शनिवार, 21 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता

गतांक से...
'ब्रहम वाचवृही लोकाम'  हमारे यहां राजा के नामकरण से एक स्वयंवर होने वाला है तो स्वयंबर के नामों से वह पत्रिका महाराज तुगंध्वज राजा के यहां प्रकाशित की गई। तो उन्होंने कहा भाई नरवर, वहां राजा नल का नाम सेव कृतिका वर्णित करते रहते थे। राजा ने कहा हे सेवक, यह पत्रिका आई है 'कुंदनो धानम्‌ जत्ती ब्रह्मा' एक राजा है जो तुंगधानिक नामक राजा है। उनकी कन्या का नाम स्वतक है। राजा नल कहीं मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं। परंतु उनकी कन्या का पुन: संस्कार होना, स्वयंवर होना नियुक्त किया है। तो मैं वही जाने वाला हूं कैसे जा सकता हूं? केवल 2 दिन, दो ही दिवस है और देखो मार्ग बहुत दूरी का है। यह कैसे जा सकते हैं? तो उन्होंने कहा महाराज नल के वाहन की गति कराई है। मैं उसका सारथी रहा हूं। यदि आपकी इच्छा हो तो मैं तुम्हारे वाहन की कृतियां कर सकता हूं। उन्होंने कहा बहुत प्रियतम, वाहन को लेकर के जब महाराजा नल वहां से गमन करते हैं। तो गमन करते समय जो गति कर रहे थे तो महाराजा तुगंध्वज का एक वस्त्र भूमि पर गिर गया। उन्होंने कहा वह तो संयोजन दूरी जा चुका है। तुम कहां हो संभोवृत्ती आश्चर्य में हो गए। राजा का वाहन इतनी गति से वाहन चल रहा है। सायं काल को ही देखो राजा सेनकृति के यहां वह विद्यमान हो गये। एक वाटिका थी पुष्प वाटिका में राजा का देखो स्थान-निवास बनाया गया। राजा को स्थिर किया गया। नाना प्रकार के पदार्थों से उनका स्वागत हुआ। तो मनिवरो, देखो महारानी दमयंती ने कहीं विचारा कि मेरे स्वामी से तो मुझे दृष्टिपात आते हैं। परंतु देखो जो एक कन्या और एक पुत्र था। वह समीप लाये गये उनको भी प्रतीत हुआ। परंतु फिर भी उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा राजन तुम्हारा जो सारथी है यह बहुत सुंदर और प्रिय भोजन बनाता है। उन्होंने भोजन का निर्माण किया। जब भोजन पान किया तो वास्तव में उसी प्रकार का देखो रस और स्वाद आने लगा जैसे महाराजा नल के भोजनालय में आता, भोजन का निर्माण करते थे तो ऐसे ही दृष्टिपात आने लगा। महारानी प्रसन्न हो गई परंतु यह विचारा की यह भी एक कृतियों में है। मैं कुछ दीपक मालिका जानती हूं वह भी दीपक गान जानते हैं। उस दीपक गान के संबंध में दोनों ने कहा प्रार्थना की हे देव आप वास्तव में तो वही है परंतु मुझे अभी भी शंका है। मैं यह चाहती हूं कि आप दीप मालिका गान रूपों से गाइए। जिस दीपक गान के गाने दीपिका बन जाती है नगरों के दीपक जल जाते हैं। राजा ने कहा हे देवी, गान को गाने योग्य नहीं हूं क्योंकि मेरा हृदय नहीं कह रहा है। दमयंती अपने कक्ष में चली गई। सायंकाल का समय था परंतु देखो सभी अपने आसनों पर विद्यमान हो गए। एक वाक्य और कहा था उन्होंने अपनी पत्नी से यह तुमने क्या रचना रची है। तो महारानी ने कहा प्रभु रचना क्या है यहां राजा कोई नहीं है तो आपको ही निमंत्रित करने के लिए मैंने इतना परिश्रम किया है। यहां कोई राजा नहीं है समझना नहीं है जब अपने कक्ष में चले गए। तो रात्रि का मध्यकाल जब समाप्त हुआ उस समय प्रसन्न होकर नल ने उन दोनों को, प्राण और मन दोनों को एकाग्र किया। एक सूत्र में सूत्रित करके उन्होंने गान गाया जब गान गाने लगे तो मुनिवरो, कहते हैं ऐसा मुझे स्मरण कराया गया। जब गान गाया तो सर्वत्र नगर की एक दीप मालिका बन गई। जब दीप मालिका बन गई तो राजा दमयंती के पिता जो राजा थे वह अपने आसन को त्याग करके अपनी महारानी से बोले देवी, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कहीं नल हमारे नगर में विद्यमान है ।नल इस प्रकार का गान जानता है जो दीप मालिका नगरों की बन जाती है। जब उन्होंने कहा कि कब बनती है। मालिका का प्रसंग आया तो दीपावली बन गई। नगर में देखो उनके राजगृह की दीपावली की आकृतियां बन गई। रानी दमयंती को विश्वास हो गया कि यही मेरा स्वामी मेरा पूज्य देव है। प्रातः कालीन राजा नल के समीप जाकर चरणों का स्पर्श किया। हे देव, वास्तव में आपने दीप मालिका बना दिया। राजा तुगंध्‍वज को प्रतीत हुआ कि यह तो नल था। तुम्हारे यहां सेवक का कार्य करता रहा। वहां के क्रियात्मक कर्म करता रहा। मुझे कुछ ऐसा स्मरण है ऐसा मुझे नृत्य कराया है कि राजा ने 'शंभो देवो ब्रहमलोकवृत्‍ति लोकआस्त्ता' रानी दमयंती ने उसे जान करके उनके चरणों की वंदना की और महाराज तुगंध्वज को उनके वाहन में बिठा उनके गृह में पुन:लैटाया।नल के चरणों को स्पर्श किया कि महाराज मेरे यहां कुछ समय तक वास किया है मैं तो बड़ा कृति में अभागा हूं। मैं आपको जान नहीं पाया हूं। मेरा यह बड़ा दुर्भाग्य रहा है। राजा ने कहा कोई कार्य नहीं मेरा यह आपत्ति काल है। मेरा आपत्ति काल भी समाप्त हो गया है। मेरा 12 वर्ष का काल समाप्त हो गया है और देखो मेरे जीवन की प्रतिभा महान बन गई है।


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