बुधवार, 4 सितंबर 2019

राजनीतिक सिद्धांत और दर्शन

राजनीति विज्ञान अध्ययन का एक विस्तृत विषय या क्षेत्र है और राजनीतिक सिद्धान्त उसका एक उप -क्षेत्र भर है। राजनीति विज्ञान में ये तमाम बातें शामिल हैं: राजनीतिक चिंतन, राजनीतिक सिद्धान्त, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचारधारा, संस्थागत या संरचनागत ढांचा, तुलनात्मक राजनीति, लोक प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संगठन आदि। कुछ चिंतकों ने राजनीति विज्ञान के विज्ञान पक्ष पर बल दिया है। उनका कहना है कि जब राजनीति विज्ञान का अध्ययन एक विज्ञान के रूप में वैज्ञानिक पद्धतियों से किया जाता है तब राजनीतिक सिद्धान्त जिस हद तक राजनीतिक दर्शन का हिस्सा है उस हद तक वह राजनीति विज्ञान नहीं माना जा सकता, क्योंकि राजनीति विज्ञान में तो अमूर्त्त और अंतःप्रेरणा से उद्भूत निष्कर्षों या चिंतनों के लिए कोई स्थान नहीं है लेकिन राजनीतिक दर्शन ठीक इन्हीं अयथार्थ पद्धतियों पर भरोसा करके चलता है। राजनीतिक सिद्धान्त न तो शुद्ध चिंतन है, न शुद्ध दर्शन और न शुद्ध विज्ञान।


राजनीतिक सिद्धान्त की आधारभूत विशेषताएँ 
कोई राजनीतिक सिद्धान्त सामान्यतः किसी एक व्यक्ति की सृष्टि होता है, जो उसके नैतिक और बौद्धिक रुख पर आधारित होता है और जब वह अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन कर रहा होता है तब वह सामान्यतः मानव जाति के राजनीतिक जीवन की घटनाओं, संघटनाओं और रहस्यों की व्याख्या करने की कोशिश कर रहा होता है। उस सिद्धान्त को सच माना या न माना जा सकता है, लेकिन उसे एक सिद्धान्त के रूप में हमेशा मान्य किया जा सकता है। आमतौर पर हम देखते हैं कि किसी चिंतक का राजनीतिक सिद्धान्त किसी-किसी मानक कृति में प्रस्तुत किया जाता है, जैसे अफलातून ने रिपब्लिकमें या रॉल ने ए थिओरी ऑफ़ जस्टिसमें प्रस्तुत किया।
राजनीतिक सिद्धान्त सामान्यतः मानव जाति, उसके द्वारा संगठित समाजों और इतिहास तथा ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न करता है। वह विभेदों को मिटाने के तरीके भी सुझाता है और कभी-कभी क्रांतियों की हिमायत करता है। बहुधा भविष्य के बारे में पूर्वानुमान भी दिए जाते हैं।
राजनीतिक सिद्धान्त सामान्यतः विद्या की किसी-न-किसी शाखा पर आधारित होता है और यद्यपि अध्ययन का विषय वही रहता है, तथापि सिद्धान्तकार कोई दार्शनिक, अर्थशास्त्री, धर्मतत्वज्ञ या समाजशास्त्री आदि हो सकता है।
इस प्रकार राजनीतिक सिद्धान्त केवल व्याख्याएँ एवं पूर्वानुमान ही नहीं प्रस्तुत करता है बल्कि कभी-कभी वह ऐतिहासिक घटनाओं को प्रभावित और उनमें भागीदारी भी करता है, खास कर तब जब वह किसी खास ढंग की राजनीतिक कार्यवाही प्रस्तावित करता है और जिस ढंग की कार्यवाई वह सुझाता है उसे व्यापक स्वीकृति प्राप्त होती है। महान सकारात्मक उदारवादी चिंतक हेरॉल्ड लास्की ने कहा था कि राजनीतिक सिद्धान्तकार का काम केवल वर्णनकरना नहीं बल्कि जो होना चाहिए उसका सुझाव देना भी है।
राजनीतिक सिद्धान्त बहुधा पूरी विचारधारा का आधार भी होता है। उदारवादी सिद्धान्त उदारवाद का आधार बन गए और मार्क्स का सिद्धान्त मार्क्स की छाप की समाजवादी विचारधारा का किसी चिंतक द्वारा प्रस्तावित कोई राजनीतिक सिद्धान्त सामान्यतः हमेशा उस चिंतक की राजनीतिक विचारधारा को प्रतिबिंबित कर रहा होता है। यही कारण है कि जब विचारधाराओं के बीच विभेद होते हैं तो उसके फलस्वरूप विचारधाराओं में अंतर्निहित सिद्धान्तों के बारे में बहस चलती है।


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