शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

अजमेर या माया नगरी ?

मधुकर कहिन
एडीए या मायानगरी ? - (भाग 1)
माया नगरी के दम पर अजमेर के बेलगाम भू माफिया तालाब निगलने की तैयारी में 


आप सोच रहे होंगे कि आज मुझे क्या हुआ ? मुंबई फिल्म इंडस्ट्री को माया नगरी कहा जाता है और मै अजमेर विकास प्राधिकरण को इस नाम से क्यूँ बुला रहा हूँ ? लेकिन यकीन कीजिये यह नाम बिल्कुल सही है । क्यूँकि एडीए अजमेर में एक ऐसी जगह बन चुका है , जहां फ़िल्म इंडस्ट्री की तरह बेशुमार धन सरिता बह रही है । इस मायानगरी में आम आदमी का पहुंचना मुश्किल है और केवल खास आदमी ही अपने संपर्कों के घोड़े दौड़ा कर कुछ भी करवा सकता है। 
अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि - कैसे  ? 


तो मायानगरी की माया समझाने से पहले। कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जमीनों से जुड़ी जो मैं इस ब्लॉग के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं । क्योंकि मायानगरी के अधिकांश अधिकारी लोगों के अल्प ज्ञान का लाभ उठाकर करोड़ों की चांदी कूट रहे हैं। सरकार के नियम अनुसार - जिस तरह की भूमि का आवंटन , नामांतरण या रूपांतरण नहीं किया जा सकता , उसके मुख्य रूप से तीन प्रकार है। जिन्हें सरकारी रिकॉर्ड में तीन नामों से पुकारा जाता है ।


पहला चाही - चाही उस भूमि को कहते हैं जिस भूमि में कुआं हो। 


दूसरा प्रकार है आबी - यानी वह भूमि जिसके अंदर तालाब हो यहां कोई सघन जल स्त्रोत हो।


तीसरा प्रकार है नाला - जिसका मतलब है कि वह जगह जो कि नदियों से बहने वाले पानी का रास्ता हो । इन तीन तरह की किसी भी जमीन का आवंटन नामांतरण या रूपांतरण नहीं किया जा सकता है यह कानून में दर्ज है।


फिर भी यदि अजमेर के जुगाड़ू भूमाफिया माया नगरी के जादूगरों से सांठ गांठ कर के यदि कोई ऐसा पट्टा जारी कर देते हैं, तो उस पट्टे पर निर्माण कार्य बिल्कुल भी संभव नहीं है। कहने का मतलब है यदि कोई भी व्यक्ति ऐसी जमीन का पट्टा जुगाड़ कर के हासिल कर भी लेता है, तो वह उस जमीन पर कोई भी निर्माण नहीं कर पाएगा । क्योंकि वह तालाबी भूमि के निकट होगा।  यह एक बहुत बड़े तरह की ठगी है । जो कि इन दिनों शहर के कुछ क्रांतिकारी भूमाफिया भोली भाली जनता के साथ खेलने की तैयारी में है। जहाँ मायानगरी के जादूगर ले दे कर पट्टा बना देंगें , प्लाट काट कर बेचे भी जाएंगे लेकिन खरीदने वाला फँस जाएगा। जो उसपर न निर्माण कर पायेगा न ही यह भांडा फूट जाने पर उसे आगे किसी को भी बेच पायेगा।
 
बताइये है न जादू ? यह एक ऐसा जादू है जिसमें मायानगरी से जुड़ा कोई भी जादूगर ,टोपी में से कबूतर निकाल कर गायब नहीं करता बल्कि तालाब का तालाब गायब कर देता है , और अजमेरवासियों को भनक भी नहीं लगती।


अब आते मुद्दे की बात पर ! शहर भर के तालाबों के आसपास जो अतिक्रमण हो रहा है, और जिस तरह के मंसूबे अजमेर में व्याप्त भू माफियाओं के इन दिनों दिखाई दे रहे हैं। उसका *सबसे बड़ा उदाहरण है माकड़वाली तालाब।


 माकड़वाली तालाब के विषय में पहले भी अजमेर विकास प्राधिकरण द्वारा यह कहा जा चुका है कि - इस भूमि के अंदर तालाब है और उसके आसपास के क्षेत्र में किसी भी हाल में पट्टा एडीए द्वारा नहीं दिया जाएगा ।परंतु सूत्रों के अनुसार इन दिनों कुछ जुगाड़ू जीव और मायानगरी के कारिंदे माकड़वाली तालाब की जमीन निगलने की फिराक में है । जिसके चलते खास आदमियों के लिए खुला हुआ मायानगरी का दरवाजा आजकल बिल्कुल कैश कार्ड की तरह पैसे डालने पर खुलने लगा है । आम आदमी के लिए मिलने के घंटे सीमित कर दिए गए हैं ।अंदर पुलिस की भी व्यवस्था कर दी गई है। ताकि कोई भी ज्यादा सच्चाई , नेतागिरी या जोर-जबर्दस्ती करे तो उसे पुलिसिया सबक सिखाया जा सके।
ऐसे आलम में मायानगरी के भीतर नियम कायदों को ताक में रख कर खुला खेल निर्बाध रूप से लगातार जारी है । कई ऐसे खसरे हैं जिन में एडीए के अधिकारी भी इस क्रांतिकारी कृत्य को अंजाम देने की फिराक में है। उदाहरण के तौर पर खसरा संख्या 907 के विषय में एडीए ने पूर्व भी जानकारी चाहे जाने के पर उत्तर स्वरूप एक परिपत्र जारी किया था। जिसमें साफ तौर से लिख कर दिया गया था कि यह हिस्सा तालाबी जमीन में आता है और इसका आवंटन नामांतरण या रूपांतरण किसी भी रूप से संभव नहीं है ।
केवल यही नहीं इस तरह के कई खसरों की आवेदन युक्त फाइलें चुपचाप मायानगरी के जादूगरों द्वारा अंदर ही अंदर चलाई जा रही हैं । जिसकी भनक शायद *आयुक्त गौरव अग्रवाल तक को नहीं है। क्योंकि उनके नीचे कार्य कर रहे जादूगर  ऐसी फाइलें अपने स्तर पर ही चुपचाप निपटा देते हैं। जिसमें मोटी रकम की वसूली की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। *हालांकि आयुक्त गौरव अग्रवाल बहुत ही ईमानदार ,जोशीले युवा आईएएस है। जो कि इस तरह की हरकतें एडीए में बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते हैं। और यह ब्लॉग लिखने का मंतव्य भी यही था कि ऐसे स्वच्छता पसंद अधिकारी को अपना विभाग स्वच्छ रखने हेतु सजग किया जा सके।


एक बात और ! यदि शहर के किसी भी महानुभाव को मेरी यह बातें मनगढ़ंत किस्सा या कहानी लग रही हो तो वह मेरे गरीबखाने पर चाय हेतु सादर आमंत्रित है। मेरे पास इससे संबंधित सब कुछ मय दस्तावेज़ के सरलता से उपलब्ध  है। क्योंकि अपुन भी गौरव अग्रवाल की तरह शहर में स्वच्छता अभियान चलाने के विषय में बहुत तत्पर रहते हैं।


सो अपुन ने अपना काम कर दिया। क्यूँकि पत्रकार का काम तो केवल आवाज़ सही जगह पहुँचाना है । इंसाफ करना या न करना तो अपना काम है नहीं ! सो अपन ने कर दिया जो करना था। अब देखना यह है कि माया नगरी इस आवाज़ को सुनती है या नहीं ?


नरेश राघानी


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