपरेशन के पहले कम से कम योजना तो ढंग से बना ले। अपने प्रदेश में अगर योग्य अफसर ना तो पास पड़े पड़ोस के प्रदेशों के योग्य अफसरों से भी मदद ली जा सकती है। सरकार को भी चाहिए पुलिस की ऐसी निरंकुशता पर अंकुश लगाए। इस तरह के ऑपरेशन और ऐसे कठिन दौर में समझ से परे है।
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