शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

संकल्पमयी संसार की विशेषता

गतांक से...
 मेरे प्यारे, राम ने जब इस प्रकार उपदेश दिया अथवा राष्ट्र के ऊपर यह कहां की, कर्मवेताओं तुम राष्ट्र कृतियों को मुझे प्रदान कर रहे हो! मेरा अंतरात्मा यह कहता है कि राजा के राष्ट्र में विवेक की और वेद को जानने वाले पुरुष होने चाहिए! निवेदक कहते हैं जिस राजा के राष्ट्र में वेदों का उद् गीत गाया जाता है और वेदों का उच्चारण करने वाले पक्षी गण भी होते हैं! उस राजा का राष्ट्र होता है जिस राज्य के राष्ट्र में हिंसा नाम की कोई वस्तु नहीं होती! क्योंकि हिंसा होती है या स्वार्थपरता होती है या स्वार्थ नहीं हुआ करता! वहां हिंसा भी नहीं होती तो ऐसा में मानव जाता है! अहिंसा में राजा है अहिंसा में पड़ जाए अहिंसा में विद्यालय है! स्वतंत्र होकर के ब्रह्मचारी को मन करता रहता है मेरे प्यारे विचार विनिमय आता रहता है मैं व्याख्याता नहीं हूं! देखो राम ने जो कर्म वेताओं को उपदेश दिया कर्मवेता उसे कहा जाता‌ है कर्मवेताओअपने राष्ट्र को उन्नत बनाने के लिए सदैव तत्पर हो जाओ। जिससे मैं अपनी आभा में रत हो जाऊं। राम उपदेश देकर मोन हो गए और यह काल की वैदिक कर्मकांड पर की एक ग्रह में सुगंधी आना। क्योंकि राजा का राष्ट्र जब बनता है। जब प्रत्येक प्रकार को सुगँधी आने लगती है। मेरे प्यारे जैसे यजमान यज्ञशाला में विद्यमान हो करके हूत कर रहा है। वह अग्निवेश वादे रहा है और ग्रह में वायुमंडल पवित्र बन रहा है और ग्रह पवित्रता को धारण कर रहा है। यजमान कहता है। हे प्रभु, मेरा राष्ट्र का में परिणत होना चाहिए। मेरे यहां सुगंधी होनी चाहिए। सुगंधी में परिणत हो रहा है मेरे प्यारे यह सुगंधी भी दो प्रकार की होती है। जो मैंने पुरातन काल में भी यह सुना कि एक वह जो सा कल्य से आती है। अग्नि को विभाजन कर रही है। अब नहीं मानो देवता कहलाती है और द्वित याग्निक है। जो ग्रह में सुगंध आती है मानो अग्नि प्रदीप्त हुई और सुगंध आने लगी बेटा प्रातः कालीन प्रत्येक मेरी प्यारी माता और पुत्र जयंत ब्रह्मचारी जन द्वारा प्रत्येक ग्रह में जब वेद का उद् गीत गाया जाता है और वेद के उस गीत गाने के पश्चात प्रत्येक ग्रह से मानो ध्वनि आ रही है। प्रातः कालीन यज्ञ हो रहा है वेद मंत्रों का प्राण की आहुति दी जा रही है। मानव पवमान की ओर से दी गई और वही हूत बनकर के हमारे अंतरण को पवित्र बना रही है। मानव राष्ट्र को उन्नत बना रही है देखो ब्रह्मा जगत की सुगंधित होना चाहिए। चाहे राष्ट्रवाद की वेदी हो चाहे यह आंतरिक वेद मंत्रों की प्रतिभा और उसे राजा का राष्ट्र सुगंधित हो जाए। मेरे प्यारे देखो, भगवान राम ने यही कहा कि मेरा राष्ट्र जो अयोध्या है यह विष्णु राष्ट्र की स्थापना करें और प्रत्येक ग्रह में सुगंधी होनी चाहिए। बेटा सुगंधी जब साले की होती है तो प्रत्येक मानव के हृदय में सुगंधी विचारों की भी होती है। जब मानवीय जगत में विचार पवित्र हो जाते हैं तो वहीं विचार ध्वनित हो करके एक दूसरे प्राणी को स्पर्श करते रहते हैं। बेटा देखो मैंने तुम्हें कहीं काल में वर्णन करते हुए कहा था कि जब मानव के विचारों की सुगंधित यह प्राणी मात्र हो जाता है। तो विचारों में परिणत हो करके हम परमपिता परमात्मा की भक्ति में खो जाते हैं।


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