सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

संकल्पमयी संसार की विशेषता

गतांक से...
 आज मैं भगवान मनु जी के विचारों में जाना चाहता हूं। भगवान मनु ने जिस समय इन पद्धतियों का निर्माण किया तो उन्होंने बड़े विशुद्ध रूप से इसका विश्लेषण किया और यह कहा कि पुरोहितानाम भवितम ब्रह्मा: विष्णु देव:।। भगवान मनु ने यह कहा कि पुरोहित जो परमपिता परमात्मा के नामों से वर्णित किया जाता है और वह जो पराविद्या को देने वाला है। वही तो पुरोहित है ।जो पराविद्या को अपने में धारण करने वाला है। जब भगवान उन्होंने इस राष्ट्र की पद्धतियों का निर्माण किया और उन्होंने राष्ट्रीयता में इस मानवीय समाज को परिणत करना चाहा तो भगवान मनु ने कालेश्वर ऋषि के यहां यह कहा। हे प्रभु, मैं क्या करूं, पुरोहिताम्‌ भूत ब्रव्‍हे,  कि राष्ट्र का जब निर्माण होता है तो पुरोहित की आवश्यकता होती है। ऋषि-मुनियों ने कहा कि वास्तव में पुरोहितों की आवश्यकता है। पुरोहित की आवश्यकता तो जब भी रहती है। जब कोई वस्तु हमारे समीप नहीं होती है एक केवल पुरोहित होता है और पुरोहित हमें विद्या को देने वाला है। ब्रह्मचारी और हमें मानो यदि उसने कर्तव्य के रूप में ही हमें परिणत कर दिया तो हमारा सौभाग्य होगा। मुझे कुछ ऐसा स्‍मरण आ रहा है कि भगवान मनु ने यह कहा कि हमें पुरोहित की आवश्यकता रहती है। देखो वहां पुरोहिताम भवितम, वह पुरोहित बना करके अपने राष्ट्र को उन्नत बनाना चाहते हैं। राजा के राष्ट्र में वास्तव में पुरोहित होने चाहिए और पुरोहित उन्हें कहा जाता है जो परा विद्या को देने वाले हैं। पवित्र पराविधा हमें परिणत करा देते हैं। तो वह पुरोहित कहलाते हैं। मेरे प्यारे, देखो हमारे यहां दो प्रकार की विद्या  प्राय: परंपरागतो से वर्णन किया गया है। एक विद्या भौतिकवाद में हमें परिणत कर देती है और दूसरी विधा कहलाती है जो आध्यात्मिक विज्ञान में हमें परिणत कर देती है। भौतिक विज्ञान की कल्पना करते हुए ब्राह्मणहे: व्रर्तम देवात्मम्‌ ब्रहम:, कि भगवान यह पुरोहित का राष्ट्र में अपना क्या महत्व माना गया है । तो महात्मा कालेश्वर ने कहा कि हे भगवान, हे मनु, संसार में पुरोहित होता है जो भी कुछ होता है वह पराविद्या के देने वाला है। जैसे यज्ञिक यज्ञ करता है अपनी यज्ञशाला में तो यज्ञशाला में एक पुरोहित भी होता है और मैं पुरोहित इसलिए होता है। जो पराविद्या के देने वाला है और पराविधा प्रदान करता है। मानव वही पुरोहित कहा जाता है हमारे यहां परमपिता परमात्मा को पुरोहितों के नाम से व्रणित किया है। क्योंकि वह वास्तव में पराविधा देने वाला है। भगवान से कालेश्वर ऋषि कहते हैं कि हे राजन, पुरोहित किसे कहते हैं। उन्होंने कहा पुरोहित परमपिता परमात्मा को कहा जाता है जो परमपिता परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है। वह पुरोहित कहलाते हैं वह पुरोहिताम भवितम्‌ ब्रहम:,जब ऋषि ने इस प्रकार कहा तो उन्हें यह प्रश्न किया गया कि महाराजा पुरोहित कौन है? उन्होंने कहा देने पुरोहित पराविधा देने वाला है।
 हमारे यहां वैदिक साहित्य में तीन प्रकार की विधा का वर्णन होता है। एक वह जो वर्णन ब्रह्मा कृतम देवा:, देखो वह अवर्णनीय आभा में नहीं रहने वाले हैं। उन्होंने कहा पुरोहित उन्हें कहा जाता है जो पराविद्या को धारण करने वाले ज्ञान और विज्ञान में रत रहते हैं। वह पुरोहित कहलाते हैं भगवान मनु ने कहा कि राजा के राष्ट्र में एक पुरोहित होना चाहिए। जो परा विद्या को समय-समय पर प्रदान करता है। पुरोहिताम भवितम ब्रह्म:, मेरे प्यारे पुरोहित वह कहलाता है जो भगवान मनु ने वर्णन किया है। भगवान मनु ने यह कहा है कि पुरोहित उसे कहा जाता है। जो परा विद्या के देने वाला है परा विद्या में परिणत करा देता है। वही देखो परा विद्या है जो उसे अधिकार प्राप्त हो जाता है तो विचार आता है कि पुरोहित कौन है जो प्रत्येक ग्रह में पुरोहित रहने चाहिए। परंतु पुरोहितम भवितम, बेटा पुत्र का नाम भी पुरोहित कहलाता है। जहां पुरोहितों की चर्चा आती है वहां परमपिता परमात्मा को पुरोहित कहते हैं। मेरे प्‍यारे,देखो पुरोहित पराविद्या को प्रदान करता है जो मानव को विवेक की उपलब्धि करा देता है। वही तो मानो पुरोहित कहलाता है। जो सर्वत्र राष्‍ट्र का स्वामित्व अथवा निर्माण करने वाला है। और उसे निर्माण में परिणित करते हुए अपने महानता को जन्म देता है। जो हमारे यहां पुरोहितों को इस प्रकार की विवेचना आती रहती है। हमारे यहां पुरोहित भी होने चाहिए जिससे राष्ट्र बनता है और जन समाज बनता है। प्रत्येक ग्रह में माता के आंगन में पुत्र-पुत्री विधमान होती है। पुरोहित अपने अधिकार का उपयोग करना चाहता है और वह उपयोग को अपने में पान कर रहा है। देखो वही उपयोगाम भुवरणस्‍तये,वही तो अपने में धारण कर रहा है वह पुरोहित कहलाता है। जो ग्रह को बनाता है जो ग्रह में महानता को जन्म देता है।


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