सोमवार, 4 नवंबर 2019

असुविधा में यज्ञ का निदान

गतांक से...
 जब ऋषि ने ऐसा वर्णन किया तो यग दत्त ब्रह्मचारी ने कहा, कहीं ऐसा हो जल ही न प्राप्त हो तो हम कैसे यज्ञ करें? उन्होंने कहा कि जब जल ही नहीं है तो पृथ्वी के रसों को ले करके उसको परो क्षण करो और जैसे यज्ञ की यज्ञशाला में सर्वत्र देवताओं का पूजन करता है, उसका अर्थ ही एक पूजन है और वह देव पूजा करता रहता है, तो हम अपने में वृवको: संभवप्रव्हे' मानो उसी में हम रात हो जाएं तो जो हूत करने वाला अग्रणीय बन रहा है! मेरे प्यारे ऋषि कहता है 'याज्ञम भू अब्रव्हे, ब्रह्म: ब्रहे कृतम् देवा:, मानो यज्ञ करना है यदि राज्य से हम यज्ञ करें तो उसे पृथ्वी में परोक्षण करते चले जाए! उन्होंने कहा यदि यह सुविधा भी नहीं प्राप्त हो, तो जल भी आपोमयी है! यह पृथ्वी के कण भी प्राप्त न हो तो तुम हृदय से यज्ञ करो, शांत मुद्रा में विद्यमान हो एकता में मंत्रों से अपने में परोक्षण करते रहो! प्राण की आहुति प्राण को प्रदान करते रहो, व्यान को आहुति व्यान में प्रविष्ट हो रही है! सामान की संपूर्ण आहुति समानता में लाने को तत्पर है! व्यानाय प्राण भी इसी में रहता है! सामान्य प्राण इसकी आभा के लिए हुए रहते हैं! बेटा यह कैसा विचित्र जगत है, यह कैसी विचित्रता? मानव एक दूसरे से कटिबद्ध है, माला है और सार्थक माला बनकर के हृदय में प्रविष्ट हो जाती है! मेरे प्यारे विचार देते हुए मानव अपना मंतव्य अवश्य प्रकट करता है! इसलिए आज मैं तुम्हें यह वाक्य प्रकट करने के लिए आया हूं कि हम अपने जीवन में एक महानता को जन्म देने वाले बने! हम एक महानता की प्रतिभा में रत हो जाए! ऐसा जब ऋषि ने वर्णन किया तो ब्रह्मचारी अपने आसनों पर निहित हो गये, तो मेरे प्यारे मुझे स्मरण आता रहता है कि यह ऐसा क्यों है,देखो इसका एक दूसरे से तारम्य लगा रहता है एक दूसरे से कटिबद्ध रहता है! इसलिए माला है और उस माला को धारण करने वाले अपने मानत्व में रत हो जाते हैं! मैं इस संदर्भ में विशेषता में ले जाना नहीं चाहता हूं! विचार केवल यह है कि हमारा जीवन महानता की वेदी पर रमण करना चाहिए! ताकि हमारे जीवन में एक महानता की उपलब्धि हो जाए! देखो हम जितना भी खादान-खादम वर्णित करते रहते हैं! उसमें कुछ न कुछ जगत की दशा परिवर्तित होती जा रही है! मैं विशेष चर्चा में प्रकट करने नहीं आया हूं! विचार केवल यह है कि मुनिवरो, देखो याज्ञिक बनना चाहिए और यज्ञ में होना चाहिए! यज्ञ अपनी आभा में सदैव रहता है और यज्ञ करने वाला मृत्युंजय ब्रव्हे कृतम देवा:, वह मृत्यु को प्राप्त नहीं होता है वह मृत्युंजय बन जाता है! वह मृत्यु को अपने में धारण करता हुआ सागर से पार होने का प्रयास करता है! यज्ञ से संबंध में तो बहुत कुछ विचार आते रहते हैं! परंतु अब मेरे प्यारे महानंद जी दो शब्द उच्चारण करेंगे!


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you, for a message universal express.

कप्तान तेंदुलकर ने सोलर प्लांट का शुभारंभ किया

कप्तान तेंदुलकर ने सोलर प्लांट का शुभारंभ किया पंकज कपूर  रुद्रपुर। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और भारत रत्न से सम्मानित सचिन तेंदुलक...