मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

संकल्‍प रूपी संसार

देखो मुनिवर, आज हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे हैं। यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया है। हमारे यहां परंपरागतो से उस मनोहर वेद वाणी का प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान गाया जाता है। क्योंकि परमपिता परमात्मा महिमा वादी है। जितना भी जगत है, जड़ जगत अथवा चेतन्‍य जगत हमें दृष्टिपात आ रहा है। उस सर्वत्र ब्रह्मांड के मूल में प्रऻय: वह मेरा देव दृष्टिपात आता रहता है। क्योंकि वह अनुपम है महिमा वादी है और इस ब्रह्मांड के रूप में विद्यमान है। जितना भी जगत है चेतनामयी जगत है इसमें जगत है इसमें वह औत-प्रॏत हो रहा है। 'आत्मा ब्राह्मण ब्रेहे कृतम देवा' वेद का मंत्र कहता है वह परमपिता परमात्मा अनंतमई है। दो प्रकार का जगत हमारे यहां माना गया है। एक जगत है जिसे हम चेतन कहते हैं और दूसरा जडवत माना गया है। दोनों के स्वरूप में वह परमपिता परमात्मा विद्यमान है। वह कैसा देव है, कैसा अनुपम है। वह पिंड रूप और चेतनवत दोनों में विद्यमान है। आओ मेरे पुत्रों वेद मंत्रों का गुणगान करें। वेद मंत्र क्या कह रहा है वेद मंत्र कहता है कि हम दोनों प्रकार के जगत को जानने का प्रयास करें। क्योंकि दोनों प्रकार के इस जगत में एक परमपिता परमात्मा की अनंतमयी महिमा प्राय: दृष्टिपात आती रहती है। जब हम इसके ऊपर विचार-विनिमय प्रारंभ करते हैं। तो प्राय: एक अनूठा जगत, एक अनुपमता हमारे समीप आना प्रारंभ हो जाती है। मेरे पुत्रों, विशेषता में नहीं ले जा रहा हूं तुम्हें इन वाक्यों में ले जाना नहीं चाहता हूं। यह तो अनंतमई एक धृति मानी गई है। जहां उस परमपिता परमात्मा को हम पुरोहित और विष्णु के रूप में वर्णन करते रहते हैं। क्योंकि परमपिता परमात्मा का जो अनंत जगत है। वह दो प्रकार की आभा में निहित हो रहा है। एक जंगम ब्रह्मा, एक वृत्‍यम दिव्‍याहम' उस परमपिता परमात्मा को विष्णु कहते हैं। विष्णु के रूप में विद्यमान रहता है। जब हम विष्णु की विवेचना करना प्रारंभ करते हैं। हे विष्णु, कल्याणकारी है। हे विष्णु, अनंतमई विद्यमान है। हमारे यहां वैदिक साहित्य में वेद के मंत्रों में विष्णु नाम परमपिता परमात्मा का माना गया है। हमारे यहां पर्यायवाची जब शब्द आते हैं तो विष्णु की बहुत सी विवेचना होती रहती है। हमारे यहां यह कहते हैं कि विष्णु ब्रह्मा मूल में एक वर्क रहता है परंतु उसका जो बनता है वह अनंत मई कहलाता है परंतु मूल में जो वाक कहते हैं। विष्णु जो पालन करने वाला है। पालन करने वाला वह परमपिता परमात्मा है। जो एक-एक कण कण में व्याप्त है और वह नाना प्रकार के खाद और खनिज पदार्थों के द्वारा हमारा पालन कर रहा है। निर्माण कर रहा है। यह निर्माणवेता भी है। पुत्र कि जब रचना होती है तो माता से यह प्रश्न किया जाता है कि है माता तू निर्माण कर रही है अथवा नहीं। तो माता निर्भर हो जाती है कि निर्माण नहीं कर रही, निर्माण करने वाला कोई और ही है। वह परमात्मा विष्णु कहलाता है और वह निर्माण करता और पालन करने वाला है। मुनिवरो हमारे यहां मूल में एक वाक्य आया है कि पालन करने वाला, परंतु देखो 'ब्राह्मण ब्रव्‍हा क्रतम्‌ लोका: वायु संभवब्रहम:' माता का नाम भी विष्णु कहा जाता है। हे माता, तू पालन कर रही है तू अपनी लोरी ओ का पान कराती हुई, उसका पालन कर रही है और पालन में रहने वाला है वह पालना में जो होती है वह महत्व कहलाती है। माता उसका पालन कर रही है। लोरीओ का पान कराती है उसे ज्ञान देती है विवेक में परिणत करा देती है। वही महत्व को धारण करने वाली,अभ्‍यम्‌ ब्राह्मणा अबप्रवे देवाहम ब्रह्मा:' देखो पुत्रों माता सतोगुण से उसका पालन कर रही है। रजोगुण में शासन हो रहा है। तमोगुण उत्पत्ति का मूल कहलाता है। विचार-विनिमय क्या है? वही सतोगुण है, वही रजोगुण है वही तमोगुण कहलाता है। यह जगत एक दूसरे का पूरक कहलाता है। एक दूसरे में पिरोया हुआ था दृष्टिपात आता है। सतोगुण में पालना है और रजोगुण में भी यदि सतोगुण मिश्रित नहीं होगा तो न्याय नहीं होगा और दोनों की तरंगे यदि तमोगुण में नहीं होगी तो उत्पत्ति का मूल भी नहीं बन पाएगा। विचार विनिमय क्या है। वह देखो,रजोगुण वही तो वही सद्गुण एक ही सूत्र के 3 मनके कहलाते हैं और उनकी माला बन जाती है।


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