शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

पराविद्या की दीक्षा

गतांक से...
एक यज्ञ हमारे यहां अश्वमेध यज्ञ होता है! अश्व नाम राजा का है, मेघ नाम प्रजा का! 'अश्वयागां भूतंब्रहे' वेद में ओत- प्रोत होकर यज्ञ करता है साकल्य प्रदान करता है ! मेरे पुत्रों उसमें भी विज्ञान की प्रतिभा निहित रहती है! आज मैं तुम्हें विज्ञान के युग में नहीं ले जा रहा हूं! विचार केवल यह प्रकट हो रहा है कि हमारे यहां विभिन्न प्रकार के यागो का चयन होता रहा है! जैसे हमारे यहां अग्निस्ट होम यज्ञ होता है!अग्निस्ट होम यज्ञ में राजा-प्रजा अपने में उन्नत बनाने में निराभिमानी बनाने में लग जाते हैं! वास्तव में वह यज्ञ कर रहे हैं! मेरे पुत्रों वेद का आचार्य यही कहता है कि परमपिता परमात्मा के राष्ट्र में अभिमान नहीं होता है! इसलिए हे मानव तू अभिमान से दूर हो जा! परमपिता परमात्मा के राष्ट्र में किसी भी प्रकार की हीनता नहीं होती! क्योंकि परमात्मा हीन नहीं है! हे मानव यह कैसा विचित्र वैदिक साहित्य हैं? जिसमे भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रतिभाओं का वर्णन होता रहता है! आज मैं विशेष चर्चा नहीं दे रहा हूं! ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में अनुसंधान हो रहा है! यज्ञशाला का निर्माण हो रहा है और विज्ञानशाला में नृत्य किया जा रहा है! मानव का मस्तिष्क नृत्य कर रहा है और नृत्य करता-करता अपने ज्ञान और विज्ञान में प्रवेश कर जाता है! पुत्रों ज्ञान और विज्ञान में रत होना, यहां मानवता कहलाती है! 'अध्यात्म भूतं' प्रवृत्ति कहलाई जाती है! विचार क्या चल रहा था कि पुरोहित होने चाहिए! वास्तव में जितने पुरोहित होते हैं, बुद्धिमान ,बुद्धिजीवी जितने होते हैं! उनसे राष्ट्र बनता है! बुद्धिजीवी जब माताए होती है तो अपने गर्भ स्थलों में बालकों को ऊर्जा में गमन करा देती है! और 5 वर्ष तक उन्हें विवेकी बनाकर महात्मा बना देती है! जब माताएं इस प्रकार बुद्धिजीवी वेद का पठन-पाठन करने वाली हो, तो यह समाज पवित्रता की वेदी पर लीन हो जाता है!


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