मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

दिल्ली मे 'अल्पसंख्यकों' का जीता विश्वास

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवारों ने दिल्ली में अपने 2015 के प्रदर्शन को दोहराते हुए पांच मुस्लिम बहुल सीटों पर कब्जा कर लिया है। मटिया महल से आप उम्मीदवार शोएब इकबाल, बल्लीमारान से इमरान हुसैन, चांदनी चौक से प्रहलाद सिंह साहनी और सीलमपुर से अब्दुल रहमान ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वियों को आसानी से मात दे दिया। ओखला, सीलमपुर और पुरानी दिल्ली क्षेत्र में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी। लेकिन उम्मीदों के विपरीत मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने आप के पक्ष में मतदान किया। ओखला से कांग्रेस नेता परवेज आलम खान ने स्पष्ट रूप से कहा, “मुख्य फोकस भाजपा को हराने पर था और हम उन्हें हराने के लिए अपने को आगे नहीं कर सके, इसलिए वोटरों ने आप को चुना।” इसी तरह की भावना दूसरे मुस्लिम बाहुल्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी देखा गया। कलीम हाफिज दिल्ली व उत्तर प्रदेश में कई शैक्षिक संस्थान चलाते हैं। उन्होंने कहा, “मुस्लिम वोटिंग का पैटर्न दिखाता है कि उनके दिमाग में दो चीजें रही-भाजपा को हराना और दूसरा कौन सरकार बनाने जा रहा है और कांग्रेस इसमें नहीं थी।” आप उम्मीदवार अमानतुल्ला खान ने ओखला सीट से भारी अंतर से जीत हासिल की, जो सीएए विरोधी प्रदर्शन का केंद्र रहा है। बीते चुनाव के अंतर को पीछे छोड़ते हुए अमानतुल्ला को मतदान के कुल 81 फीसदी वोट मिले।सीलमपुर निर्वाचन क्षेत्र में आप को कुल डाले गए वोट का 54 फीसदी से ज्यादा मिला और यह पहला निर्वाचन क्षेत्र था, जहां मंगलवार को सबसे पहले नतीजे घोषित किए गए। मटिया महल में पूर्व डिप्टी स्पीकर शोएब इकबाल भारी अंतर से चुनाव जीते और उन्हें 75 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। बल्लीमारान में आप विधायक व मंत्री इमरान हुसैन ने बड़े अंतर से चुनाव जीता और 64 फीसदी वोट हासिल किया है।चांदनी चौक में मौजूदा आप विधायक अलका लांबा चुनाव हार गई। लांबा कांग्रेस की तरफ से मैदान में थी। जबकि पूर्व कांग्रेस विधायक जो आप की तरफ से चुनाव लड़े प्रह्लाद सिंह साहनी ने इस सीट से जीत दर्ज की। उन्हें कुल मतदान का 60 फीसदी से ज्यादा मिला। अल्पसंख्यक बाबरपुर व मुस्तफाबाद में भी आप के पक्ष में रहे। 8 क्षेत्रीय दलों का वोट शेयर नोटा से भी कम
विधानसभा के परिणाम के रुझानों से यह स्पष्ट हो गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में अन्य राज्यों के क्षेत्रीय दलों के लिए कोई जगह नहीं है। कुल मिलाकर दिल्ली विधानसभा में 10 क्षेत्रीय दलों ने हिस्सा लिया और इनमें से एक भी दल कुल वोट शेयर का एक प्रतिशत भी नहीं हासिल नहीं कर सका। दस क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों लोक जनशक्ति पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, जनता दल-यूनइटेड, मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोक दल, शिव सेना (एसएचएस) और ऑल इंडिया फॉरवार्ड ब्लॉक ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाग लिया था। चुनाव आयोग के अनुसार, इनमें से सिर्फ दो दलों- बहुजन समाज पार्टी और जनता दल-यूनाइटेड को नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) विकल्प से ज्यादा वोट शेयर मिला। कुल आठ क्षेत्रीय दलों का वोट शेयर नोटा की तुलना में बहुत कम वोट मिला। अब तक के रुझानों के अनुसार नोटा को 0.47 प्रतिशत वोट मिला है। वहीं लोजपा का 0.37 प्रतिशत और राकांपा का 0.03 प्रतिशत वोट शेयर रहा। दिल्ली में जहां केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलनों और प्रदर्शनों के दौरान वाम दलों ने भारी उपस्थिति दर्ज कराई, वहीं मतदान के मामले में इसे बहुत कम वोट मिला। राष्ट्रीय राजधानी में बिहार की भारी आबादी होने के बावजूद लालू प्रसाद यादव की अगुआई वाली राजद का सिर्फ 0.03 प्रतिशत वोट शेयर रहा। इस बीच शिवसेना को 0.12 प्रतिशत वोट शेयर रहा वहीं रालोद का वोट शेयर 0.0 प्रतिशत रहा।


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