बुधवार, 22 जनवरी 2020

संकट के दलदल में 'कृषि-कृषक'

कम आय, खेती की बढ़ती लागत और सरकारी उपेक्षा, किसान और खेती दोनों ही संकट के दलदल में!


कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार..!


तस्लीम बेनकाब


आजादी के सात दशक बाद भी भारत के किसानों की दशा में कोई बड़ा कांतिक्रारी बदलाव देखने को नहीं मिला है। बल्कि देश में किसान और खेती दोनों ही संकट के दलदल में धंसते जा रहे हैं। जिन अच्छे, समृद्ध किसानों की बात की जाती है, उनकी गिनती तो बहुत ही कम है। लेकिन ऐसे किसानों की संख्या बहुत अधिक है जो आज भी हाशिये का जीवन जीने को मजबूर हैं। किसान हमेशा से हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधार रहे हैं। लेकिन यही आधार जब कमजोर पड़ने लगेगा तो हमारी कृषि का क्या होगा, यह गंभीर सवाल है जिस पर हमें सोचने की जरूरत है।
किसानों की दुर्दशा को हम लंबे समय से देखते-सुनते आ रहे हैं। हालात कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले दो दशक में लगभग कई हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यही कारण है कि आज जगह-जगह किसानों के उग्र आंदोलन हो रहे हैं। कम आय, खेती की बढ़ती लागत और सरकारी उपेक्षा ने कृषि संस्कृति को संकट में डाल दिया है। पिछले कई सालों से खेती करने की लागत जिस तेजी से बढ़ती जा रही है, उस अनुपात में किसानों को मिलने वाले फसलों के दाम बहुत ही कम बढ़े हैं।
सातवें दशक में ग्रामीण परिवार की तीन चौथाई आय का स्रोत कृषि हुआ करती थी। इसके पैंतालीस साल बाद 2015 में यह एक तिहाई से भी कम रह गई है। अब अधिकांश ग्रामीण परिवार गैर कृषि कार्यों से अधिक आय अर्जित कर रहे हैं। बेशक, हमारा देश आज भी कृषि प्रधान है, बावजूद इसके शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते खेती का रकबा लगातार घटता जा रहा है। यही वजह है कि हमारी कृषि गहरे संकट में फंसती जा रही है। किसानों की आत्महत्या के बढ़ते सरकारी आंकड़े भी इस हकीकत को बयां करते हैं। सवाल उठता है कि खेती-बाड़ी पर निर्भर लोग क्यों मौत को गले लगा रहे हैं और यह सिलसिला आखिर क्यों नहीं थम पा रहा है?
अभी तक किसानों के कल्याण की जो योजनाएं बनाई गई हैं और जिस तरह से उनका क्रियान्वयन किया गया है, वह सिर्फ वोट बैंक को ध्यान में रख कर किया गया है। जब तक कृषि को उद्योग का दर्जा नहीं दिया जाता, तब तक कृषि कराहती रहेगी, ग्रामीण युवा खेती-किसानी से पलायन करते रहेंगे और किसान आत्महत्या करते रहेंगे। इसलिए दम तोड़ती खेती को बचाना और उसे सुगम बनाना सरकारों का सबसे बड़ा आर्थिक सरोकार होना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब सत्ता में बैठे लोग विकास योजनाएं तय करते समय खेती और किसानी का खास ध्यान रखें। कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार है, यह हम बरसों से सुनते आ रहे हैं। लेकिन नीतियों के क्रियान्वयन में शिथिलता अर्थव्यवस्था के इस अहम केंद्र की जड़ें कमजोर ही करती जा रही है। इस दिशा में समुचित प्रयास नहीं किए गए तो खेती-बाड़ी से किसानों का मोहभंग होता जाएगा। इसलिए किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को कई स्तरों पर नए सिरे से सुधार करने की जरूरत है।


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