शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

शेरों की धरती पे हाथी नहीं काबू में

लगता है , शेरों कि धरती में हरियाणा में बड़े – बड़े नेताओं कि बस की बात नही ,हाथी को संभालना ।


आखिर सही भी है , हाथी को संभालना हर किसी के बस कि बात नही
चंडीगढ़। इनेलो नेता अभय चौटाला ने तो बहन जी से राखी तक बंधवाई , लेकिन गंठबंधन कि सियासत लंबी न चल पाई , हरियाणा में बसपा का वोट प्रतिशत 2014 के विधानसभा चुनाव में 4.4 प्रतिशत रहा था। 2009 में 6.74 फीसदी और 1996 से 2000  तक 5.44 और  5.74 प्रतिशत वोट पार्टी को मिले थे। बसपा का हर विधानसभा क्षेत्र में वोट बैंक है , और पार्टी के उम्मीदवार किसी भी बड़े दल के प्रत्याशियों का चुनावी गणित बिगाड़ देते हैं। इस बार भी बसपा सभी विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशीयों को उतारने कि कवायत शुरु कर दी है।


हरियाणा में मायावती की नजर 90 में से , एससी के लिए आरक्षित 17 सीटों पर है , पार्टी इन सीटों पर मजबूत उम्मीदवार उतारकर पुराना मिथक तोड़ते हुए एक से अधिक विधायक बनाना चाहेगी ,  इसके अलावा पार्टी 19 प्रतिशत एससी वोट बैंक पर भी निगाहें गड़ाये हुए है। बसपा यहां भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाकर कोई करिश्मा तो जरुर करना चाहेगे।  


बसपा ने 1998 में इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन किया , बाद में तोड़ा।
2009 में कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ गठबंधन किया , बाद में राहें जुदा हो गयी।
मई 2018 में फिर इंडियन नेशनल लोकदल के साथ किया गठबंधन, एक साल से पहले ही राहे जुदा हो गयी।
जींद उपचुनाव में करारी हार के बाद बसपा को इनेलो का अस्तित्व खतरे में नजर आने लगा, इनेलो के साथ गठबंधन तोड़कर फरवरी 2019 में राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी का साथ पकड़ा, चंद महीने बाद गठबंधन टूट गया।
11 अगस्त 2019 को जजपा के साथ गठबंधन किया , छह सितंबर 2019 को जजपा से भी नाता तोड़ा दिया।


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