गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर, हलचल शुरू

नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद मोदी मंत्रिमंडल के पहले विस्तार को ले कर हलचल शुरू हो गई है। इस क्रम में बुधवार को पीएम नरेंद्र मोदी की वाईएसआर कांग्रेस के मुखिया और आंध्रपदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डïी की डेढ़ घंटे की मुलाकात को इसी से जोड़ कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसी दौरान बिहार के सीएम का भी मन टटोला गया है। माना जा रहा है कि संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण से पहले पीएम अपने मंत्रिमंडल का पहला विस्तार कर सकते हैं। दरअसल विस्तार पर मंथन बजट सत्र के पहले से ही चल रहा है। पार्टी ने उस दौरान भी नीतीश से बात की थी और उनका रुख सकारात्मक था। अब दिल्ली चुनाव के नतीजे आने के बाद गैरकांग्रेस विपक्षी दलों के बीच एकजुटता बढऩे की संभावना के मद्देनजर इस दिशा में नए सिरे से हलचल शुरू हुई है। पार्टी चाहती है कि लोकसभा में खाली पड़े डिप्टी स्पीकर के पद और मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए न सिर्फ सहयोगियों से तालमेल ठीक किया जाए, बल्कि राजग के इतर कुछ दलों को भी साधा जाए। जगन-पीएम मुलाकात: बुधवार को आंध्रप्रदेश के सीएम की पीएम मोदी से लंबी मुलाकात हुई। सूत्रों का कहना है कि भाजपा वाईएसआर कांग्रेस को राजग में शामिल कर मंत्रिमंडल में भागीदारी देना चाहती है। अगर वाईएसआर इसके लिए राजी नहीं हुआ तो उसे बीते कार्यकाल में अन्नाद्रमुक की तरह लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद दिया जा सकता है। इसके उलट अगर जगन ने राजग में आने पर सहमति दी तो यह पद बीजेडी को दिया जा सकता है। चूंकि बीजेडी राजग में नहीं आ सकती, इसलिए इस पद के बहाने पार्टी उसे गैरकांग्रेस विपक्ष के मोर्चे में शामिल होने से रोकने के साथ राज्यसभा में अपनी ताकत बढ़ा सकती है। सहयोगियों को साधना जरूरीः सरकार गठन के समय मंत्रिमंडल में पद की संख्या पर मतभेद के कारण जदयू को सरकार में जगह नहीं मिली। जबकि अपना दल को जगह नहीं दी गई। इस बीच राजग की कार्यशैली पर भी सहयोगियों ने सवाल उठाए हैं। अब लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान अपनी जगह अपने सांसद पुत्र चिराग पासवान को मंत्री बनाना चाहते हैं। चूंकि बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव है, इसलिए जदयू को सरकार में भागीदारी देने के अलावा लोजपा को साधे रखने की जरूरत है। सहयोगियों से बेहतर संबंध का संदेश देने और यूपी में अभी से चुनावी तैयारियों में जुटने की रणनीति के तहत अपना दल को भी साधे रखने की जरूरी है। चूंकि शिवसेना अब राजग के साथ नहीं है, ऐसे मेंं जदयू को मंत्रिमंडल में अधिक भागीदारी देने पर अब कोई समस्या नहीं है। चर्चा है कि अगर चिराग मंत्री बनाए गए तो राजग संयोजक का पद पासवान को दिया जा सकता है।
नई सियासी परिस्थिति की चुनौतीः दिल्ली चुनाव के बाद अचानक गैरकांग्रेसी दलों के एकजुट होने की संभावना बनी है। भाजपा को पता है कि लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस की जगह अगर क्षेत्रीय दलोंं फ्रंट बना तो यह उसके लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। करीब छह साल से लगतार बह रहे राष्ट्रवाद की बयार के बाद दिल्ली के नतीजे ने कल्याणकारी राज्य पर सियासी बहस शुरू की है। गुजरात का विकास मॉडल के बाद अब देश भर में दिल्ली के विकास मॉडल की चर्चा हो रही है। क्षेत्रीय दलों का फ्रंट बना तो दिल्ली के गुजरात का विकास मॉडल बनाम दिल्ली का विकास मॉडल की सियासी जंग छिड़ सकती है।


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