गुरुवार, 23 जनवरी 2020

तिब्बत चुनाव में प्रचार की इजाजत नही

तिब्बती चुनाव में नहीं होगी प्रचार की इजाजत , एनजीओ-एसोसिएशन पर लगाम
 
मैक्लोडगंज। तिब्बती आम चुनावों के लिए अभी एक वर्ष बचा हुआ है, फिर भी इनके प्रति क्रेज बढ़ने लगा है। लोबसांग सांग्ये के नेतृत्व में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का वर्तमान 15 वां मंत्रिमंडल अप्रैल 2021 के अंत में अपना कार्यकाल पूरा करेगा। चुनाव नियमों के अनुसार, पहला दौर नवंबर 2020 तक आयोजित किया जाना है। चुनाव प्रक्रिया के लिए इस मर्तबा कुछ संशोधन किए गए हैं। उसी में से सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि किसी भी प्रत्याशी के लिए किसी भी एसोसिएशन या एनजीओ (Associations or NGO) द्वारा किसी भी तरह के प्रचार-प्रसार अभियान की अनुमति नहीं दी जाएगी। यानी पहले की तरह इस मर्तबा चुनाव के दौरान कोई भी एसोसिएशन या एनजीओ किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार नहीं कर पाएंगे। इसी तरह राष्ट्रपति पद (CTA President) के मामले में बड़ा बदलाव यह है कि यदि कोई प्रत्याशी प्रारंभिक दौर (Preliminary Round)में 60 फीसदी से अधिक वोट हासिल करता है,तो उस व्यक्ति को चुनाव का अंतिम दौर आयोजित किए बिना निर्वाचित घोषित किया जाएगा।


हालांकि,तिब्बती आम चुनावों की अभी तारीखें तय नहीं हैं,इसके लिए चुनाव आयुक्त अपने साथ दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति करेंगे,उसके बाद चुनाव प्रक्रिया पूरी करने की प्रक्रिया शुरू होगी। इससे पहले वर्ष 2016 के चुनावों में राष्ट्रपति पद के लिए लोबसंग सांग्ये ने अपने प्रतिद्वंद्वी पेन्पा त्सेरिंग के मुकाबले 9,012 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी, जोकि दुनिया भर के 85 स्थानों पर तिब्बतियों द्वारा डाले गए कुल 59,353 वोटों का 15 फीसदी था। इस मर्तबा राष्ट्रपति पद के लिए मुख्य मुकाबला पेन्पा त्सेरिंग (Penpa Tsering) और ग्यारी डोलमा (Gyari Dolma) के बीच होने की उम्मीद जताई जा रही है। नवनिर्वाचित प्रमुख और संसद सदस्य मई 2021 के अंत में अपने पद की शपथ लेंगे। याद रहे कि एक लोकतांत्रिक प्रणाली के रूप में, निर्वासित तिब्बती 18 साल और उससे अधिक उम्र के मताधिकार का उपयोग कर सकते हैं। ये सभी राष्ट्रपति के अलावा तिब्बती संसद के 45 सदस्यों के लिए वोट डालते हैं। भारत, नेपाल और भूटान में तिब्बती अपने-अपने प्रांत से 10 सदस्य चुनते हैं, अमदो, खाम या यू.त्सांग, प्रत्येक प्रांत की दस सीटों में से दो सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। भिक्षु और नन, प्रांतीय चुनावों के अलावा, अपने संबंधित धार्मिक स्कूलों से दो प्रतिनिधि चुनते हैं। ऑस्ट्रेलिया (भारत, नेपाल और भूटान को छोड़कर) एक का चयन करते हैं, यूरोप और उत्तरी अमेरिका (Europe and North America)के तिब्बती दो प्रतिनिधि चुनते हैं।


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