बुधवार, 6 नवंबर 2019

असुविधा में यज्ञ कैसे करें?

गतांक से...
 परंतु मैं जहां राष्ट्रवाद की चर्चा करता रहता हूं! हे राजन, तू संसार को ऊंचा बनाना चाहता है! तो तेरे राष्ट्र में रूढ़िवाद नहीं होना चाहिए! जब राजा के राष्ट्र में ईश्वर के नाम पर भिन्न-भिन्न प्रकार की रोढियां बन जाती है! एक समय वह आता है कि रूडिया ही विनाश का मूल बन जाती है! रूढि नहीं होना चाहिए! जब रूढ़िवाद का प्रचार हो तो उस रूढ़ी को प्रथम विचारते हैं जो हमारे समीप आती है! विचार आता रहता है हे मानव, तू रूढ़िवाद में परिणतन हो, जन यदि तू रूढ़िवाद में चला गया तो राष्ट्र का विनाश हो जाएगा! मुझे स्मरण आता रहता है! आधुनिक काल का जो समय है यह जो जगत है! यह अपने में बिखरा हुआ मुझे दृष्टिपात होता है! पूज्य पाद इस बिखरे हुए जगत को मैं दृष्टिपात नहीं कर पाऊंगा! मुझे स्मरण आता रहता है कि राम का जीवन कितना भव्यता में गमन करता रहा, विचार आता रहता है हे राजन, तेरे राष्ट्र में रूढि नहीं रहनी चाहिए! रूढ़ि का अर्थ है कि ईश्वर के नाम पर नाना प्रकार की रूढ़िया, धर्म एक है धर्म अनेक नहीं हुआ करते हैं! एक ही धर्म की पूजा होनी चाहिए! जब धर्म अपनी आभा में रत हो जाता है तो मानव के जीवन में एक प्रकाश आ जाता है! इसलिए मेरा तो यह विचार रहता है कि यज्ञमान के गृह में रूढ़िवाद का प्रसार नहीं होना चाहिए!जिन रूढियो के समाज अपने से दूर हो जाता है! गुरुदेव ने कई साल में मुझे प्रकट करते हुए कहा था कि ब्रह्म संभव ब्रव्हे:,यह जो रूढ़िवाद है यह परंपरागतो से ही रहा है! परंतु वर्तमान में भी है! राजा रावण के यहां मत बन गए थे, वह रूढिया बनकर ही तो रावण का नाश हो गया था! उसके मूल में यह रूढ़िवाद था! इसी प्रकार वर्तमान के काल में यह रूढ़िया प्रतीत हो रही है! रूढियो में मुझे ऐसा प्रतीत होता है जैसे अग्निकांड दृष्टिपात आ रहा हूं! क्योंकि रूढि वाद विनाश का कारण होता है! जब भी धर्म के नाम पर भिन्न-भिन्न प्रकार के रूढ़ियां बन जाती है! वे रूढिया राष्ट्र के विनाश का एक मूल बन करके रहती है!


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