शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

असुविधा में यज्ञ कैसे करें?

गतांक से...


मुझे विचार आता रहता है मैं प्राय:इस विचार में नहीं ले जाना चाहता हूं! मुझे इसके विपरीत ही जगत दृष्टिपात आता है! जब मैं उसके आंतरिक जगत में प्रवेश होता हूं तो मुझे यह संसार एक प्रियतम में दृष्टिपात आता है! विचार आता रहता है कि समाज में जो वर्तमान का काल चल रहा है! नाना प्रकार की रूढियां है और रूढ़ियों को नष्ट कर देना चाहिए! राजा के विचारों से राजा अपने में इन विचारों को लेकर के महान बनाने की उसे प्रबल इच्छा हो जाती है! मैं आज अपने पूज्य पाद गुरुदेव को भी निर्णय कराना चाहता हूं कि याज्ञम ब्रह्मा: याज्ञाम रूद्रो भागा: जब अपनी प्रवृत्तियों में बड़ा विचित्र सा गमन करता रहता है! मेरे पूज्य पाद गुरुदेव राजा जब रविता होता है तो राष्ट्रपुत्र बनता है! रूढिया नहीं पनपा करते, जब रूढिया नहीं पनपते, समाज-मानव अपने कर्तव्य का पालन करता है! आज समाज में रूढ़ियां बलवती हो गई है! विज्ञान का दुरुपयोग हो रहा है! विज्ञान के दुरुपयोग होने से राष्ट्र का विनाश माना गया है! मानो यह राष्ट्र विनाश के मार्ग में गमन करना चाहता है! मैं इस संबंध में कोई विशेष विवेचना नहीं दूंगा! आज मैं अपने यजमान को आशीर्वाद के रूप में अपनी वाणी  रूप में जाना चाहता हूं!  तेरे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे और तेरे जीवन में महानता की उपलब्धि होती रहे और कर्म का सदुपयोग होता है! जिससे प्रतीत होने लगती है यजमान मेरे लिए अंतर होता है क्योंकि वह अमृत को देने वाला है और अमृत देना हमारा कर्तव्य है! यजमान तेरे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे! तू जीवन की अमित होता रहे, होना ही देवपूजा कहलाती है, लक्ष्मी है! यदि इसका दुरुपयोग किया जाता है एक समय आता है लक्ष्मी उसे त्याग देती है! जब लक्ष्मी का सदुपयोग करते हो तो है तुम्हारे समीप बनी रहेगी और वह तुम्हारा पूजन ही नहीं तुम्हारा साहस बर्धन करती रहेगी! आज मैं यह उच्चारण कर रहा था कि अपने जीवन को महान बनाने के लिए सदैव तत्पर रहें और हमारे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे और अखंडता में सदैव तुम रमण करते रहो! अब मैं अपने गुरुदेव से आज्ञा पाऊंगा!


मेरे प्यारे ॠषिवर अभी मेरे प्यारे महानंद जी ने अपने कुछ उद्गार उदगारो में परमपिता परमात्मा की मेेहती विद्यमान है! हे भगवान तुम जीवन में सदैव महानता की वेदी पर रमण करते रहो! जैसा महानंद जी ने कहा है आज का विचार केवल यह है कि राजा ब्रह्मवेता हो और ब्रह्म निर्णय देने वाला बने! यह महानंद जी ने कहा है हमारा यह वाक्य चल रहा है कि यज्ञ अपने में अनूठा क्रियाकलाप है अनूठा कर्म है! कर्म बंधन से अपने में क्रियात्मकता, क्रियाकलापों में सदैव रत रहे! आज का वाक्य अब समाप्त होने जा रहा है! समय मिलेगा कल फिर चर्चा प्रकट करेंगे! वेदों का पठन-पाठन होगा!


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