मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

मधुकर कहिन 'फैसले की घड़ी'


मधुकर कहिन 


आज फैसले की घड़ी !
सभी राजनैतिक दलों को सिखा के जाएगा आज के दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम


नरेश राघानी


आज सुबह से सभी टीवी चैनलों पर दिल्ली विधानसभा चुनाव के रिजल्ट की चर्चा हो रही है। शाम तक पता पड़ जाएगा कि दिल्ली ने आखिर क्या सोचा है ? क्या दिल्ली ने विकास को और सकारात्मकता को वोट दिया है ? या आज भी दिल्ली केवल शाहीन बाग , हिंदू मुस्लिम जैसी बातों पर टिकी हुई है ?


 उम्मीद की जा रही है कि आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल पुनः दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे। परंतु वही सोशल मीडिया पर भाजपा आईटी सेल द्वारा चलाए गए कैंपेन से यह नजर आ रहा है कि भाजपा में अभी भी दम है। कुछ लोग तो इस तरह की बातें लिखकर पहले संतुष्ट बैठे है कि ईवीएम मशीन को दोष देने के लिए आप तैयार रहिए।


दिल्ली के भाजपा द्वारा प्रस्तावित तथाकथित मुख्यमंत्री मनोज तिवारी* ने तो यहां तक कह दिया कि - 48 सीटों पर दिल्ली में भाजपा विजई होगी। लेकिन हमारे संवाददाता अभिनीत सिंह के अनुसार दिल्ली की धड़कन आज भी केजरीवाल केजरीवाल कह रही है।


 क्योंकि पिछले 5 सालों केजरीवाल द्वारा में दिल्ली में बहुत महत्वपूर्ण काम , लोकहित में किये गए हैं।


यहां देखने की बात यह भी है कि केजरीवाल ने भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण रोकने के लिए शाहीन बाग से दूरी बनाए रखी है । यदि केजरीवाल यह चुनाव जीतते हैं तो यह इस देश में जातिवाद की राजनीति करने वालों के चेहरे पर एक तमाचा होगा। केजरीवाल की आशान्वित जीत से कांग्रेस को भी सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा । कांग्रेस को सीखने के लिए मिलेगा कि - मात्र मुस्लिम तुष्टीकरण के आधार पर सेकुलरिज्म का झंडा उठाये चुनाव नहीं जीता जा सकता। देश की जनता विकास चाहती है । रोजमर्रा की जिंदगी की खींचतान से आराम चाहती है और देश का वोटर  सकारात्मकता को प्राथमिकता से देखता हैं।


 यह चुनाव 'भाजपा के लिए भी एक सबक होगा। वह यह कि अब और ज्यादा इस देश के वोटर को हिंदू मुस्लिम के भ्रम में नहीं रखा जा सकता। काम तो करना ही पड़ेगा। युवाओं को रोजगार देना होगा। महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। इस देश में व्याप्त शिक्षा के लचर ढांचे पर नए सिरे से काम करना होगा । लोगों को यह बताना होगा कि उनकी गाढ़ी कमाई का पैसा जो कि टैक्स के रूप में उनसे लिया जाता है। उसका वाकई सही इस्तेमाल हो रहा है या नहीं ? तभी लोग नेताओं को और उनके समर्पण को स्वीकार करेंगे।


नरेश राघानी


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