रविवार, 23 फ़रवरी 2020

'सत्य स्वरूप शिव' (अध्यात्म)

राम का व्यक्तित्व मर्यादित है, कृष्ण का उन्मुक्त और शिव असीमित व्यक्तित्व के स्वामी, वो आदि हैं और अंत भी। शायद इसीलिए बाकी सब देव हैं और केवल शिव महादेव। वो उत्सव प्रिय हैं, शोक, अवसाद और अभाव में भी उत्सव मनाने की उनके पास कला है। वो उस समाज में भरोसा करते हैं जो नाच-गा सकता हो, यह शैव परंपरा है। अतएव यह कहना उचित होगा कि उदास परंपरा बीमार समाज बनाती है। शिव का नृत्य श्मशान में भी होता है, श्मशान में उत्सव मनानेवाले वो अकेले देवता है और लोक गायन में भी वो उत्सव मनाते दिखते हैं।
खेले मसाने में होरी दिगंबर  खेले मसाने में होरी।
भूत, पिशाच, बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी।।
शिव विलक्षण समन्वयक हैं:- विपरीत ध्रुवों और विषम परिस्थितियों से अद्भुत सामंजस्य बिठाने वाला उनसे बड़ा कोई दूसरा भगवान नहीं है। मसलन वो अर्धनारीश्वर होकर भी काम पर विजेता हैं। गृहस्थ होकर भी परम विरक्त हैं, नीलकंठ होकर भी विष से अलिप्त हैं। उग्र होते हैं तो तांडव, नहीं तो सौम्यता से भरे भोला भंडारी। परम क्रोधी पर दयासिंधु भी शिव ही हैं। विषधर नाग और शीतल चंद्रमा दोनों उनके आभूषण हैं, उनके पास चंद्रमा का अमृत है और सागर का विष भी। सांप, सिंह, मोर, बैल, सब आपस का बैर-भाव भुला समभाव से उनके सामने है। वो समाजवादी व्यवस्था के पोषक, वो सिर्फ संहारक नहीं कल्याणकारी, मंगलकर्ता भी हैं।
शिव गुट निरपेक्ष हैं:- सुर और असुर दोनों का उनमें विश्वास है, राम और रावण दोनों उनके उपासक हैं। दोनों गुटों पर उनकी समान कृपा है, आपस में युद्ध से पहले दोनों पक्ष उन्हीं को पूजते हैं। लोक कल्याण के लिए वो हलाहल पीते हैं, वो डमरू बजाएं तो प्रलय होता है। प्रलयंकारी इसी डमरू से संस्कृत व्याकरण के चौदह सूत्र भी निकलते हैं। इन्हीं माहेश्वर सूत्रों से दुनिया की कई दूसरी भाषाओं का जन्म हुआ। आज पर्यावरण बचाने की चिंता विश्वव्यापी है, शिव पहले पर्यावरण प्रेमी हैं, पशुपति हैं, निरीह पशुओं के रक्षक हैं। आर्य जब जंगल काट बस्तियां बसा रहे थे, खेती के लिए जमीन तैयार कर रहे थे, गाय को दूध के लिए प्रयोग में ला रहे थे पर बछड़े का मांस खा रहे थे। तब शिव ने बूढ़े बैल नंदी को वाहन बनाया, सांड़ को अभयदान दिया और जंगल कटने से बेदखल सांपों को आश्रय दिया।
वो साकार हैं, निराकार भी:- कोई उपेक्षितों को गले नहीं लगाता, महादेव ने उन्हें गले लगाया। श्मशान, मरघट में कोई नहीं रुकता, शिव ने वहां अपना ठिकाना बनाया। जिस कैलास पर ठहरना कठिन है, जहां कोई वनस्पति नहीं, प्राणवायु नहीं, वहां उन्होंने धूनी लगाई। दूसरे सारे भगवान अपने शरीर के जतन के लिए न जाने क्या-क्या द्रव्य लगाते हैं लेकिन शिव केवल भभूत का इस्तेमाल करते हैं। उनमें रत्ती भर लोक दिखावा नहीं है, क्योंकि शिव उसी रूप में अपने विवाह के लिए भी जाते हैं जिसमें वे हमेशा रहते हैं।
शिव न्यायप्रिय हैं:- वो सदैव मर्यादा तोड़ने पर दंड देते हैं, काम बेकाबू हुआ तो उन्होंने उसे भस्म किया। अगर किसी ने अति की तो उनके पास तीसरी आंख भी है, दरअसल तीसरी आंख सिर्फ ‘मिथ’ नहीं है, आधुनिक शरीर शास्त्र भी मानता है कि हमारी आंख की दोनों भृकुटियों के बीच एक ग्रंथि है और वो शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा है व रहस्यपूर्ण भी। इसे ‘पीनियल ग्रंथि’ कहते हैं, यह हमेशा सक्रिय नहीं रहती पर इसमें संवेदना ग्रहण करने की अद्भुत ताकत है। इसे ही शिव का तीसरा नेत्र कहते हैं, उसके खुलने से प्रलय होगा, ऐसी अनंत काल से मान्यता है।
वो काल से परे महाकाल हैं:- शिव का व्यक्तित्व विशाल है, सर्वव्यापी हैं, सर्वग्राही हैं। सिर्फ भक्तों के नहीं, देवताओं के भी संकटमोचक हैं। शिव का पक्ष सत्य का पक्ष है, उनके निर्णय लोकमंगल के हित में होते हैं। जीवन के परम रहस्य को जानने के लिए शिव के इन रूपों को समझना जरूरी होगा, क्योंकि शिव उस आम आदमी की पहुंच में हैं जिसके पास मात्र एक लोटा जल है।


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