मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...


मुझे भगवान राम का जीवन प्राय: स्मरण आता रहता है | उनका जीवन एक महान आदर्शवादी रहा है उनके जीवन में एक महानता की प्रतिभा रही है मुझे वह काल स्मरण आता रहता है जिस काल में भगवान राम पंचवटी में अपने समय को प्राय: व्यतीत कर रहे थे वह अपने आसन पर विद्यमान रहते | उनके समीप एक समय मगध राष्ट्र के राजा सामब्राह्म तथा और भी कुछ राजा अपनी अपनी स्थलीयों से एकत्रित हुए एक स्थल पर और विचारा गया कि राम को बन हुआ बहुत समय हो गया है परंतु चलो उनके दर्शनार्थ के लिए उनसे कुछ वार्ता प्रगट करें सब राजाओं ने इन वाक्यों को स्वीकार कर लिया | अगले दिवस प्रातः कालीन वे सब राजाधिराज भगवान राम के समीप उस पंचवटी में आ गये जहां देखो नाना ऋषिवर पहले ही विधमान थे और नाना प्रकार के भोज्यो का वहां प्रयास होता रहा | परंतु जैसे ही राजा इत्यादियों का आगमन हुआ तो ने ऋषि अपने में हर्षध्वनि की ओर हर्ष-ध्वनि करके कहा कि आइये राजन और वह विधमान हो गये, विराजमान हो गये | तो उन्होंने कहा कहो भगवन कैसे इस आसन को पवित्र किया है | तब राजाओं ने कहा है राजम् ब्रह्म: हम अपने में राजकुमार कुछ शंका लेकर के आये हैं | राम ने कहा बोलो तुम्हारी क्या शंका है ? तुम्हारी शंकाओं का निवारण करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूं और उन्होंने कहा कि उच्चारण करो कि तुम क्या चाहते हो ? राजाओं के कहा प्रभु हम यह जानना चाहते हैं कि राजा किसे कहते हैं | अब हम अब तक यह नहीं जान पाये है कि राजा कौन होता है | हम स्वयं शासन करते हैं राजा के  संबंध में भिन्न-भिन्न उड़ान भी उड़ी गई है परंतु हमें कुछ प्रतीत नहीं हुआ भगवान राम ने कहा कि यह जो याग है यह ,,यज्ञ मानो यह दोनों प्रकार से अपने में प्रतिष्ठित रहता है राम वहां ऋषियों के वाक्यों के ऊपर कुछ विचार विनियम करने लगे | भगवान राम ने कहा कि तुम राष्ट्र को जानना चाहते हो तो राष्ट्र दो प्रकार का होता है एक राष्ट्र वह होता है जिसमें राजा का जन्म माता के गर्भ से होता है एक राष्ट्र वह होता है जिसमें राजा का निर्वाचन प्रजा द्वारा होता है तो इस प्रकार दोनों प्रकार के राज्यों पर अथवा राजाओं पर मानव को ऊंची कल्पना करनी चाहिए | राजा राम ने कहा है राजाओं तुम यह जानना चाहते हो कि राजा किसे कहते हैं राजा उसे कहते हैं जो प्रात: कालीन अपनी स्थलियों को त्याग करके अपने जीवन के क्रिया-कलापों में निहित हो जाता है और क्रियाकलापों में निहित हो करके मानो राष्ट्र में शुद्धीकरण उसके समीप होता है राजा के राष्ट्र में धर्म में एकोकी रूढ़ि नहीं रहनी चाहिए | मुझे महानंद जी ने कई काल में वर्णन कराया कि रूढ़ियो का विनाश होना चाहिए और अपने में मानव को उस पद्धति को विचारना चाहिए राम ने कहा राजा वही होता है जो प्रातः कालीन अपनी क्रियाओं से निवृत हो करके प्रभु में ध्यानावस्थित हो करके अपने अन्य क्रियाकलापों में  प्राय: हो जाता है अपने क्रियाकलापों से निवृत हो कर उसे राष्ट्र की  कृतिमा में उसे समलग्न हो जाना चाहिए वह प्राणायाम करने वाला होना चाहिए वह राजा यह विचारता कर रहे हैं कि संसार में प्राण ही नि:स्वार्थ है तो इसीलिए मुनिवरो संसार में राजा को प्राण की भांति नि:स्वार्थ होकर रहना चाहिए जैसे प्राण नि:स्वार्थ है! वह चेतना बद है! तो ऐसे ही राजा अपने में प्रतिपादित  हो करके अपने राष्ट्र और समाज में एक महानता की समदर्शिता का अपना निर्णय दें | जब इस प्रकार का राजा होता है तो उस राष्ट्र में कोई त्रुटि नहीं होती उस राजा के राष्ट्र में धर्म और मानवता का प्रसार होता है और यह मानो कि मानवता ऊंची बन रही है तो मेरे प्यारे वह जो महान वृत्तीया ब्रह्म लोकाम समिधा अगने देखो वही तो समिधा बन करके रहते हैं जो राजा के हृदय में प्रजा के मध्य में वह दीपमालिका आकृतियों में रत हो जाती है!


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