शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

शराब, समाज और आनंद

मदिरा, सुरा या शराब अल्कोहलीय पेय पदार्थ है।


रम, विस्की, चूलईया, महुआ, ब्रांडी, जीन, बीयर, हंड़िया, आदि सभी एक है क्योंकि सबमें अल्कोहल होता है। हाँ, इनमें एलकोहल की मात्रा और नशा लाने कि अपेक्षित क्षमता अलग-अलग जरूर होती है परन्तु सभी को हम 'शराब' ही कहते है। कभी-कभी लोग हड़िया या बीयर को शराब से अलग समझते हैं जो कि बिलकुल गलत है। दोनों में एल्कोहल तो होता ही है।


शराब अक्सर हमारे समाज में आनन्द के लिए पी जाती है। ज्यादातर शुरूआत दोस्तों के प्रभाव या दबाव के कारण होता है और बाद में भी कई अन्य कारणों से लोग इसका सेवन जारी रखते है। जैसे- बोरियत मिटाने के लिए, खुशी मनाने के लिए, अवसाद में, चिन्ता में, तीव्र क्रोध या आवेग आने पर, आत्माविश्वास लाने के लिए या मूड बनाने के लिए आदि। इसके अतिरिक्त शराब के सेवन को कई समाज में धार्मिक व अन्य सामाजिक अनुष्ठानों से भी जोड़ा जाता है। परन्तु कोई भी समाज या धर्म इसके दुरूपयोग की स्वीकृति नहीं देता है।शराब के लगातार सेवन से कुछ विशेष लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जिसके आधार पर भी इसके आदी होने को पहचाना जा सकता है।


हमेशा शराब सेवन करने की प्रबल इच्छा या तलब।
असरदार (टॉलरेंस) नशा के लिए शराब की मात्रा में बढोतरी।
शराब छोड़ने पर शरीर में कम्पन होना, रक्तचाप अनियमित हो जाना, घबराहट, बेचैनी होना, कानों में आवाज सुनाई पड़ना, आँखो के सामने कीड़े-मकोडे़ चलते नजर आना, भयभीत होना, नींद न आना आदि। दुबारा सेवन करते ही इन लक्षणें में सुधार होना पाया जाता है।
लम्बे समय तक अधिक मात्रा में सेवन करना।
रूचिकर कार्यो से विमुख होने और अधिकतर समय शराब की तलाश में बिताना या नशे के प्रभाव में रहना।
शारीरिक व मानसिक दुष्प्रभावों के बावजूद सेवन बंद नही रखना या कोशिश करने के बावजूद सेवन बंद नही कर पाना।
शराब छोडने के उपाय 
सबसे पहले शराब पीने वाले खुद यह तय करे कि अब मैं शराब नही पीउँगा तो चिकित्सक इनकी मदद कर सकते है। देखा जाता है कि परिवार वाले तो उनके इलाज के लिए तैयार रहते है किन्तु व्यक्ति स्वयं इलाज नहीं कराना चाहता। ऐसी हालत में चिकित्सक का प्रयास सार्थक हो ही नहीं सकता।


मनश्चिकित्सा केन्द्रों में नशा विमुक्ति केन्द्र होते है जहाँ डी-टोक्सीफिकेशन द्वारा शराब छुड़ाने तथा उसके उपरांत मोटिवेशन थैरपी, फिजियोथैरपी तथा ग्रुप थैरपी द्वारा इससे निजात पाने की कोशिश की जाती है। स्वयं व्यक्ति के प्रबल इच्छाशक्ति तथा परिवार के सहयोग तथा चिकित्सकों के सतत् प्रयास से सफलता पूर्वक इसका इलाज संभव है


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