शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

असुविधा में यज्ञ कैसे करें?

गतांक से...


आओ बेटा मैं तुम्हें महर्षि याज्ञवल्क्य मुनि महाराज के विद्यालय में ले जाना चाहता हूं ! विद्यालय में नाना ब्रह्मचारी विद्यमान है और प्रातः कालीन नैतिक शिक्षा देते हुए ब्रह्मचारियों से याज्ञवल्क मुनि ने कहा 'ब्राह्मणे: याज्ञाम् भवितं ब्रव्हा कृत लो काहाम, हे ब्रह्मचारीयो, देखो यज्ञ अपने में कितना विशिष्टतम माना गया है! वेद का एक-एक मंत्र उस यज्ञ का बखान कर रहा है! जिन यगों से मानव के जीवन में महानता का जन्म होता है और जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है तो वह जिज्ञासु बन करके अपने स्वरूप में रमण करने लगता है! मेरे प्यारे देखो वेदाम भू वर्णस्वता: यागाम ब्रहे, प्रातः काल   याज्ञवल्क मुनि महाराज यज्ञ की चर्चा कर रहे थे! एक ब्रह्मचारी यगदत्त ने कहा प्रभु आप यज्ञ को क्या जानते हैं? उन्होंने कहा सब साकलय होना चाहिए और यज्ञ शाला का भव्यता में निर्माण होना चाहिए! जैसे परमपिता परमात्मा ने मानव को सजातीय रूप में प्रकट किया है और आत्मतत्व उसमें विधमान है! परंतु अपने यहां भव्य यज्ञ की विशेषता कृतियां मानी जाती है! उन्होंने कहा संभव प्रव्हा:' वर्णस्वूत  देवत्वाम यज्ञ:, मेरे प्यारे याग वल्क मुनि महाराज ने जब ऐसा कहा तो उन्होंने कहा प्रभु यज्ञशाला होनी चाहिए! ब्रह्मचार्यो का साकल्य होना चाहिए! संमिधा होनी चाहिए और उसमें यजमान का संकल्प भी होना चाहिए! मेरे पुत्रों ब्रह्मचारियों ने स्वीकार कर लिया! परंतु उन्होंने कहा प्रभु यह वाक्य तो आपका बड़ा प्रियतम दृष्टिपात आ रहा है! परंतु मैं यह जानना चाहता हूं कि कहीं हमें यज्ञ की इच्छा है और यह कोई भी सुविधा में प्राप्त नहीं है! तो प्रभु उस समय हम यह कैसे करेंग? उन्होंने कहा हे ब्रह्मचारी यज्ञम् ब्रह्मा याज्ञम् सुतम ब्रह्मा:, मानो यज्ञशाला भी नहीं है और साक्लय  भी नहीं है तो भी यजमान यज्ञ करता है! देखो अग्नि को प्रदीप्त करता हुआ, वह संमिधा ले करके कहता है! अग्नि स्वाहा, प्राणाया स्वाहा, अपानाय स्वाहा,व्यानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा! मेरे प्यारे वह सर्वत्र प्राणों की आहुति देता है हुत कर रहा है! संमिधा के द्वारा अग्नि में परिणत कर रहा है! अग्निम ब्रह्मा:, वही अग्नि हमारे यहां प्रत्येक वस्तु का विभाजन कर देती है! जो काष्ट में रहने वाली अग्नि है! वही पृथ्वी को तपाएमान कर देती है! वहीं मानव के हृदय में प्रवेश करके प्रदीप्त रहती है! वही अग्नि माता के गर्भ में शिशु का निर्माण करती है! उसके तेज का आह्वान करती हुई माता अपने में स्वयं धन्य हो जाती है! मेरे प्यारे उन्होंने कहा कि यज्ञम् ब्रहा: देखो यज्ञम ब्रहे कृतम' संमिधा के द्वारा यज्ञ होना चाहिए! वह मानव अग्नि आहुति देता हुआ, अपने जीवन और ग्रह को उन्नत बनाना चाहता है!


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