शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

दुधवा की 'लाइफ लाइन' का वजूद खत्म

दुधवा की लाइफ लाइन सुहेली नदी का वजूद हुआ खत्म, जिम्मेदार है मौन
फारुख हुसैन


लखीमपुर खीरी। ज्यों-ज्यो मौसम में तब्दीली होना शुरू हो गयी है और एक बार फिर गर्मी और तेज चिलचिलाती धूप से मनुष्य तो मनुष्य जीव ज॔तु भी बेहाल होने वाले हैं और इस मौसम में सबसे ज्यादा परेशान करने वाली शदीद प्यास सभी को बेहाल करने वाली है। हालाकि मुनष्यो को तो इस मौसम से खाश परेशानी नहीं होने वाली है क्योकि उनके पास तो अपनी प्यास बुझाने के कई साधन मौजद है जहां वो ठंडे और स्वच्छ पानी से अपनी प्यास बुझाकर तरोताजा हो जाया करेगें।


परंतु उन वन्यजीव जो कि केवल प्राक्रतिक की बनाई हुई नदी और तालाब में भरे पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं और सबसे बड़ी और सोचनीय बात की उनके लिये मौजूद नदी या फिर तालाब वो भी देखभाल के अभाव के कारण अब सूखते जा रहें हैं। जिसके कारण वन्यजीवों को अपनी प्यास बुझाने के लिये दर दर भटकना पड़ रहा है। जिससे वन्यजीव प्रमियों को इस बात की चिंता सताने लगी है। बता दे कि इसी का एक जीता जागता उदाहरण दुधवा टाइगर रिजर्व की लाइफ लाइन कही जाने वाली सुहेली नदी जिम्मेदारों के गैर जिम्मेदाराना रवैए के चलते अब अपना वजूद पूरी तरह से खो चुकी है। जिसके चलते बीते वर्ष की तरह इस वर्ष भी वन्य जीवों को प्यास बुझाने के लिये दर दर भटकना पड़ेगा।


दरअसल दुधवा की सुहेली नदी की सिल्ट सफाई न होने से सुहेली पुल से पर्वतिया घाट तक कई किलोमीटर में नदी ने रेत का टीला बना दिया है और नदी अपना रुख मोड़ कर नकउवा नाले को चली गई है। जिसके कारण वन्यजीवों को पूरी तरह से पानी की पूर्ति नहीं हो पा रही है। सर्दी और बरिश के मौसम में तो इस बात से कोई खाश प्रभाव नहीं पड़ता दिखाई देता है लेकिन गर्मी के मौसम में सुहेली नदी को वजूद खत्म होना काफी चिंता का विषय माना जा रहा है। गर्मी के मौसम में सुहेली नदी का नकउवा नदी की ओर रुख कर लेने से कई गांवों के खेतीहर इलाके भी बंजर होने की कगार पर पहुंच गये हैं क्योंकि जिस तरह से यहां भयानक सिल्ट फेंक रही है। तो कहीं न कहीं खेतीहर जमीनों में इसका जमावड़ा भी लग रहा है। तो आज नहीं कल यहां जमीनों के बंजर होने की आशंका लगातार बढ़ती दिखाई दे रही है।


उल्लेखनीय है कि दुधवा टाइगर रिजर्व में सैकड़ों सालों से बह रही सुहेली नदी को दुधवा की लाइफ लाइन कहा जाता है क्यों कि नदी पूरी तरह से दुधवा को छूती हुई गुजरती है और इसका पानी दुधवा के जंगल में स्वच्छंद विचरण करने वाले करीब 50 प्रतिशत वन्यजीव यहां पानी पीते थे। लेकिन अब हालात पूरी तरह से बदल चुकें हैं ।क्योंकि पलिया दुधवा मार्ग पर बने पुल से करीब पांच किलोमीटर पहले नदी ने मुख्य धारा में सिल्टिंग शुरू कर उसे पाट दिया और एक मोड़ लेकर नकउवा नाले में जा पहुंची। नाले का इतना बड़ा स्वरूप नहीं है कि वह अपने ऊपर से एक नदी को गुजार सके।


आलम यह हुआ कि नदी ने अपनी जगह बनाते हुए कई गांवों के खेती वाले इलाके को अपनी बालू से पाटना शुरू कर दिया है। इससे हजारो एकड़ कृषि भूमि बंजर होने के कागार पर भी आ खड़ी हुई है। जहां किसान इससे भूमि हीन हो रहे हैं वहीं वन्यजीवों की प्यास पर भी ग्रहण लग गया है। सुहेली नदी का वजूद एक दम या फिर अचानक नहीं खत्म हुआ है बल्कि यह सब धीरे धीरे हो पाया है लेकिन जिम्मेदारों ने इस पर गौर करना मुनासिब ही नहीं समझा और सबकुछ जानने और समझने के बावजूद वह खामोश रहे और उन्होने कुछ भी नहीं किया।


सबसे बड़ा सवाल यह सामने आ रहा है कि इसके लिए सालों पहले बजट भी मिला था लेकिन कागजों पर काम दिखाकर जिम्मेदारों ने चुप्पी साध ली ।दूसरी और जहां दुधवा टाइगर रिजर्व विश्व में अपनी अलग पहचान रखने वाला जहां न जाने कितने ही दुलर्भ वन्यजीवों की भरमार है और उनके संरक्षण के लिये करोड़ो रुपया व्यय किया जा रहा है लेकिन वही वन्यजीवों को प्यास से व्याकुल होकर पानी की तलाश में दर दर भटकना अपनी अलग कहानी भी बया कर रहा हैं और वह एक शर्मनाम बात भी है जिस पर गौर करना लाजमी बन चुका है।


वन्यजीवों की प्यास बुझाने के लिये बनाये जाते है वाटर हाल देखा जाये तो हमारा पार्क प्रशासन अपनी बड़ी कमियों को नजर अंदाज कर छोटी चीजों को ज्यादा ध्यान भी रखता है जिससे कि लोग उन पर किसी तरह की उंगली न उठा सके। दरअसल गर्मी में वन्यजीवों की प्यास बुझाने के लिए कुछ जगहों पर वाटर हाल बनाकर पानी की पूर्ती की जाती है लेकिन वह बस कुछ समय के लिये ही नजर आती होगी क्योंकि तेज धूप और गर्मी के चलते वहां पानी ज्यादा समय तक रूकना अंसभव सा ही लगता है। देखा जाये तो इन छोटे छोटे कार्यों को न कर यदि नदियों पर ध्यान दिया जाये तो बेहतर होगा।


नदी के समीपवर्ती इलाकों से बाहर निकलने पर मजबूर होगें दुलर्भ वन्य जीव सुहेली नदी में पानी नहीं होने से वहां के समीपवर्ती जंगल में रहने वाले वन्यजीव पानी की तलाश में बाहर आने के लिये मजबूर होगे और उनके ऐसा करने से उनके जीवन पर भी संकट के बादल मंडराते रहते हैं क्योंकि जंगल से बाहर आने के बाद वह बाहर ही रह जाते हैं और उनका यहां रहना वन्यजीव मानव संघर्ष को बढ़ा रहा है। जिसमें हिलन चीतल पाढ़ा आदि तो बाहर आना आम बात हो जाती है।


सुहेली नदी के वजूद मिटने पर वन्यजीव प्रमियों में ख़ासा रोष उधर सुहेली नदी के वजूद मिटने पर वन्यजीव प्रमियों में पारक प्रशासन के खिलाफ खाशा रोष दिखाई देने लगा है उनका कहना है यदि सुहेली नदी की सिल्ट सफाई होने पर ध्यान दिया जाता तो आज नदी का वजूद नहीं मिटता और वन्यजीवों को प्यास बुझाने के लिये दर दर नहीं भटकना पड़ता।


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