रविवार, 8 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता (धर्मवाद)

गतांक से...
मेरे प्यारे, मुझे वह काल स्‍मरण आता रहता है कि जब मेरी प्यारी माता अनुसंधान करती रहती है। मुझे वह काल स्मारण है। जब वह मेरी प्यारी माता यज्ञ कर रही है। और जब वह करती है तो उसका यह कैसा भाव है। उसका कोई व्रत करने वाला हो, अनुसंधान करने वाला हो, तो ब्रह्म लोक को प्राप्त हो जाती है। मेरी प्यारी मां, हे मां, तू वास्तव में जीवन को उदबुध करने वाली है। प्रकाश मे ले जाने वाली, ममत्व को धारण करती हुई। तू शरीर की अग्नि को उद्धत करने वाली है वही अग्नि उदबध हो करके अमृत में प्रवेश हो जाती है। अमृत में उसका परिवर्तन हो जाता है। वह माता का कितना व्यापक धर्म है और उस धर्म को जो अपना लेता है। वह कर्तव्यवाद की विधि पर विराजमान हो करके अपने जीवन को उधरवा गती में ले जाता है, महान बना लेता है। आज मनियरो देखो विशाल या विशेष चर्चा तुम्हें प्रकट करने नहीं आया हूं ।आज हम संस्कृतिक परिचय देने आए हैं और वह परिचय क्या है कि वैदिक ऋषियों ने नाना रूपों में इस संसार की कल्पना की है। इस संसार को याज्ञिक पुरुषों ने यज्ञ में ही माना है। परंतु देखो यज्ञ में जिस भी वाक को लेना प्रारंभ करोगे वही वाक अनंत में तुम्हें दृष्टिपात आता रहेगा। प्रत्येक मानव विज्ञान के युग में प्रवेश करना चाहता है। वैज्ञानिक बनना चाहता है मेरे प्यारे महानंद जी मुझे नाना प्रकार की प्रेरणा देते रहते हैं। परमाणु वाद की विचारधारा पर ले जाना चाहते हैं। परंतु आज से हमने बहुत पुरातन काल में निर्णय देते हुए कहा था कि संसार में मानव को अपने जीवन में शक्ति को उत्पन्न करना है। वह शक्ति जो अभ्यास गति बनकर ओजस्वी-वर्षोंचोसी  बनकर के मानव जीवन को महान बना देता है अर्थात पवित्र बना देता है। जिस पवित्रता का स्वरूप मानवीय जीवन में एक आभा बन करके रहता है अथवा विचित्र बनके रहता है। आज मैं तुम्हें एक ऋषि के आश्रम में ले जाना चाहता हूं। एक समय का वाक है ।मुनिवर, देखो ऋषि ब्रेनकेतु महाराज थे। ब्रेनकेतु महाराज जो दद्दड गौत्रीय कहलाते थे। परंतु देखो उनका जो संस्कार हुआ वह शांडिल्य गोत्र में हुआ। उनका संस्कार जब शांडिल्य गोत्र में हुआ तो वह नित्य प्रति यज्ञ करते थे। कैसा यज्ञ करते थे। मुनिमरो, लाना साकल्‍य भयंकर वनों से एकत्रित करते रहते और यज्ञ करते रहते थे। वह विश्व ब्रह्मांड को इस वायुमंडल को पवित्र बनाते रहते थे। यह कहा करते थे कि सुगंधी देना ही हमारा कर्तव्य सुगंधी में लाना ही हमारा कर्तव्य है। इसलिए संसार में प्रत्येक मानव को सुगंधी को लाना है। वह सुगंधी यज्ञ के द्वारा आती है। वह विचारों के द्वारा आती है। राष्ट्र के द्वारा भी आती है। जिसमें मुनि वह सुगंधी होती रहती है और सुगंधी कैसी होती रहती है। मैंने बहुत पुरातन काल में तुम्हें निर्णय देते हुए देखा था कि वह राजा सुगंधी सुगंधी की स्थापना करता है। जिस राजा का जीवन चरित्र होता है चरित्र जीवन होता है। पांडित्य को लेकर के अपने राष्ट्र को ऊंचा बनाता है मुझे स्‍मरण आता रहता है। जब महाराज जानवी अपने आसन पर विद्यमान है। परंतु देखो ब्राह्मण समाज यह उच्चारण करता है ।चलो राजा जानवी महाराज जानवी के आश्रम को जाना है। वेद के जिज्ञासु राजा जानवी के द्वार पर पहुंचते हैं। जानवी राजा मनु वंश में उत्पन्न हुआ। महाराज जानवी के उस समय जब नाना ब्राह्मण पहुंचे तो ब्राह्मणों ने विचारा ऋषियो ने की हम इसको मन ही मन में प्रणाम कर लेते हैं। हम मन ही मन में नमस्कार कर लेते हैं। परंतु जब तक हमें यह प्रतीत न हो कि यह राजा ब्रह्मज्ञानी है अथवा नहीं है। तो उनमें से एक ब्राह्मण की चुनौती हुई। ब्राह्मण को निर्वासत किया और यह कहा कि तुम इस राजा के राजा से यह प्रश्न करो और राजा इसका क्या उत्तर देगा और उसके मस्तिष्क को दृष्टिपात करो। वह ब्रह्म ज्ञानी ब्रह्मवेता है या नहीं। मुनिवरो, कहा जाता है कि उनमें से महाराजा वरुण ने, ॠषि वरूण ने ऋषि गौतम के पिता ने महाराज जानवी के मस्तिष्क को दृष्टिपात करके यह कहा कि महाराज तुम जो प्रातकाल यज्ञ करते हो। वह कितनी समिधा से करते हो? मुनिवर देखो, उस समय महाराज जानवी कहते हैं कि जो यज्ञ प्रातः काल में तीन प्रकार की समिधा थी। मैं 3 संमिधाओ में मैं यज्ञ करता हूं। वह 3 समिधा क्या है। महाराज जानवी कहते हैं कि तीन जो समिधा है वह 3 समिधाए जिसमें अग्नि अग्‍न्‍याधान करता हूं, अग्नि को प्रदीप्त करता हूं, वह तीन प्रकार की समिधा मेरे यहां ज्ञान,कर्म और उपासना कहलाई जाती है। वाह रे राजा, जानवी क्या उत्तर देते हैं ऋषियो मैं अपने हृदय में उन आग्‍नियों को उद्‍धत कर रहा हूं और प्रातकाल में उदबुद करता हूं। यज्ञ करता रहता हूं उसी क्रम में जगत में यज्ञ करता हूं। 3 समिधा उसे यज्ञ करता हूं । 3 समिधा क्या है ज्ञान कर्म और उपासना के ऊपर चिंतन प्रारंभ रहता है।


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