मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 वह वेद के मर्म को जानने वाले विवेकी पुरुषों से विचार-विनिमय करता है और विचार-विनिमय करता हुआ, अपने राष्ट्र को उन्नत बनाने में लगा रहता है। हे राम, तुम्हारे पूर्वजों में भी इसी प्रकार रहा है। महाराजा दिलीप ने संतान उत्पत्ति के लिए एक महान तप किया। उन्होंने रेणु के पीछे 12 वर्ष का जीवन उपार्जन किया और वह अपने में महानता का गान गाने लगे। तपस्या के पूर्ण होने पर देवताओं की उद्गीथ वाली आमोध वाणी का वहां उपयोग होता रहता है। उसे श्रवण करता हुआ मानव अपने में मानवता की आभा में रत हो जाता है। मेरे पुत्रों, देखो विचार है आता रहता है आज केवल यह कि राष्ट्रवाद किसे कहते हैं? यह विचार आ रहा है। मेरे प्यारे जब उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से इस प्रकार का विश्लेषण किया। तो राम ने वशिष्ठ मुनि महाराज से कहा कि महाराज यह राष्ट्रवाद क्या है? उन्होंने कहा राष्ट्रवाद वह होता है जब प्रजा के एक कर्तव्य वाद की धारणा बलवती हो जाती है। तो राजा एक चुनौती लिए होता है वह राजा वशिष्ठ कहलाता है। जो समय से प्रजा को अपना उपदेश देना प्रारंभ कर देता है। वह राष्ट्रवाद क्या है। यह विचार प्रसंग है। देखो महात्मा वशिष्ठ मुनि महाराज ने कहा कि राष्ट्रवाद वह कहलाता है जो राजा राष्ट्रधर्म, जो धर्म और मानवता को लेकर गमन करता है और अपने राष्ट्र का पालन करता है। संसार में वह राष्ट्र कहलाता है। जिस राजा के राष्ट्र में प्राण चला जाए, धर्म ही तो राष्ट्र का प्राण कहलाता है। मेरे प्यारे जैसे मानव के शरीर से जब धर्म चला जाता है तो यह आत्मा नग्न रह जाती है। जब राष्ट्र से धर्म चला जाता है तो राष्ट्र अपंग बन जाता है। मेरे प्यारे विचार आता है कि धर्म क्या है? जिसके ऊपर मानव कितना बल देता चला आया है। मुनिवरो देखो, वह धर्म कहलाता है जो देवताओं की ध्वनि है अथवा धरोहर है। वही तो ध्वनि बनकर के राष्ट्र को उन्नत बनाती है। राष्ट्रवाद बेटा वही कहलाता है जहां धर्म को, मानवता को उधरवा में गमन कराके इस सागर से पार होने का मानस प्रयास करता है। वही तो राष्ट्रवाद कहलाता है। राष्ट्रतम ब्रह्म:, जो धर्म और मानवता को लेकर गमन करता है और अपने राष्ट्र का पालन करता है। विद्यालय में अध्ययन कराने वाला आचार्य ब्रह्मचारी को अनुशासन में लाता है। अनुशासित होता हुआ अपने ग्रह को भी त्याग देता है। मेरे प्यारे विचार-विनिमय यह हो रहा है कि महात्मा से यह प्रश्न किया गया कि राष्ट्रवाद क्या है। जब उन्हें यह प्रसन्न हुआ कि राष्ट्रवाद क्या है। तो वशिष्ठ बोले हे राम, राष्ट्रवाद उसे कहते हैं जहां प्रत्येक मानव शांति प्रिय ‌हो। जिस राजा के राष्ट्र में अश्वमेघ यज्ञ होते हैं और अश्वमेघ यज्ञ इस प्रकार होते हो। वहां वृति विद्यमान हो और राष्ट्र अपनी आभा मे रत होने वाला हो। मैंने तुम्हें कई काल में वर्णन कराते हुए कहा हे राम, तुम्हारे पूर्वज महाराजा सागर ने जिस समय अश्वमेघ यज्ञ किया तो उससे पूर्व यह जानकारी दी कि मेरा कोई शत्रु तो नहीं है। जब कोई शत्रु नहीं रहेगा तो राजा को यह अधिकार है कि वह राष्ट्र का पालन करें और राष्ट्र को पालन करता हुआ देखो अश्वमेघ यज्ञ को रचने वाला हो। मेरे प्यारे, मुझे स्मरण आता रहता है कि महाराज सगर ने अपनी चौमुखी सेना को कहा कि तुम इस घोड़े के पीछे चले जाओ और जो भी इस घोड़े को अपने आसन पर नियुक्त कर लेता है। उस राजा को विजय करना है। महाराजा सगर ने अपने पुत्र सुखमंजस से कहा हे सुख मंजस मेरा यह अश्व जा रहा है। अश्वमेघ के लिए इसकी सुरक्षा करना है। उन्होंने कहा बहुत प्रियतम राजा का श्रृंगार से सुशोभित है। स्वर्णमयी उसका श्रृंगार बना है। उसके मस्तक पर एक लेखनी बध्द कर दी। यह अश्वमेघ यज्ञ का प्रतीक है और जो भी इसे अपने में धारण करेगा। उसको विजय करना होगा। देखो यह विचार हो रहा था अमृताम ब्राह्मणे: प्रहा सधनम् दृश्वता: ऐसा मुझे स्मरण आता रहता है कि वेद के मंत्रों को जानने के लिए तत्पर रहता है। उसको जानता हुआ अपने में कृति करता रहता है।


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