शनिवार, 14 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता (कर्तव्यवाद)

गतांक से...
उन्होंने भयंकर वनो में साक्लय एकत्रित किया। नाना प्रकार की औषधियों का मिश्रण हो गया। उससे सुगंधित पदार्थ जो पुष्पी वालों पदार्थ की वृद्धि करने वाली थी। उस औषधियो के साकल्‍य को एकत्रित किया और वह मुंजूक ऋषि के यहां एक कामधेनु गऊ रहती थी। उसके घृत को लिया, वह यज्ञ की सफलता का एक मूल है मुलक बन जाता है। तो उन्होंने यज्ञ प्रारंभ किया। मुंजुक ॠषि ने उस यज्ञ का प्रारंभ कराया और अपने शुद्ध हृदय से निर्भय बन करके उन्होंने यज्ञ का प्रारंभ किया। जब प्रारंभ हुआ तो उस वन मे भयंकर सिंहराज मृगराज भी ध्वनि को ध्वनित अपने में श्रवण करने लगे। मुझे कुछ ऐसा स्मरण है मुनिवरो, देखो वहां कहीं से भ्रमण करते हुए भारद्वाज गोत्र से विश्वतम ऋषि महाराज कहीं से भ्रमण करते हुए आ गए। मुंजुकॠषि भी विद्यमान है। उन्होंने मुनिवरो, देखो साकल्‍य की अग्नि में अर्पित करने लगे। तो उन्होंने कहा ॠषिवर उनके अंतरण को मुंजुकॠषि ने दृष्टिपात किया और मुंजुकॠषि ने कहा कि तुम्हें यह प्रतीत है कि यह जो व्रतकेतू जो याग कर रहे हैं। यह क्यों कर रहे हैं?उन्होंने कहा प्रभु मैं तो नहीं जानता। उन्होंने कहा यह सनातन शुद्धि के लिए,आत्मशुद्धि के लिए, यह वायुमंडल को पवित्र बनाएंगे। ब्रहम-जगत जब तक हमारा पवित्र नहीं होगा। हम अंतर-जगत को पवित्र नहीं बना सकते इसलिए यह ब्रहम-जगत का शोधन कर रहे हैं तो उन्हे ऐसा स्मरण है। उन्होंने कहा तो क्या मैं नहीं बना सकता। तुम्हारी विचारधारा में तमोगुण छाया हुआ है और वह तमोगुण की तरंगों का वायु मंडल अग्‍नी के ऊपर विश्राम करके वाय में प्रवेश कर गए तो यह वायुमंडल पवित्र नहीं बना सकेंगे। इसलिए तुम अपनी विचारधारा को पवित्र बना करके प्राप्त हो। उन्होंने कहा मुंजुक ॠषि से प्रभु प्राप्त यथार्थ कहते हैं। मेरा रजोगुणी विचार रहा है मैं तो सतोगुणी बनाना चाहता हूं। उन्होंने कहा जाओ तपस्या करो। तो उन्होंने देखा कि यग का प्रारंभ किया। तो राजा व्रतकेतू ने याग संपन्न किया। मुंजुकॠषि के सहयोग से वायु मंडल पवित्र हो गया। तो वायुमंडल में जो शब्दों की धारा है ध्‍वनिया है गृह में क्या ,आश्रम में क्या ,वह वायु में भ्रमण करती रहती है। अग्नि की तरंगों पर विद्यमान हो जाता है। यह ज्ञान हमारे समीप परम्‍परागतो से ऋषि मुनियों के मस्तिष्क में नृत्य करता रहा है। जो मुंजुकॠषि महाराज ने एक वर्ष तक इस प्रकार की याग प्रारंभ किया। प्रात: कालीन याग होना,मध्यकालीन अध्‍यन होना और देखो सायं काल को याग के पश्चात चिंतन करना। मनिवरो देखो उनका ह्रदय 1 वर्ष के पश्चात उनकी जो भावना रजोगुण की जो भावना यह समाप्त हो गई। हृदय में  उनका ब्रहम जगत पवित्र बन गया। साधना में परिणत हो गए।
वह साधना मे परिणत हो गये। साधना उनकी बड़ी विचित्र ता में चली गई आगे चलकर वह ब्रह्म बिता बने तो मुनिवर देखो वाक्य उच्चारण करने का अभिप्राय यह है कि हम अपने इस मानवीय जीवन को इतना महान इतना पवित्र बनाएं कि हमारा ब्राह्मण जगत, अंतर-जगत दोनों पवित्र हो जाए और हम ब्रह्मा को एक-एक, कण-कण में दृष्टिपात करने लगे तो मुनिवरो हमारा अंतर-हृदय अभिमान मुक्‍त बन सकता है और नीरअभिमानी बन करके हम वेद रूपी प्रकाश को अपना करके, स्वत: प्रकाशमान हो जाए। मेरे प्यारे देखो यह वाक मैंने अभी-अभी प्रकट किया है। अब मेरे प्यारे महानंद जी शब्द उच्चारण करेंगे।
श्रावणि गतम्‌ मना: वाचन्‍नम्‌ वृहे कृतं
 मेरे पूज्य पाद गुरुदेव मेरे भक्त ऋषि मंडल, मेरे पूज्य पाद गुरुदेव गुरुदेव वेद और दर्शन की वार्ता प्रकट कर रहे थे। क्योंकि यह जो मानवीय दर्शन है यह परंपरागतो से ही विचित्र माना गया है। जब हम पूज्‍यपाद गुरुदेव के चरणों में और ओत-प्रॊत होते हैं तो हम अपने में अपने को धन्य स्वीकार करते रहते हैं। बहुत समय हो गया है इसका अध्ययन करते हुए मुझे किसी काल में असमंजस हो जाता है। उसके बाद के हृदय में इतने ज्ञान की धाराओं की उपलब्धियां होती रहती है। कितनी महान स्मरण शक्ति है, स्मरण शक्ति के द्वारा यह वह उदगीत गाते रहते हैं और ऐसे समुद्र में चले जाते हैं जहां से नाना रत्नों को ले करके आते हैं। याग की विवेचना कर रहे हैं इनका विवेचनामयी हृदय अदम्‍यमयी ज्योति वाला जो उद्देश्य है। वह हमारे हृदय को स्पर्श करता रहता है। परंतु आज पूज्य पाद गुरुदेव को मैं तो कुछ परिचय देने चला आता हूं। मैं व्याख्या देना नहीं चाहता। पूज्‍यपाद गुरुदेव को मैंने कुछ उदगीत गाने के लिए चला आया हूं और वह क्या है कि जहां यह हमारी आकाशवाणी जा रही है। जहां हमारी यह प्रेरणादायक शब्द जा रहे हैं। उस स्थली पर एक यज्ञ का समापन हुआ है। मेरा हृदय बड़ा गदगद रहता है कि यह जो काल है बड़ा विचित्र काल चल रहा है। यहां सूरा पान माशांहार की एक गतिया मानव के हृदय में गतिशील हो रही है।


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