बुधवार, 8 जनवरी 2020

संस्कृति का उदाहरण 'राउत नाच टोली'

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का एक सशक्त उदाहरण है। यह एक ऐसा लोकोत्सव है जिसमें गांवों का सीधा-सादा जीवन प्रतिबिंबित होता है। इस नृत्य-कला को छत्तीसगढ़ के लोक जीवन की नैसर्गिक पहचान कहा जाता है। राजधानी में 12 जनवरी 2020 से शुरू होने जा रहे छत्तीसगढ़ राज्य युवा उत्सव में बिलासपुर की राउत नाच टोली अपने नृत्य कौशल और शौर्य का प्रदर्शन करेगी।


राउत नाच गौ-संवर्धन और पशु-पालन से जुड़े छत्तीसगढ़ के यादव समुदाय की पहचान है। पौराणिक मान्यता है कि जब गोकुल में राक्षसों का आक्रमण बढ़ने लगा तब गोकुलवासियों को अपनी रक्षा स्वयं करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र के स्थान पर डंडे से आत्मरक्षा के लिए खेल-खेल में गुर सिखाया। उसी समय से गोवर्धन पूजा के दूसरे दिन से राउत नाच किया जाता है। मिट्टी से जुड़े इस नृत्य और शौर्य प्रदर्शन को लेकर गांवों में खासा उत्साह रहता है।


राउत नाच में लोक शिल्प, लोक संगीत, लोक साहित्य, लोक नृत्य का अद्भुत सामंजस्य है। वास्तव में राउत नाच एक सम्पूर्ण कला का रूप है। राउत नाच के दौरान नर्तकों की साज-सज्जा और उनके परिधान बहुत आकर्षक होते हैं। इनके सिर पर पागा (पगड़ी), कागज के फूलों की रंग-बिरंगी माला, मोर के पंख की कलगी, कमीज के स्थान पर रंग-बिरंगे कपड़े का सलूखा, उसके ऊपर कौड़ियों की जॉकेटनुमा पोशाक होती है जिसे पेटी कहते हैं। दोनों बाहों में कौड़ियों का बना हुआ बंहकर होता है। कमर नीचे पहने जाने वाले वस्त्र को चोलना कहा जाता है, जिसे कमर के ऊपर कसकर पहना जाता है। कमर व पैरों में नर्तक बड़े-बड़े घुंघरुओं की पट्टी बांधते हैं, जिससे नृत्य करते समय कर्णप्रिय धुन निकलती है। उनके हाथों में लाठी और ढाल होते हैं जो नृत्य के साथ शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए होता है। उनकी टोली के साथ गंधर्व समाज के लोक वादक होते हैं। उनके वाद्य यंत्रों में डफड़ा, महोरी, निशान, टिमकी आदि प्रमुख हैं। लोक वादकों के साथ एक-दो पुरुष नर्तकी के रूप में शामिल होते हैं, जिन्हें परी कहा जाता है। राउत नाच में दोहों का अत्यधिक महत्व है। अपने परम्परागत वेशभूषा में सजे-धजे राउत नर्तक झूमते-नाचते हुए जब दोहों का उच्चारण करते हैं तो दर्शक वर्ग भी उत्साह और उमंग में उनका साथ देने लगता है। दोहे में प्रायः सामाजिक संदेश होते हैं और पहेलियां तथा जनउला को इसमें शामिल किया जाता है। इसमें भक्ति के संदेश भी होते हैं। कुछ प्रचलित दोहे इस प्रकार हैः- जेखर जइसन घर दुआर, तइसन तेखर फइका हो। जेखर जइसन दाई ददा, तइसन तेखर लइका हो।। जइसन मालिक लिये दिये तैं, तइसन देब आसीस हो। अन्न-धन तोर घर भरे, जुग जियो लाख बरीस हो।।


बिलासपुर की सांस्कृतिक पहचान है राऊत नाच -: राऊत नाच बिलासपुर की सांस्कृतिक पहचान है। राऊत नाचा महोत्सव के संयोजक डाॅ.कालीचरण यादव ने बताया कि जिले में राउत नाच का पर्व देवउठनी एकादशी से शुरू होकर लगभग 15 दिन चलता है। इस दौरान गांव-गांव में राउत नाच की टोलियां अपने नृत्य का कलात्मक प्रदर्शन करती हैं। शहर के गली-मोहल्ले भी इनसे अछूते नहीं रहते। इस पर्व का समापन अरपा नदी के किनारे शनिचरी बाजार क्षेत्र में आयोजित महोत्सव के साथ होता है, जिसमें पूरे छत्तीसगढ़ की टोलियां शामिल होती है और इसका आनंद उठाने के लिए हजारों लोग पहुंचते हैं।


राउत नाच में युवतियां भी शामिल होंगी


राज्य युवा महोत्सव में बिलासपुर, कोटा के डॉ. सीवी रामन विश्वविद्यालय के युवा छात्र-छात्राएं राउत नाच का प्रदर्शन करेंगें। पारम्परिक रूप से पुरुषों द्वारा यह नृत्य किया जाता है, लेकिन युवा उत्सव में राउत नाच का प्रदर्शन करने वाली टोली में आठ युवतियां भी शामिल हैं। युवक-युवतियों का उत्साह इस नृत्य के आकर्षण को और बढ़ायेगा।


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