गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

पतित-पावन 'उपन्यास'

पतित-पावन     'उपन्यास' 
गतांक से...
 कल्पना ने उत्सुकता से कहा- वहां तो बहुत सारे आचार्य होंगे, तुम्हें डर नहीं लगेगा।
जया ने कहा- वहां केवल अध्यापिका ही पढ़ाती है, रही बात उनके स्वभाव की, वह तो वही जाकर पता लग पाएगा। रही बात दिल लगने की, तुम्हारी याद जो साथ रहेगी। अतीत में जाकर तुम्हारी बातों को याद करके आराम से टाइम कट जाएगा। कल्पना ने जया की बात काटते हुए कहा- चलो मैं तुम्हे एक कहानी सुनाती हूं। 
जया आश्चर्य से कल्पना की ओर देखती रही- ठीक है, सुनाओ। कल्पना आराम से आलती-पालती लगाकर बैठ जाती है और खखार कर कहने लगी- एक वन में एक समी का बहुत बड़ा वृक्ष था। वह वृक्ष बहुत पुराना और विशालकाय था। उस वृक्ष पर हजारों पशु-पक्षी निवास करते थे। उस वृक्ष के नीचे कई पशु, जंगली जानवर सुरक्षित रहते थे। वृक्ष का फैलाव काफी दूर तक हो गया था और उसकी गहरी छाया में बहुत सारे जंगली पशु, पक्षी, जीव-जंतु आराम करते थे। शमी का वृक्ष सभी जीव जंतुओं को समान रूप से शुद्ध वायु और शांत वातावरण प्रदान करता था। इसी कारण तोते, कबूतर, बंदर, जंगली सूअर, गीदड़ आदि बहुत सारे जंगली पशु-पक्षी उस पेड़ के आगोश में रहते थे। उसकी गहरी छाया में हिंसक और अहिंसक दोनों ही प्रकार के जीव खुशी-खुशी रहते थे। एक बार एक मस्त हवा का झोंका वृक्ष के पास आया, आकर वृक्ष से गुम गया, परंतु वह मस्त हवा का झोंका भारी भरकम शमी के वृक्ष में इस कदर लुप्त हो गया की कई घंटों तक वह वहां से निकल ही नहीं पाया। इस प्रकार से अपनी दुर्दशा पर वह बहुत लज्जित हुआ और स्वभाविक रूप से वह क्रोधित भी हो गया। क्रोधित होकर उसने वृक्ष से कहा कल बहुत तेज आंधी-तूफान बन कर आऊंगा। कल मैं देख लूंगा आज तूने मेरे साथ भद्दा मजाक किया है। हवा का झोंका चेतावनी देकर वहां से चला गया।
 लेकिन उसके कहे हुए शब्द शमी के वृक्ष के मस्तिष्क में गूंजने लगे। शमी के वृक्ष ने इस बात का अनुमान लगाया था कि आंधी-तूफान हकीकत में मुझे जड़ से उखाड़ देगा। अब अपनी आत्मरक्षा के लिए मैं क्या करूं? वह इसी प्रकार बहुत सारे उपाय सोचने लगा। झोंके ने चेताया है कि वह कल आंधी तूफान बन कर आएगा। क्रोध और आवेश में वह इस प्रकार विचलित हो गया है कि वह कल अवश्य आएगा। शमी का वृक्ष इस बात से वाकिफ हो गया था। हवा के झोंके को आत्मग्लानि महसूस हुई है और इसे अपना अपमान मानकर अपनी संपूर्ण शक्ति लगा देगा। इस अपमान के बदले वह मुझे अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। हवा के झोंके ने अपना रूप बदलने के लिए अपना विस्तार प्रारंभ कर दिया। उधर समी ने बहुत सोच-विचार करने के बाद सभी पशु-पक्षियों को संबोधित किया। जितने भी पशु-पक्षी, जीव-जंतु मेरा आश्रय पाते हैं। उन सभी से मेरा अनुरोध है कि शीघ्र अति शीघ्र अपने बच्चे, अंडे मुझ से हटा ले। क्योंकि जल्दी यहां आंधी-तूफान आने वाला है और ऐसी स्थिति में मेरा उखड़ कर गिरना निश्चित है। इससे पहले की आंधी-तूफान आ जाए। तुम सभी सुरक्षित हो जाओ और जल्दी-जल्दी मुझे छोड़ दो। सभी पशु-पक्षी, जीव-जंतु एक साथ चिल्लाए। तुम्हें कैसे पता है कि आंधी-तूफान आने वाला है? शमी के वृक्ष ने सभी जीव-जंतुओं को हवा के झोंके वाली बात बताई, और झोंके के द्वारा दी गई चेतावनी की भी जानकारी दी। इस पर पशु- पक्षी उदास हो गए। जब किसी पक्षी ने पूछा- क्या इसका कोई उपाय नहीं है? शमी के वृक्ष ने कहा- इसका उपाय है। खासकर बंदर इस बात को ध्यान से सुने। अगर बंदर कहीं से तेजधार हथियार ले आए और मेरे चारों तरफ फैले हुए पत्तों की भारी शाखाओं को काट दे तो शायद हम सब सुरक्षित रह सकते हैं। सभी पशु-पक्षी, जीव-जंतु भयभीत और चिंतित हो गए थे। सभी शमी के वृक्ष पर चिल्लाने लगे। तुमने हमारे बच्चे और अंडे तथा घौंसले के बारे में कुछ भी नहीं सोचा है। अब हमारा क्या होगा?
 शमी के वृक्ष ने उन्हें समझाते हुए कहा- तुम सभी मेरे प्राणों की रक्षा चाहते हो और अपने परिवारों की रक्षा चाहते हो तो तुम्हें ऐसा ही करना होगा और घबराने की आवश्यकता नहीं है। कुछ ही महीनों के बाद नए पत्ते और शाखाएं आ जाएगी और मैं फिर से हरा-भरा और विशाल हो जाऊंगा। कुछ समय तुम्हें समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। वह भी बहुत कठिन समस्या नहीं है। लेकिन अगर तुमने आज मेरे पत्ते और शाखाओं को नहीं काटा तो आंधी-तूफान मुझे जड़ से उखाड़ देगा। अब तुम्हें क्या करना है यह तुम सोच सकते हो? विचार-विमर्श करने का समय नहीं है। जल्दी ही तुम्हें कुछ ना कुछ फैसला लेना होगा। बंदरों की अक्ल में बात आ गई और वह गांव की तरफ भागे। जल्दी तो-तीन बंदर तेजधार हथियार उठाकर ले आए और सुबह होने से पहले ही शमी के वृक्ष की भारी शाखाएं नीचे आ गिरी थी। अब उसके चारों तरफ कुछ ही शाखाएं और पत्ते रह गए थे। हवा के झोंके की चेतावनी के अनुसार आंधी-तूफान का रूप धारण करके सुबह की पहली किरण के साथ झोका तूफान बन कर आ गया। आंधी-तूफान का वेग इतना कठिन था कि आसपास के पेड़ जड़ से उखाड़ने लगे। शमी का वृक्ष भी घबरा गया था। लेकिन उसने अपनी अक्लमंदी से स्वयं को खतरे से बाहर कर लिया था। आंधी-तूफान चारों तरफ देखता रहा, लेकिन उसे वह शमी का वृक्ष कहीं दिखाई नहीं दिया। आंधी-तूफान शमी के वृक्ष के चारों तरफ तेज गति से आवागमन करने लगा। लेकिन शमी के वृक्ष का कुछ भी न बिगाड़ सका। इस पर लज्जाकर आंधी-तूफान ने कहा- मूर्ख शमी जब कोई निर्वस्त्र हो जाता है तो उसको कोई कुछ नहीं कर पाता है। 
कल्पना ने लंबी सांस लेकर 
कहा- जया कभी-कभी अधिक चतुराई आदमी को निर्लज्ज और निर्वस्त्र कर देती है। पता नहीं मैं तुम्हारी मित्रता निभा पाऊंगी या नहीं शायद कमजोर पड़ जाऊंगी। क्योंकि मेरी खुदगर्जी मुझे अपमान की चादर भी नहीं होने देगी। मैं फिर भी समस्याओं की वेदना बन कर घायल नागिन की भांति हो जाओगी। मेरी बहनों में मुझे तुम्हारा प्रतिबिंब दिखने लगा है और मैं व्यर्थ ही कोशिश क्यों करूं?
 जया ने कहा- तुम कैसी बातें करती हो, सही अर्थ मालूम नहीं होता है? क्या कहती हो समझ में नहीं आता है? देखो मुझे किसी बात से कोई लेन-देन नहीं है। मुझे तुमसे मित्रता रखनी है, सो हम मित्र है। 
कल्पना ने कहा- मित्रता का अर्थ भी नहीं जानते हैं, इसकी परिभाषा भी नहीं जानते हैं। मित्रता किसे कहते हैं?
 जया ने सरलता से उत्तर दिया- मित्रता आत्माओं का संबंध है जो सभी नाते और रिश्तो से अलग है। सबसे विशेष बंधन जो दुख में राहत लाए, सुख में खुशियां बढ़ाएं। दुख-सुख को बांटने के अधिकारी होते हैं। जीवन में गलती होने पर सुधार के उपाय-उपचार करें। मित्र को सही रास्ता दिखाएं, जो अपने मित्र पर उपकार करें। सहानुभूति स्नेह का आवरण रखें। दुख-सुख का पूर्णतया विभाजन करने की क्षमता रखें। व्याकुलता को संतुष्टी में बदलने का सामर्थ्य रखे। वही एक सच्चे अर्थ में मित्र होता है।
 कल्पना ने उदारता से कहा- बिल्कुल सही कह रही हो। मगर जया कभी-कभी मुझ से खुदगर्ज लोग अपनी खुशियां नहीं बताते हैं और दुखों की फेहरिस्त लेकर बैठ जाते हैं। कभी-कभी खुद्दार मित्र अपने गम, दुख, दर्द नहीं बताते, छुपा लेते हैं। जानती हो सच्चा मित्र अपने मित्र को मित्र के दुखों की बू हवा से पहचान लेता है और उसके खुशियों के रंग फूलों में ढूंढ लेता है। अपने मित्र की चिंता को शांत पानी की लहरों में भी जान लेता है और यह सब तुम्हारी पहुंच से बाहर है। क्योंकि हालात की लात शायद तुम्हें नहीं पड़ी है मैं भी यही चाहती हूं कि तुम्हें लात ना पड़े और खास बात है जया कि सच्चे मित्र तानाशाह की तरह वार्तालाप नहीं करते हैं। जब तक उनका अंतरमन एक दूसरे को अच्छे से नहीं पहचानता है ।तब तक मित्रता से किसी भी रिश्ते को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। जानती हो तुम्हारे और मेरे बीच क्या अंतर है। यही कि मुझे गरीबी के साथ भगवान ने सहनशीलता दी है और तुम्हें धन के साथ अभिमान। जया बुरा मत मानना मैं आज तुम्हें अपने घर बुला लेती हूं। वह तुम्हारी दावत करती हूं। लेकिन शायद ही तुम मेरे घर पर आओ और अगर आ भी गई तो, तुम्हें मेरे घर कोई पकवान भी चने के भोरड की जली रोटी नजर आएगी और इससे अधिक मेरी अक्षमता नहीं है कि मैं तुम्हारे लिए पकवानों का ढेर लगा सकूं।


कृतः- चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'


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