मंगलवार, 17 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता (कर्तव्यवाद)

गतांक से...
 मैं यह विचारता हूं कि जब यह प्रश्‍न्न किया जाए कि राजा इसका निवारण क्या है? इन वाक्यों का, तो निवारण मै उच्चारण किए देता हूं। मैंने कई काल में राष्ट्रीय निवारणओं की चर्चाएं प्रकट की है । संसार के सब राजा एकत्रित हो,अपनी संपदा के आचार्य, अथवा रूढियो के जो संप्रदाय के आचार्य हैं। उनके पक्‍ंती लगाई जाए और उसका शास्त्रार्थ होना चाहिए। जो ज्ञान, यज्ञ और मानव दर्शन पर घटित हो जाए। उसी सिद्धांत को राजा को अपनाना चाहिए। उस सिद्धांत को अपनाकर के अहिंसा परमो धर्म की विधि को अपनाकर के जब राजा  कर्तव्य करेगा तो वह राम राज्य, राष्ट्र का पुन: परिवर्तन हो जाएगा। परंतु देखो जब यहां नाना प्रकार के मत-मतांतर केवल अपनी राष्ट्रीय सत्ता के लिए, इनमें विचार नहीं किया जाता है। वाक्य संबंध नहीं किया जाता है। तो राजा और प्रजा दोनों हिंसक बनते चले जाते हैं। मैं विचारता हूं कि मौलिक सिद्धांत को लिया जाए। विज्ञान के ऊपर जो तत्पर हो धर्म और मानवता के ऊपर जो तपस्या में परिणत हो जाए। उसी को तो हमें स्वीकार करना चाहिए। परंतु वेद को ले लेते हैं वेद के विचारों को देते हैं तो उसमें विज्ञान है। उसमें मानवता है उसमें मानव दर्शन का निर्माण होता है। तो उस धर्म को हमें अपनाना चाहिए। परंतु राष्ट्रीयता का निवारण केवल यही है कि हम उसके निवारण रूपों में कर सकते हैं। चाहे जितने मतांतर हैं उन को समाप्त किया जा सकता है। उनको एक वेदी पर लाया जाए और एक वेदी पर लाकर के जब एक वेदि का प्राणी हो जाता है एक विचार हो जाता है। वायुमंडल में उनके शुद्ध विचार प्रवेश करेंगे तो वायुमंडल भी पवित्र हो जाएगा। राष्ट्र पवित्र बन जाएगा। मानव में से विचारों की सुगंध आना प्रारंभ हो जाएगा। तो इसलिए मैंने बहुत पुरातन काल में कहा कि राष्ट्रीयता का एक ही निवारण होता है। क्योंकि इस राष्ट्र का निर्माण सबसे प्रथम भगवान मनु ने किया था। तो मनु से एक समय एक ऋषि ने प्रश्न किया। हे भगवन, हे मनु, तुमने राष्ट्र का निर्माण क्यों किया है? तो भगवान मनु ने यह कहा कि राजा के राष्ट्र में मछली से लेकर के प्राणी तक किसी का भी हनन नहीं होना चाहिए। क्योंकि राष्ट्र का निर्माण इसलिए होता है कि आज संभव है मानवता को कर्तव्यवाद के लिए मानव को शिक्षा दी जाए। राष्ट्रीय क्या है, राष्ट्र अपने में महान नहीं है परंतु देखो राष्ट्र का पालन इसलिए निर्माण होता है। कि वह अपने मानव कर्तव्य की वेदी पर स्वयं को ला सकें। इसलिए महापुरुषों का निर्वाचन होता है और राजाओं को चुनौती। वशिष्ठ की चुनौती प्रदान करके कहा जाता है कि तू अपने राष्ट्र को ऊंचा बना। मानव समाज को कर्तव्यवाद में लाने के लिए तत्पर हो। परंतु देखो मनु जी का यह सिद्धांत, मनु जी का राष्ट्र का निर्माण किया हुआ, दिखाया मार्ग अपनाओ। मेरे पूज्यपाद गुरुदेव कहा करते हैं कि देखो जब वह समुद्र के तट पर तपस्या करने पहुंचे। कमंडल में जब तर्पण करने लगे तो जल को जब कमांडलो में लिया तो उसमें एक मछली आ गई। वह जब उसको समुद्र में रिक्त करने लगे तो मछली अपने विचार व्यक्त करती है। क्योंकि वह राजा होता है राजा प्रत्येक प्राणी के विचारों को अपने में अनुमान के द्वारा, मंथन के द्वारा समझ सकता है। भगवान ने उस मछली को दृष्टिपात किया तो मछली कहती है। हे भगवान, हे राजन, मैं इसलिए तेरी शरण आई हूं। समुंदरों का यह सिद्धांत है। बड़ी मछली छोटी मछली को अपना आहार बना लेती है और वह प्रबल बनती जाती है। मेरी इच्छा है मैं आपकी शरण में आई हूं, आपके मन में आई हूं आप मेरी रक्षा करो। भक्तिभाव से मनु ने, उन्होंने कमडलं मे प्रवेश कराया। उसमें मछली पनपती रही, प्रबल हो गई विशाल, बन गई और अपने समुंद्र को चली गई। और उसने चलते समय यह कहा हे मनु, कुछ काल के पश्चात वह भविष्यवाणी करने लगी है। मनु कुछ काल के पश्चात समुद्रों में जल प्लावन आएगा और मेरा मिलन समुंदरों से होगा और तुम एक नौका बनवा लेना वह नौका मेरे सिंह से मेरी अनुभूतियों को उसको जकड़ देना मैं तेरी नौका की रक्षा करूंगी। वही तो तुम्‍हारा रक्षक होता है जिसकी तुम रक्षा करो। जिसकी तुम रक्षा करोगे वह तुम्हारी रक्षा करेगा। शरीर के लिए तुम महान बनोगे तो शरीर तुम्हें महान बना देगा।


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