गतांक से...
तो देखो विचार यह चल रहा है कि आज हम अग्नि का आधान करना चाहते हैं। अपने में अग्नि को धारण करना चाहते हैं। वह जो ज्ञान रूपी अग्नि है वही तो मानव का कल्याण करने वाली है। क्योंकि ज्ञान ही संसार में मानवीय तत्व पर निहित रहता है। वही अग्नि है जो ब्रह्मा अग्नि बन करके देखो धौ लोक में प्रवेश करती है। अंतरिक्ष में रत रहने वाली है। मानव जैसे शब्दों का उच्चारण करता है शब्द के साथ में चित्र, चित्रों के साथ में उसका क्रियाकलाप अंतरिक्ष में विद्यमान रहता है। विचार यह देने जा रहा था कि इस अग्नि का आधान करते हुए कागभूषडं जी और लोमस मुनि महाराज दोनों अपने विद्यालय में अध्ययन करते रहे। इसी अग्नि को लेकर के महाराजा संपाती और दोनों विधाता, गरुड़ जी उनकी दोनों कृतियों में वह भी अनुसंधान करते थे। समुद्र के तट पर उनका सुख संसार राज्य था जो राजाराम ने उनके राष्ट्र को विजय कर लिया था। काग भूषडं जी तो देखो ऋषि लोमस के आश्रम में प्रवेश कर गए थे और संपाती समुद्र के तट पर काग भूषडं जी के पिता जो कहलाते थे। शंभूक ऋषि महाराज वह उनके आश्रम में चले गए थे। उनकी प्रतिक्रिया उनका राष्ट्र समाप्त हो गया था। परंतु वैज्ञानिक थे अपने में अनुसंधान करते रहते थे। विचार-विनिमय करते रहते थे आज तुम्हें मैं साहित्यिक चर्चा प्रकट करने नही आया हू।विचार देने आया हूं कि प्रत्येक मानव को प्राण को जानना है। प्रत्येक प्राणी परमपिता परमात्मा के राष्ट्र मे मानव शिशु के रूप में रहना चाहता है। चाहे कोई धीराज हो, राजा हो, ज्ञानी को, योगी हो, प्राण सूत्र में रमण करने वाला हो । परंतु देखो माता की लोरीयो का जब पान करने लगता है। लोरियों का पान करने वाला शिशु कहलाता है। मेरे को ज्ञान है जब उसके अंतिम छोर पर जाता है तो वैज्ञानिक हो, चाहे किसी भी प्रकार का अध्यात्मिक विज्ञानवेता हो, चाहे भौतिक विज्ञानवेता हो, वह मोन हो जाता है और जहां मोन हुआ। वहीं शिशु बन जाता है जैसे बालक माता की लोरीयो का पान करके शिशु बना हुआ है। वह रहता है लोरीयो के आनंद को प्रकट नहीं कर सकता। इसी प्रकार बेटा प्रभु के गर्भ में प्रभु के ज्ञान और विज्ञान को जानता हुआ। उसका वर्णन साकार रूप में नहीं कर सकता। इसी प्रकार शिशु बना हुआ है मैंने चर्चा की है योगाभ्यास करते हुए अध्यात्मिक बाद में प्रवेश करते हुए भौतिक विज्ञान में प्रवेश करते हुए। परमाणु वाद को जानते हुए उन्होंने यही कहा मैं शिशु बना हुआ हूं। मैं बालक हूं प्रभु के राष्ट्र में कोई बलवती नहीं है। कोई मानव विशाल नहीं है। प्रभु के ज्ञान और विज्ञान में प्रत्येक प्राणी शिशु के रूप में ही रहता है। क्योंकि प्रभु का ज्ञान और विज्ञान इतना नितांत है, इतना महान है। कि अंत में प्राणी मोन हो जाता है और वह अपने में कोई वाक्य वर्णन नहीं कर सकता। बेटा आज का वाक्य यह है आज के वाक्य उच्चारण करने का अभिप्राय हमारा यह है कि हम परमपिता परमात्मा की आराधना करते हुए। देव की महिमा का गुणगान गाते हुए इस संसार सागर से पार होने का प्रयास करें। अब हमारा वाक्य समाप्त होने जा रहा है। यदि समय मिलेगा तो कल चर्चा करेंगे। अब वेद मंत्रों का पठन-पाठन होगा।
सोमवार, 30 सितंबर 2019
कागभूषडं-लोमस क्रियाकलाप
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