गुरुवार, 19 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता (दीपराग)

राजा नल का दीप मालिका राग आदि का वर्णन
 मुनिवरो, आज हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे थे। यह तुम्हें प्रतीत हो गया होगा आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया है। हमारे यहां परंपरागतो से ही उस मनोहर वेदवानी का प्रचार-प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में उस मेरे देव परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान गाया जाता है। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा महिमावादी है। उसी की चेतना से यह जगत चैतयं हो रहा है। वह इस ब्रह्मांड के कण-कण में औत-प्रॏत है। कोई भी पर्वतों की ऐसी गुफा नहीं है जहां वे परमात्मा न हो, कोई समुंदरों की तरंग ऐसी नहीं है जहां उस मेरे देव की आभा विधमान न हो। वह सर्वत्रता में औत-प्रॏत है। जिसके ऊपर मानव परंपरागत से ही अनुसंधान कर रहा है अथवा उसकी महिमा का गान गाता रहा है। आज हमारे वेद मंत्र में कुछ वायु सूत्र का पठन-पाठन हो रहा था। क्योंकि यह जो वायु है यह एक सूत्र कहलाता है। वायु सूत्र और विष्णु सूत्रों में केवल वायुदान की महिमा का वर्णन आता रहा है। मानव जब गाना गाता है तो यह संसार गाना गाने वाले का मोहित हो जाता है। उसकी ममता में भ्रमण करने लगता है। जैसे पंडित जब वाणी से यथार्थ उच्चारण करने लगता है। मानव कहता है यह पंडित है, जो उच्चारण कर रहा है यह यथार्थ है। वह सत्यवादी है। क्योंकि वह हृदय में सत्य का प्रतिपादन कर रहा है। सत्य की महानता का वर्णन कर रहा है। क्योंकि सत्य की विवेचना करता हुआ आचार्य अपनी उधरवागति में परंपरागतो से ही यह रमन करता रहता है। मुझे बहुतपुरातन परंपरा का एक वाक्य स्‍मरण आ रहा है। उध्‍दालक गोत्र में एक ऋषि हुए जिनका नाम करण श्वेधा था।परंतु स्‍वेधा ऋषि एक समय अपने चित्त के मंडल को जानने के लिए गान गाने लगा। वह स्रोतों में से भी शब्द आता रहा। एक गान के रूप में, ध्वनि के रूप में, उसको अपने में धारण करता रहा। परंतु 12 वर्ष हो गए उस ध्वनि को श्रवण करते हुए। वह ध्‍वनी मानव के स्रोतों में प्रवेश होती। अंतरिक्ष में उसका समन्वय हो गया। जैसे सूत्र होता है सूत्रों में एक ध्वनि होती है। जैसे लोक-लोकतंरो की माला होती है। सौर मंडलों का एक दूसरे से समन्वय होता है। तो उसमें एक ध्‍वनी होती है। जो उस ध्‍वनी को देखो श्रवण कर लेता है। वह चित के मंडल की धाराओं को जानने वाला बनता है। ऋषि मुनियों ने अनुसंधान किया। इस वायु सूत्र को लेकर के, वायु की आभा को लेकर के, इसके ऊपर विचार-विनिमय आरंभ किया। आज मैं तुम्हें कोई ऐसे विशेष गंभीर विषय को लेने नहीं चाहता हूं। विचार-विनिमय केवल यह है कि हमारे यहां एक ध्‍वनी होती रहती है और वह ध्वनि स्रोतों में आती रहती है। वही ध्वनि रात्रि के काल में मध्य रात्रि के काल में उत्पन्न हो जाती है। उस ध्‍वनी का समन्वय सूर्य की तरंगों से संबंधित रहता है। सूर्य की किरणों से जब समन्वय करता है। तो वहीं ध्वनि धौलोक में प्रवेश करती है। वही ध्वनि विद्युत की धाराओं में रमण करती है और वही ध्वनि जब विद्युत की धारा में गति करने लगती है तो वहीं ध्वनि मानवीय शरीर में ब्रह्मांड में एक ध्‍वनी होती है। इसको हमारे अनहद ध्वनि कहते हैं। एक विशेष विचित्र  तुम्हें चर्चा करने लगा हूं योगेश्वर और व्याकरण वाले पंडित योगेश्वर योगी जनों की चर्चाएं हैं। वही ध्वनि जब वायुमडंल में होती है तो ध्वनि का संबंध अग्नि की धाराओं से होता है। जब प्राण तन में होता है तो उस समय दीप मालिका बन जाती है। धमकी दी जाती है परंतु वही काम करने वाला साधक प्राणायाम को गाना गाता हुआ जब गाना गाता है। तो दीप मालिका 'दीपावली' बन जाती है। अंधकार छाया हुआ है एक योगी गा रहा है और गाता हुआ दीपिका आता है। तो दी प्रकाशित हो जाता है।


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