शनिवार, 7 दिसंबर 2019

मूलतंत्र का विरोध (संपादकीय)

मूलतंत्र का विरोध   (संपादकीय)
हैदराबाद में 25 वर्षीय डॉक्टर से हैवानियत करने वाले, सभी 'चारों आरोपियों' को पुलिस के द्वारा ढेर कर दिया गया है! इस प्रकरण में पुलिस सभी के, सभी सवालों का जवाब देने के लिए तैयार है! पुलिस ने एक ऐसी पटकथा तैयार की है, जिसमें सभी सवालों के संतुलित जवाब अंकित है! हो सकता है जिससे सभी को संतुष्ट करने में सफलता हासिल हो सके! लेकिन यह स्पष्ट है की जन-प्रदर्शन और आक्रोशित जनता से प्रभावित पुलिस और सरकार ने इस घटना को अंजाम दिया है! घटना से देश के बड़े तबके में प्रसन्नता महसूस की जा रही है! हृदय विदारक इस घटना से पूरे देश में आक्रोश व्याप्त हो गया था ! पुलिस की कार्रवाई से क्षुब्ध प्रदर्शनकारियों एवं भीड़ को  काफी हद तक संतुष्टि मिली है! इस प्रकरण से प्रदर्शनकारियों के हाथों में 'स्लोगन' लिखी तख्तियां गिर गई है! लेकिन अपराधिक पुनरावृत्ति स्थिर बनी हुई है! जनता की संतुष्टि अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई थी! राष्ट्रव्यापी  प्रदर्शन के रूप में जनता सड़क पर उतर रही थी! उसकी जड़ें उखाड़ने के लिए यह कार्य सराहनीय हो सकता है! लेकिन  इस घटना से 'संविधान के मूलतंत्र' के विरोध की आभा से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है! न्यायपालिका के अस्तित्व को क्षति पहुंची है! दुर्दांत अपराधियों के लिए 'मृत्युदंड' सर्वथा उचित है! लेकिन संविधान के दायरे से बाहर कोई भी कार्य, देश के नागरिक किस प्रकार स्वीकार कर सकते है?  पुलिस के द्वारा लिए गए इस निर्णय से पुलिस की कार्यशैली पर भी कई प्रश्न-चिन्ह अंकित होते हैं! देश की जनता चाहती है,अपराधों पर नियंत्रण होना चाहिए! जिसका मूल आधार  संविधान में निहित होना चाहिए!  अपराध की परिभाषा के अनुसार  दंड का विधान, समय की मांग के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए! यदि इसके विरुद्ध देश की जनता ऐसी व्यवस्था की कल्पना करती है और सरकार भी उसका समर्थन करती है! तो न्यायपालिका के होने का कोई महत्व ही नहीं बनता है! पुलिस को ऐसे अधिकार प्रदान किए जाएं! जिससे पुलिस के द्वारा त्वरित न्याय प्रदान किया जा सके! इस प्रकार की व्यवस्था से देश में न्यायपालिका के व्यवस्थित तंत्र पर खर्च होने वाला काफी धन भी बच सके सकेगा! अपेक्षाकृत कम समय में न्याय भी प्राप्त हो सकेगा!


राधेश्याम 'निर्भय-पुत्र'


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