सूरजपुर। छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य प्रदेशों में गिना जाता है । यहां विभिन्न जातियों के लोग निवासरत हैं । इन्हीं मे से एक जन जाति हैं पंडो लोगों की । सरगुजा क्षेत्र को इनका मूल स्थान माना जाता है और यहीं से यह जनजाति प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में घुम घुम कर अपना जीवन यापन करती थी । इनकी घुमंतु प्रवृति तथा शिकार पर ही जीने के कारण ये कहीं भी स्थाई तौर पर नहीं रह पाते थे ।
सरकार ने इस जनजाति को एक जगह स्थापित कर विकास की मुख्य धारा से जाड़ने की योजना बनाई जिसके लिए राज्य शासन द्वारा वर्ष 2000-03 में विशेष पिछड़ी जनजातियों के तुल्य मानते हुए, सूरजपुर जिले में पृथक अभिकरण गठित किया गया। इनका विस्तार सूरजपुर सरगुजा बलरामपुर में है जो इनका मूल निवास स्थान है । सरकार ने इन्हें एक जगह स्थापित कर इनके लिए स्कूल आंगनबाड़ी सड़क तथा बिजली की व्यवस्था की हो और इनकीे बसाहट एक गांव ओैर समाज के रूप में होने लगी ।
अपने मूल स्थान को छोड़ अन्य जगहों पर रुकने से तब कोई समस्या तो नहीं आई। पर अब कुछ समस्याओं से इन्हें रूबरू होना पड़ रहा। पूर्व में शिकार व जंगलों पर निर्भर यह जाति समुदाय, शिक्षा व आधुनिकता की ओर अग्रसर है। जहां कुछ समस्याएं इन्हें आगे बढ़ने से रोक रही।
मरवाही के बहु वनांचल व दूरस्थ ग्राम पंचायत सेमरदर्री में एक टोला है,बगैहटोला जहां पंडो समुदाय रहता है। इनका कहना है, ये कई पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं। सरकार द्वारा इनके लिए स्कूल, पानी ,आंगनबाड़ी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई गई है। प्रधानमंत्री आवास योजना व शौचालय भी देखने को मिल जाता है।
इनके घरों में आज भी धनुष बाण रखे जाते हैं,यहां तक ये यह भी कहते हैं,हम धनुष बाण में कभी अपने अंगूठे का प्रयोग नहीं करते हम एकलव्य के वंशज हैं, और एकलव्य ने गुरु द्रोण को अपना अंगूठा गुरु दक्षिणा में दिया था।
यह लोग शिक्षित हो रहे हैं,पुरातन से आधुनिकता की ओर बढ़ने की हर एक कोशिश कर रहे हैं। यहां रहने वाले पंडो समुदाय की एक विकट समस्या यह है, कि उनके पास मिशल नहीं होने के कारण जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा । जिसके कारण सरकार की कई व्यक्तिगत योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल पा रहा है । जाति प्रमाण पत्र नहीं होने से नौकरी तथा अन्य जरूरी कामों में अड़चन आने लगी है । युवाओं की इस परेशानी को देखते हुए पंडो जाति के बुजुर्गो को ये लगने लगा है कि एक जगह बस्ती बनाकर रहना उनका गलत फैसला तो नहीं था जिसके कारण सरकारी कागजों की कमी ने उनके बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है । लेकिन इन्हें अब भी उम्मीद है, कि जाति प्रमाण पत्र सरलीकरण होने के बाद इनके प्रमाण पत्र बनाने का मामला प्रशासन गंभीरता से लेगा और धनुष से शुरू हुआ सफर कलम तक पहुंचने को तैयार है ।
बगैहा के धनी पंडो कहते हैं। जाति प्रमाण पत्र के लिए पहले हम प्रयास कर चुके हैं, पर जमा होने के बाद नहीं बना। हमारे पास मिशल भी नहीं है। यहीं के घासीराम कहते हैं -हमारे पास मिसल नहीं इसलिए जाति नहीं बन पा रही दो तीन बार प्रयास की जा चुकी है।
सेमरी सरपंच प्रताप सिंह भानु कहते हैं,ये पहले इतना पढ़े-लिखे नहीं थे, अब पढ़ लिख रहे हैं, लेकिन जाति प्रमाण पत्र ना होने की वजह से सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं से वंचित हो जाते हैं।अनुविभागीय अधिकारी डिकेश पटेल कहते हैं -इस विशेष पिछड़ी जनजाति का जाति प्रमाण पत्र ग्राम सभा के माध्यम से बन जाता है। तहसीलदार को कहकर मामले में संज्ञान लेंगे।
शुक्रवार, 20 सितंबर 2019
एकलव्य के वंशजों को नहीं मिला लाभ
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