सोमवार, 30 सितंबर 2019

भीष्म शयन नाभि कुंभ ज्योति अनुष्ठान

निम्बोड़ा में अयोध्यादास महाराज का भीष्म शयन नाभि कुम्भ ज्योत प्रज्ज्वलन अनुष्ठान प्रारम्भ


भीनमाल, (निसं)। निकटवर्ती निम्बोड़ा गांव में जुनागढ़ गुजरात के गिरनारी संत, रामस्नेही सम्प्रदाय के अनुयायी और सांलगपुर हनुमान के अनन्य भक्त संत अयोध्यादास महाराज के द्वारा रविवार को नवरात्रि स्थापना के साथ ही भीष्म शयन नाभि कुम्भ ज्योत प्रज्ज्लवन अनुष्ठान प्रारम्भ हुआ। लगातार दस दिनों का यह अनुष्ठान प्रतिपदा से दशहरा तक चलेगा। दशहरा के दिन प्रात: शुभ वेला में महाराज का यह अनुष्ठान पूर्ण होगा। इस अनुष्ठान में भीष्म शयन यानि कि तीर की शैय्या पर शयन करके माँ बुट भवानी की आराधना करनी होती है।  इसके तहत तीन गुणा छह फीट की एक मोटे प्लाईबोर्ड पर करीब छह छह इंच के सैकड़ों सरिये लगाये गये। महाराज अब दस दिनों तक इन्हीं नुकीले सरियों पर शयन करेगें। अनुष्ठान के तहत निम्बोड़ा गांव की लोबड़ा नाड़ी पर स्थित अयोध्यापुरी आश्रम में रविवार को प्रात:काल से ही माँ भगवती, बुट भवानी, श्री राम, हनुमान की पूजा अर्चना का कार्यक्रम शुरू रहा। दोपहर में करीब साढे बारह बजे के करीब महाराज ने अनुष्ठान के तहत भीष्म शयन किया। उसके बाद उनकी नाभि पर मिट्टी के साथ ज्वारा रोपण किया गया व कुम्भ की स्थापना की गई। कुम्भ के ऊपर एक बड़े दीपक में अखण्ड ज्योत का प्रज्ज्वलन किया गया। 


अनूठा अनुष्ठान
वैसे तो भारत देश के अध्यात्म जगत में माँ भगवती को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है तथा उनकी आराधना के तौर तरीके भी सैकड़ों की संख्या में अलग अलग है। जब साधक खुद के शरीर को असहनीय कष्ट पहुंचाकर माता की आराधना करते है तो माना जाता है कि उन्हें यथेष्ट सिद्धि प्राप्त होती है। महाभारत काल में जब पाण्डवों और कौरवों में युद्ध हुआ तो उनके भीष्म पितामह ने असहनीय कष्ट सहकर तीरों की शैय्या पर शयन किया। इसी तर्ज पर महाराज नवारात्रि की आराधना के तहत प्लाईबोर्ड पर लगे सैकड़ों नुकीले सरियों पर शयन कर रहे है। मात्र सिर के नीचे एक तकिया रखा गया है जबकि कमर के नीचे मात्र एक अंगोछा लपेटे हुए है जबकि बाकी शरीर बगैर वस्त्रों के है


पूर्व में भी किये कष्ट अनुष्ठान
एडवोकेट निरंजन व्यास ने बताते है कि भारत के अध्यात्म जगत में त्याग और तप का अपना विशिष्ट महत्व रहा है। दर्जनों प्रकार के मतों पर चलने वाले विभिन्न साधु संत समूहों की त्याग और तप के लिए अपनी विशिष्ट शैली भी रही है। व्यास ने बताया कि त्याग और तप की मूर्ति अध्योध्यादास महाराज ने वर्ष 2017 में नाभि कुम्भ कष्ट अनुष्ठान भी किया था। जिसमें महाराज के सिर व दो हाथों को छोड़कर पूरा शरीर मिट्टी में दबा हुआ था जिस पर ज्वारा रोपण किया गया था। उसके बाद महाराज ने लगातार 41 दिनों तक रात्रि में खड़े रहकर भगवान शिव की भी आराधना की। उसके बाद महाराज ने जून की गर्मी में धूप में लगातार पांच पांच घण्टे तक बैठकर भगवान विष्णु की पंचधूणी आराधना अनुष्ठान भी संपूर्ण किया। गत वर्ष नवरात्रि में महाराज द्वारा त्रिकुम्भ आराधना भी की गई। जिसमें दोनों हाथों में व एक सिर पर तथा एक नजरों के समक्ष कुम्भ की स्थापना होती है और लगातार नौ दिनों तक यह आराधना करनी पड़ती है। महाराज द्वारा पूर्व में गुजरात राज्य के सांलगपुर के पास खाम्भा में और सूरत के पास भीलड़ में यही अनुष्ठान दो बार किया जा चुका है।


रविवार को महाराज के अनुष्ठान प्रारम्भ होने पर चन्द्रपालसिंह, रामपालसिंह, गणपतसिंह धनवाड़ा, निरंजन व्यास, भवसिंह निम्बोड़ा, प्रतापसिंह निम्बावास, पंडित नारायणलाल दवे, गौपुत्र छगनाराम चौधरी, इन्द्रसिंह राणावत, जेताराम देवासी, दीपाराम चौधरी, तेजाराम माली, भूराराम चौधरी, पृथ्वीराज गोयल, खीमाराम सेन सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।


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