गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

भारतीय महिला (मूल्यांकन)

भारत को आजाद हुए अरसा गुज़र गया। भारत के स्वतंत्र होने के बाद महिलाओं की दशा और दिशा में काफी बदलाव आया है। महिलाओं को अब पुरुषों के बराबर अधिकार भी मिलने लगे हैं। महिलाएं आज वह सब काम आजादी से कर सकती है जिन्हें वे पहले करने में अपने आप को असमर्थ और असहज महसूस करती थी। स्वतंत्रता के बाद बने भारत के संविधान में महिलाओं को वे सब लाभ, अधिकार और काम करने की स्वतंत्रता दी गयी जिसकी वह हकदार थीं। सदियों से अपने साथ होते बुरे सुलूक और बेहूदा हरकतों के बावजूद महिलाएं आज अपने आप को सामाजिक बेड़ियों से मुक्त पाकर, आजाद महसूस करके और भी ज्यादा आत्मविश्वास और भरोसे के साथ परिवार, समाज और देश को आगे बढ़ाने के लिए लगातार कार्य कर रही है। आज राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री पद से लेकर हर जगह महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
यदि देखा जाए तो हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है। महिला सशक्तिकरण के बाद स्थिति बदल गई है।  हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते उस समय का जब उन्हें अपनी जिंदगी अपनी ख़ुशी से जीने की भी आजादी नहीं थी। परन्तु बदलते वक़्त और हालात के साथ इस नए ज़माने की नारी ने समाज में वो स्थान हासिल किया जिसे देखकर कोई भी गर्व करेगा। आज महिलाएं समाज सुधार, उधमी, प्रशासनिक सेवा, राजनयिक सेवा जैसे हर क्षेत्र में दिखाई दे रही हैं।
महिलाओं की स्थिति में सुधार ने देश के आर्थिक और सामाजिक सुधार की तस्वीर बदल दी। हम यह तो नहीं कह सकते कि महिलाओं के हालात पूरी तरह बदल गए है पर पहले की तुलना मे तरक्की हुई है।  महिलाएं अब  सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक क्षेत्रों को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक है जिससे उनको परिवार तथा रोजमर्रा की दिनचर्या से संबंधित खर्चों का निर्वाह करने का मौका आसानी से मिल जाता है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है।   विजयलक्ष्मी पंडित, एनी बेसंट, महादेवी वर्मा,  पी.टी उषा, अमृता प्रीतम, पदमजा नायडू, कल्पना चावला, मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, और न जाने कितने ऐसे नाम जिन्होंने महिलाओं की जिंदगी के मायने बदल दिए हैं। आज महिलाएं हर रूप में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा, विज्ञान तथा अन्य विभागों में अपनी सेवाएं दे रही है। वे अपनी पेशेवर जिंदगी के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बख़ूबी निभा रही है। इतना सब हो जाने के बाद भी प्रतिदिन हमें मानसिक तथा शारीरिक उत्पीड़न से जुडी ख़बरें सुनने को मिल जाती है।
भारत में महिलाएं हर तरह की हिंसा का शिकार हुई हैं। भारतीय समाज के द्वारा दी गई क्रूरता को महिला को सहन करना पड़ता है चाहे वह घरेलू हो या फिर शारीरिक, सामाजिक अथवा मानसिक हो।  समय के बदलने के साथ-साथ महिलाओं की स्थितियों में भी काफी बदलाव आता चला गया। जिसका नतीजा यह हुआ कि हिंसा के कारण महिलाओं ने अपने शिक्षा के साथ सामाजिक, राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों में भागीदारी के अवसर भी खो दिए। इसके जिम्मेदार भी हम हैं। हमारी सोच जिम्मेदार है।
महिलाओं को भरपेट भोजन नहीं दिया जाता था, मनपसंद कपड़े पहनने की अनुमति नहीं थी, जबरदस्ती विवाह होता था,     भारतीय समाज में ऐसा माना जाता है की हर महिला का पति उसके लिए भगवान की तरह है।  हर चीज़ के लिए उन्हें अपने पति पर निर्भर रहना चाहिए। 
 नववधू की हत्या, कन्या भ्रूण हत्या और दहेज़ प्रथा महिलाओं पर होती बड़ी हिंसा का उदाहरण है। इसके अलावा महिलाओं को भरपेट खाना न मिलना, सही स्वास्थ्य सुविधा की कमी, शिक्षा के प्रयाप्त अवसर न होना, नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न, दुल्हन को जिन्दा जला देना, पत्नी से मारपीट, परिवार में वृद्ध महिला की अनदेखी आदि समस्याएँ आज भी महिलाओं की कहानी बयान करती हैं। इंसान होने के कारण हमें इंसान का सम्मान करना चाहिए चाहे वह स्त्री हो या पुरुष।


सैय्यद एम. अली तक़वी
निदेशक- यूरिट एजुकेशन इंस्टीट्यूट, लखनऊ


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