शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

गिध्द प्रजाति का 97 फ़ीसदी पतन

गिद्ध शिकारी पक्षियों के अंतर्गत आनेवाले मुर्दाखोर पक्षी हैं, जिन्हें गृद्ध कुल (Family Vulturidae) में एकत्र किया गया है। ये सब पक्षी दो भागों में बाँटे जा सकते हैं। पहले भाग में अमरीका के कॉण्डर (Condor), किंग वल्चर (King Vulture), कैलिफोर्नियन वल्चर (Californian Vulture), टर्की बज़र्ड (Turkey Buzzard) और अमरीकी ब्लैक वल्चर (American Black Vulture) होते हैं और दूसरे भाग में अफ्रीका और एशिया के राजगृद्ध (King Vulture), काला गिद्ध (Black Vulture), चमर गिद्ध (White backed Vulture), बड़ा गिद्ध (Griffon Vulture) और गोबर गिद्ध (Scavenger Vulture) मुख्य हैं।


ये कत्थई और काले रंग के भारी कद के पक्षी हैं, जिनकी दृष्टि बहुत तेज होती है। शिकारी पक्षियों की तरह इनकी चोंच भी टेढ़ी और मजबूत होती है, लेकिन इनके पंजे और नाखून उनके जैसे तेज और मजबूत नहीं होते। ये झुंडों में रहने वाले मुर्दाखेर पक्षी हैं जिनसे कोई भी गंदी और घिनौनी चीज खाने से नहीं बचती। ये पक्षियों के मेहतर हैं जो सफाई जैसा आवश्यक काम करके बीमारी नहीं फैलने देते।ये किसी ऊँचे पेड़ पर अपना भद्दा सा घोंसला बनाते हैं, जिसमें मादा एक या दो सफेद अंडे देती है।


पतन-यह जाति आज से कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पायी जाती थी। 1990 के दशक में इस जाति का 97% से 99% पतन हो गया है। इसका मूलतः कारण पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको भारतीय गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई मॅलॉक्सिकॅम आ गई है और यह हमारे गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं। जब इस दवाई का उत्पादन बढ़ जायेगा तो सारे पशु-पालक इसका इस्तेमाल करेंगे और शायद हमारे गिद्ध बच जायें।


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