सहारनपुर में केवल एक सीएचसी पर बाल रोग विशेषज्ञ मौजूद
जिलेभर में शिशु मृत्युदर प्रति एक हजार जन्मपर 32, मातृ मृत्युदर एक लाख जन्म पर 179
अरविन्द सिसौदिया
नानौता। राजस्थान और गुजरात में करीब 200 से अधिक बच्चों की मौत के बाद भी सहारनपुर स्वास्थय विभाग नहीं जागा है। केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से मातृ एंव शिशु सुरक्षा को लेकर कई योजनाएं चलाई जा रही है अधिकारी प्रभावी माॅनिटरिंग का दावा भी कर रहे है। लेकिन ग्रांउड स्तर पर विशेषज्ञ डाॅक्टरों की नियुक्ति न होने से सालों से ग्रामीण क्षेत्र बेहाल हो रहा है। जिलेभर में संचालित 11 सामुदायिक स्वास्थय केन्द्रों में से मात्र एक पर शिशु रोग विशेषज्ञ मौजूद है जबकि 10 सीएचसी बिना विशेषज्ञों के ही चल रही है।
सहारनपुर जिला बालरोग विशेषज्ञों की कमी से जूझ रहा है। यदि किसी कारण से राजस्थान और गुजरात जैसे हालात यहां बने तो इसका जिम्मेदार आखिर कौन होगा। सहारनपुर जिले में 11 सामुदायिक स्वास्थय केन्द्र और करीब 33 प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र है। लेकिन मात्र जिले की देवबंद छोडकर किसी भी सीएचसी व पीएचसी पर बालरोग विशेषज्ञ मौजूद नहीं है। ऐसे में इन स्वास्थय केन्द्रों पर पैदा होने वाले नवजात शिशुओं की हालत बिगडने पर उनके जीवन पर खतरा मौजूद रहता है। यदि किसी नवजात की हालत बिगडती है तो उसे तुंरत जिला अस्पताल के लिए रैफर किया जाता है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों से जिला अस्पताल लाते समय बच्चों की मृत्यु तक हो जाती है। जिले में शिशु मृत्युदर प्रति एक हजार जन्म पर 32 है। जबिक मातृ मृत्युदर प्रति एक लाख जीवित जन्म पर 179 है। सरकार के आदेश है कि किसी भी क्षेत्र में मृत्यु होने पर 24 घंटे में उसकी सूचना देना जरूरी है। ताकि इससे पांच वर्ष तक के बच्चे, शिशु और नवजात की मृत्यु के कारणों को ढूंढकर उनका समाधान किया जा सके। इसके अलावा कुछ अस्पताल केवल रैफरल बनकर रह गए है। जिनमें कहीं डाॅक्टर नहीं तो कहीं सुविधाओं का अभाव होने के चलते मरीज को रैफर किया जाता है।
मंगलवार, 7 जनवरी 2020
बच्चों की मौत पर नहीं जागा प्रशासन
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